वाह रे पाकिस्तान! भारत को तूने कितने नायाब हीरे दिए, जिनसे रोशन जहां आज भी है
पाकिस्तान, एक मुल्क जो आज दहशतगर्दों के लिए जाना जाता है, लेकिन पहले वो ऐसा नहीं था। हालांकि उस वक्त आज का पाकिस्तान भी नहीं था।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। पाकिस्तान, एक मुल्क जो आज दहशतगर्दों के लिए जाना जाता है, लेकिन पहले वो ऐसा नहीं था। हालांकि उस वक्त आज का पाकिस्तान भी नहीं था। बहरहाल, इतिहास और दूसरी चीजों पर अंगुली न उठाते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि आज के पाकिस्तान ने भारत को जिन नायाब हीरों से नवाजा है उसकी मिसाल भी शायद दुनिया के किसी दूसरे देशों में नहीं मिल सकती है। आप इससे हैरत में पड़ सकते हैं। सोच सकते हैं कि ऐसे वो कौन से हीरे हैं जो हमें पाकिस्तान से मिले और जिनकी आपको खबर तक नहीं है। तो चलिए बिना वक्त गंवाए हम इन नायाब हीरों का जिक्र कर देते हैं। दरअसल, दोस्तों हम बात कर रहे हैं बॉलीवुड के उन सितारों की जिनका जन्म पाकिस्तान की धरती पर हुआ था। उस दौर में पाकिस्तान पाकिस्तान नहीं था, लेकिन मौजूदा समय में वह सब कुछ पाकिस्तान में है। आज हम इन्हीं सितारों के बारे में आपको बताएंगे जिनसे हमारा बॉलीवुड आज भी रोशन है और हमेशा ही रोशन रहेगा। यह हमारे बॉलीवुड की मजबूत रीढ़ की हड्डी हैं।
पृथ्वीराज कपूर
आज की मौजूदा पीढ़ी भले ही इस नाम को नहीं जानती हो लेकिन 80 या 90 के दशक की पीढ़ी भी इस नाम से अच्छे से वाकिफ है। पृथ्वीराज कपूर का जन्म मौजूदा पाकिस्तान में पंजाब जिले के लायलपुर में हुआ था। मौजूदा समय में यह फैसलाबाद जिले की समुद्री तहसील का हिस्सा है। यहां के छोटे से गांव लसारा से पृथ्वीराज कपूर ने अपनी जिंदगी का लंबा सफर शुरू किया था। बल्कि यूं कहें कि भारत की पहली बॉलीफुड फैमिली की शुरुआत ही यहां से हुई थी तो यह गलत नहीं होगा। बॉलीवुड में कपूर परिवार की चार पीढि़यों की मजबूत हिस्सेदारी रही है। उनके योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता है। यह उस दौर की बात है जब नाटक या थियेटर कम पसंद किया जाता है। ऐसे में आपको हैरत होगी कि पृथ्वीराज कपूर के पिता दीवान बशेश्वरनाथ कपूर ने भी राजकपूर की फिल्म आवारा में एक छोटा से किरदार निभाया था। भारत सरकार ने पृथ्वीराज कपूर को 1969 में पद्म भूषण से सम्मानित किया था।
दिलीप कुमार
मोहम्मद यूसुफ खान या दिलीप कुमार बॉलीवुड का एक जानामाना नाम है। इनके नाम और शक्ल से आज की पीढ़ी भी वाबस्ता है। उस दौर के अब शायद दिलीप कुमार ही बचे हैं। पेशावर में 11 दिसंबर 1922 को जन्मे यूसुफ की आज भी किस्सा ख्वानी बाजार में हवेली है। मौजूदा समय में ये खैबर पख्तूनख्वां में आती है। दिलीप कुमार काफी समृद्ध परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता न सिर्फ वहां के बड़े जमींदार थे बल्कि फलों के बड़े विक्रेता भी थे। आपको यहां पर ये भी बता दें कि राजकपूर और दिलीप कुमार बचपन के दोस्त थे। 