OTT के बढ़ते ट्रेंड को लेकर Nana PateKar के बेबाक बोल, कहा- 'आज आउटसाइडर को लेकर स्टार किड्स में डर है'
अनिल शर्मा के निर्देशन में बन रही फिल्म वनवास (Vanvaas) 20 दिसंबर को रिलीज के लिए तैयार है। इस फिल्म में नाना पाटेकर और अनिल शर्मा के बेटे उत्कर्ष को लीड किरदार में देखा जाएगा। फिल्म वनवास की कहानी पिता को त्याग देने और अपने ही अपनों को वनवास देने के इर्द-गिर्द घूमती है। यह फिल्म कलयुग की रामायण है।

प्रियंका सिंह, मुंबई। नाना पाटेकर इन दिनों अपनी नई फिल्म ‘वनवास’ के प्रमोशन में काफी व्यस्त हैं। इस फिल्म में उनके साथ अनिल शर्मा के बेटे उत्कर्ष शर्मा नजर आएंगे। अनिल शर्मा ने खुद इस फिल्म का निर्देशन किया है। फिल्मी दुनिया में उनके अनुभवों और जीवन के उतार-चढ़ाव पर बात की हमारी संवाददात प्रियंका सिंह ने, आइए जानते हैं विस्तार से।
55वें इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल आफ इंडिया में जब विधु विनोद चोपड़ा ने गलती से कह दिया था कि ‘परिंदा’ के लिए जैकी श्राफ को नेशनल अवार्ड मिला था, तो भीड़ में से किसी ने कहा कि वह अवार्ड नाना को मिला था। इन भावनाओं की कितनी इज्जत है?
अच्छे नंबर आने पर अगर पिताजी पीठ थपथपा देते हैं, तो अच्छा लगता है। अवार्ड भी वैसा होता है। खैर, मेरे लिए सबसे बड़ा अवार्ड है कि मेरी फिल्म रिलीज हो, तो उसे सब देखें। मुझे आर्ट फिल्म से कोई लेना-देना नहीं है। ‘परिंदा’, ‘क्रांतिवीर’, ‘अग्निसाक्षी’ कमर्शियल फिल्में थीं। सभी को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था। मुठ्ठी भर लोग जो आर्ट फिल्म देखते हैं और कहते हैं वही असली सिनेमा है, ऐसा नहीं है। असली सिनेमा वह है, जो सबको भाए।
आपके अनुसार एक कलाकार को उसकी कौन सी बात बड़ा बनाती है?
छोटी-छोटी बातें कलाकार को बड़ा बनाती हैं। उदाहरण के तौर पर मेरी फिल्म ‘अंकुश’ रिलीज हुई थी। उस दौरान ‘परिंदा’ फिल्म के लिए विधु विनोद चोपड़ा से मिलने मैं उनके आफिस गया था। वहीं नटराज स्टूडियो में अमित (अमिताभ बच्चन) जी की फिल्म ‘जादूगर’ का सेट लगा हुआ था। मैं वहां एक कोने में खड़ा हो गया।
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अमित जी ने मुझे देखा तो कहा आओ बैठो। मैं इस बात से ही पिघल गया था कि अमिताभ ने मुझे छुआ। यूं ही कोई बड़ा एक्टर नहीं बन जाता है। यह बातें सुनने में छोटी सी लगती हैं, लेकिन मैं तो कुछ था ही नहीं। खंभे के पीछे से मुझे देखकर पहचान लेना, हाथ पकड़कर ले जाना, चाय-काफी पिलाना इसकी उन्हें क्या जरूरत थी। वह अच्छे कलाकार हैं, लेकिन इंसान उससे बड़े हैं।
‘वनवास’ फिल्म के लिए हां करने की सबसे बड़ी वजह क्या रही?
