आधे घंटे में बना Dhadak 2 का टाइटल सॉन्ग, लिरिक्स लिखने के लिए संगीतकारों ने खुद को दुनिया से किया दूर
करण जौहर निर्मित फिल्म धड़क 2 का टाइटल सॉन्ग तू मेरी धड़क है को काफी पसंद किया गया। इस गाने को विराग मिश्रा और उनकी पत्नी रश्मि मिश्रा ने साथ में बनाया है। हाल ही में संगीतकार विराग ने धड़क 2 के टाइटल सॉन्ग को बनाने के पीछे दिलचस्प किस्सा शेयर किया है।

प्रियंका सिंह, मुंबई डेस्क। बोल दो ना जरा..., हमारी अधूरी कहानी..., मुस्कुराने की वजह तुम हो... जैसे कई रोमांटिक गाने दे चुके रश्मि सिंह और विराग मिश्रा की गीतकार जोड़ी ने फिल्म धड़क 2 का शीर्षक गीत 'बस एक धड़क चाहिए' लिखा है। उन्होंने गीत लिखने की अपनी प्रक्रिया से जुड़ी बातें साझा की हैं।
धड़क का शीर्षक गीत भी बेहद हिट रहा था। ऐसे में मूल फिल्म के गाने से तुलना पर विराग कहते हैं कि मैं ज्यादा नहीं सोचता हूं। धड़क 2 का शीर्षक गीत लिखना बड़ी जिम्मेदारी थी, क्योंकि धर्मा प्रोडक्शन की फिल्म है। जब ये जिम्मेदारी मिली, तो मैंने और जावेद-मोहसन (संगीतकार) ने खुद को दुनिया के कामों से दूर कर लिया। मार्केट ट्रेंड नहीं देखा, तुलना नहीं की कि कैसे गाने चल रहे हैं। बस सोचा कि सच्चा रोमांटिक गाना बनाना है।
गाने में उर्दू की झलक
आमतौर पर मेरे लेखन में उर्दू शब्द नहीं होते हैं, लेकिन इसमें उसका स्पर्श दिया तो और गहराई आ गई। मुखड़े पर काम किया। चांद का गुरूर मिट गया, तू मुझे जमीन पर दिख गया, शायरों ने हार मान ली, तुझ पर मैं वो नज्म लिख गया... जो शब्द दिल से निकले वो लिखा। हमारे लिए धड़क का संगीत बेंचमार्क था, जो प्रेरणा बना।
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इतने मिनट में बना था सॉन्ग
विराग मिश्रा आगे कहते हैं कि जावेद-मोहसिन मुझे घर लेने आते थे, वह पूछते थे कि क्या खाओगे। तीन-चार दिन खाने और सहज होने में निकल गए। फिर गाने लिखने का मूड सेट हो गया। हमने स्टूडियो बुक किया, वहां की लाइट्स बंद करके बैठ गए। मोहसिन गुनगुना रहे थे, हमें अहसास नहीं हुआ कि आधे घंटे में तो प्रेजेंटेशन देना है। फिल्म की टीम को सुनाना था। वहां पर अचानक गाने की पंक्तियां आ गईं। गाने समय में बंधे नहीं होते हैं, वह एक मिनट में भी आ सकता है, एक साल भी लग सकता है।
फिल्म को जीने के बाद बनता है टाइटल सॉन्ग
फिल्म का शीर्षक गीत लिखना विराग जिम्मेदारी का काम मानते हैं। वह कहते हैं कि यह कठिन काम है, क्योंकि शीर्षक गीत जनता के सामने फिल्म का पहला प्रेजेंटेशन होता है। फिल्म की रूह उस गाने से निकलती है। पहले प्रमोशनल गानों का दौर आ गया था, लेकिन फोकस फिर शीर्षक गीतों पर आया है। उसके लिए निर्देशक, लेखक संगीतकारों के साथ बैठना पड़ता है। फिल्म को जीना पड़ता है, तब जाकर जादू होता है।
आर्टिस्ट काम की सराहना का भूखा
आजकल तो कहते हैं कि व्हॉट्सएप पर गाने भेज दो, देखते हैं कि हमारी फिल्म में फिट होता है या नहीं। सच कहूं, तो ये बातें निराश करती हैं। आर्टिस्ट काम की सराहना का भूखा होता है। पत्नी रश्मि के साथ गीतकार जोड़ी बनाने पर विराग कहते हैं कि रश्मि दर्शकों की नब्ज पकड़ लेती हैं। उन्हें किसी ट्रेंड का पता नहीं है, इसलिए उनके लिखे विचार नए होते हैं। हम एक-दूसरे के पूरक हैं।
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