1930 में दिलीप कुमार का परिवार चैंबूर में आकर बस गया था। दिलीप कुमार को पाकिस्तान की सरकार ने तमगा ए पाकिस्तान से नवाजा हुआ है। उनके चाहने वाले जितने भारत में हैं उतने ही पाकिस्तान में भी हैं। बॉलीवुड में उनके चर्चे बेहद आम रहे हैं, लेकिन इन पर फिर कभी बात करेंगे। उनकी कई फिल्मों लोगों के दिलों दिमाग पर छा गई थीं। मुग्ले आजम उनमें से ही एक थी।
बलराज साहनी
रावलपिंडी में 1 मई 1913 में जन्मे बलराज साहनी भी बड़े परिवार से ताल्लुक रखते थे। लाहौर के कॉलेज से उन्होंने इंग्लिश लिटरेचर में मास्टर डिग्री हासिल की थी। शुरुआत में वह अपने फैमिली बिजनेस में भी लगे रहे, लेकिन बाद में बॉलीवुड की राह पकड़ ली। उनके फिल्मी करियर में एक नहीं कई फिल्में मील का पत्थर साबित हुई हैं। अनुराधा, दो बीघा जमीन, काबुलीवाला, लाजवंती, वक्त सीमा, एक फूल दो माली का नाम शामिल है।
राज कपूर
पंजाबी हिंदू परिवार में जन्मे राजकपूर का बचपन ही थियेटर और फिल्मी दुनिया के बीच हुआ था। इसकी वजह उनके पिता पृथ्वीराज कपूर थे। पेशावर की कपूर हवेली आज भी इसकी गवाह है। हालांकि कुछ समय बाद ही वह पेशावर से शिफ्ट होकर मुंबई आ गए थे। यहीं पर उनकी पढ़ाई भी हुई और दिलीप कुमार से दोस्ती भी यहीं हुई थी। फिल्मों में जाने वाले वह अकेले ही नहीं थे बल्कि उनके बाद शशि कपूर, शम्मी कपूर ने भी फिल्मी चकाचौंध की दुनिया में काफी शोहरत पाई थी।
सुनील दत्त
6 जून 1928 में झेलम जिले के पंजाबी हिंदू परिवार में पैदा हुए सुनील दत्त महज पांच वर्ष के थे जब उनके पिता दीवान रघुनाथ दत्त का निधन हो गया था। 18 वर्ष की उम्र के दौरान भारत का बंटवारा हो गया और उन्हें भी इसका शिकार होना पड़ा। उस वक्त हर तरफ मजहबी झगड़े हो रहे थे। ऐसे में उनकी और उनके परिवार की जान बचाई याकूब ने। वह उनके पिता के सबसे करीबी दोस्त थे। किसी तरह से बचते बचाते सुनील दत्त का परिवार हरियाणा के यमुना नगर जिले में पहुंच गया और वहीं बस भी गया। बाद में वह लखनऊ चले गए जहां उन्होंने काफी लंबा समय गुजारा। वहां की गली अमीनाबाद इसकी गवाही देती है। यहीं से उन्होंने पढ़ाई पूरी की और फिर मुंबई की राह पकड़ ली। शुरुआती दौर में उन्होंने मुंबई की बेस्ट बसों में नौकरी भी की थी।
मनोज कुमार
पाकिस्तान के एबटाबाद में जन्मे मनोज कुमार ने बॉलीवुड की दुनिया में काफी नाम कमाया है। उनकी देशभक्ति फिल्मों की वजह से ही उन्हें भारत कुमार का नाम दिया गया। फिल्मी दुनिया में आने से पहले उनका नाम हरिकिशन गिरी गोस्वामी थी। देश के बंटवारे के समय मनोज कुमार महज दस वर्ष के थे। उनका परिवार भी उसी वक्त दिल्ली में शिफ्ट हो गया था। बंटवारे के बाद उनके और उनके परिवार के शुरुआती दिन काफी मुश्किल में बीते थे। दिल्ली के विजय नगर और किग्ज्वे कैंप के शरणार्थी कैंपों में उन्हें भी वक्त बिताना पड़ा था। इसके बाद वह पुराना राजेंद्र नगर में रहने लगे थे। बॉलीवुड की बात करें शहीद, उपकार, क्रांति जैसी कई देशभक्ति की फिल्मों की बदौलत वह बुलंदी पर पहुंचे थे।