मैंने अनिल (शर्मा) की फिल्में देखी थीं। वह जैसी फिल्में करते हैं, उसमें मैं फिट नहीं हो सकता था, क्योंकि वो मार-धाड़ वाली फिल्में होती हैं, जो मुझे नहीं आता है। हम लगातार मिलते रहे। एक दूसरे को पहचान गए। सेट पर जाने के बाद मुझे अच्छा नहीं लगता है कि वहां पर तू तू मैं मैं हो जाए। पहले ही किसी इंसान को समझ लो। इस फिल्म के लेखन से हम साथ थे। कई छोटे शहरों में फिल्म की शूटिंग हुई। कई स्थानीय कलाकारों से मिलने का मौका मिला। वहां बहुत प्रतिभा है।
आप स्थानीय कलाकारों को मौका देने के लिए अपनी तरफ से प्रयास करते हैं?
हां, मैं तो हर निर्माता-निर्देशक से कहता हूं कि लोकल आर्टिस्ट को मौका दो। मैंने भी छोटे रोल से अपनी शुरुआत की थी। मेरी मां चौथी और पिताजी पांचवीं तक पढ़े थे। उनका टेक्सटाइल प्रिंटिंग का कारखाना था। उससे पहले वह बहुत बड़ी जगह नौकरी करते थे। मां घर में रहती थीं। उनको अभिनय के क्षेत्र में दिलचस्पी नहीं थी। लेकिन पिताजी को थी, वह मुझे लेकर खूब घूमा करते थे। मुझे पता नहीं चला कि कैसे मैं नाटकों से जुड़ गया। फिर सई परांजपे ने मुझे पहचाना और ‘गमन’ में मौका दिलवाया। ‘अंकुश’ फिल्म के लिए मेरा चयन विलेन के रोल के लिए किया गया था, मैंने कहा नहीं करूंगा।
फिल्म के निर्माता सुभाष दुर्गाकर ने कहा अगर नाना को रवि (मुख्य पात्र) का रोल दें तो कैसा रहेगा। निर्देशक एन चंद्रा ने पूछा करोगे? मैंने हां कर दिया। उसके लिए दस हजार रुपये मिले थे, प्रोडक्शन के दौरान तीन हजार और फिल्म जब बिकी, तो और सात हजार। फिर ‘परिंदा’ फिल्म मिल गई। आज ओटीटी के दौर में कितने नए कलाकार आ रहे हैं। पहले तो एकाधिकार था कि एक्टर का बेटा एक्टर बनेगा। आज ऐसा नहीं है। आउटसाइडर को लेकर स्टार किड्स में डर है।
शूटिंग के दौरान बनारस में सेल्फी की मांग करने वाले प्रशंसक को आपके द्वारा थप्पड़ मारने वाला वीडियो खास चर्चा में रहा। क्या यह करने का दुख है?
हां, मैं इसे अपनी गलती मानता हूं। एक दिन की शूटिंग का खर्चा बहुत होता है। कलाकार को लाइनें याद करने से लेकर कैमरा एंगल का ध्यान रखना होता है। उसमें कोई आकर सेल्फी लेता है, तो गुस्सा आना लाजमी है। फिर भी मैं यही कहूंगा कि थप्पड़ मारना गलत था। मैं दिल से कह रहा हूं कि माफ कर दो। मैंने जो किया वह गलत था। वह बच्चा प्यार से मेरे पास आया था। बाद में वह होटल पर भी मिला, रोने लगा कि मुझसे गलती हो गई। मैंने कहा कि काम करते वक्त बीच में आकर सेल्फी लोगे, तो ऐसा हो जाता है, फिर भी मुझे माफ कर देना।
‘प्रहार’ फिल्म के बाद आपने निर्देशन क्यों नहीं किया?
उसके बाद अपना घर बनाने, गाड़ी लेने इन्हीं में अटका रहा। फिल्म बनाने में तीन-चार साल चले जाते हैं। मुझे जल्दी पैसे चाहिए थे, उस लालच में दूसरी फिल्मों का निर्देशन नहीं कर पाया। अब करूंगा या नहीं, पता नहीं!
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