राजेंद्र कुमार
पाकिस्तान के प्रांत पंजाब में जन्मे राजेंद्र कुमार के दादा जाने माने मिलिट्री कांट्रेक्टर थे। कराची में उनके पिता की टेक्सटाइल फैक्ट्री भी थी। लेकिन देश के विभाजन के बाद सब कुछ छोड़कर दूसरी जगह शिफ्ट होना पड़ा था। मुंबई आने पर राजेंद्र कुमार ने अपनी किस्मत को फिल्मों में आजमाना शुरू किया। लेकिन इसके लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी थी। आपको जानकर हैरत होगी कि वह कभी भी हीरो नहीं बनना चाहते थे। डायरेक्टर एचएस रवेल के सहायक के तौर पर उन्होंने करीब पांच वर्ष बिताए। इस दौरान उन्होंने पतंगा, सगाई और पॉकेटमार में रवेल के साथ काम किया। राजेन्द्र कुमार ने अपने फिल्मी सफर की शुरुआत 1950 की फिल्म जोगन से की जिसमें उनको दिलीप कुमार और नरगिस के साथ अभिनय करने का अवसर मिला। उनको 1957 में बनी मदर इंडिया से ख्याति प्राप्त हुयी जिसमें उन्होंने नरगिस के बेटे की भूमिका अदा की। 1959 की फिल्म गूंज उठी शहनाई की सफलता के बाद उन्होंने बतौर मुख्य अभिनेता नाम कमाया। 60 के दशक में उन्होंने काफी नाम कमाया। ऐसा कई बार हुआ जब उनकी 6-7 फिल्में एक साथ सिल्वर जुबली हफ्ते में होती थीं। इसी कारण से उनका नाम 'जुबली कुमार' पड़ गया।
विनोद खन्ना
पेशावर के पंजाबी हिंदू परिवार में 6 अक्टूबर 1946 को जन्मे विनोद खन्ना का बचपन काफी संघर्ष वाला रहा। उनके जन्म के कुछ समय बाद ही देश का बंटवारा हो गया जिसकी वजह से उनके परिवार को दूसरी जगह शिफ्ट होना पड़ा। बाद में उन्होंने मुंबई में अपना करियर फिल्मी दुनिया में तलाशा और कामयाब भी हुए।
अमरीश पुरी
अमरीश पुरी को बॉलीवुड में काफी शोहरत मिली। इसकी वजह ये भी थी कि उनके बड़े भाई मदन पुरी भी बॉलीवुड की जानी मानी हस्ती थीं। लाहौर में जन्मे अमरीश पुरी केएल सहगल के चचेरे भाई भी थे। विभाजन के बाद वह शिमला आ गए और यहीं से उनहोंने अपनी पढ़ाई भी शुरु की। बॉलीवुड की यदि बात करें तो शुरुआत में उन्हें छोटे-मोटे किरदार ही मिलते थे। लेकिन बाद में उन्होंने अपनी खुद की जगह बनाई। यही वजह है कि अमरीश पुरी एक समय हीरो से ज्यादा पसंद किए जाते थे। मिस्टर इंडिया के मोगेंबो को आजतक लोग याद करते हैं।
राज कुमार
राजकुमार का जन्म बलूचिस्तान में हुआ था। वह कश्मीरी पंडित थे। 1940 में वह मुंबई आ गए थे। यहां पर उन्होंने पुलिस में नौकरी भी की। एक दिन रात में गश्त के दौरान एक सिपाही ने राजकुमार से कहा कि हजूर आप रंग-ढंग और कद-काठी में किसी हीरो से कम नहीं है। इसके बाद ही राजकुमार का रुझान फिल्मों में करियर बनाने की तरफ हुआ। फिल्म निर्माता बलदेव दुबे की फिल्म 'शाही बाजार' के लिए उन्होंने अपनी पुलिस की नौकरी से इस्तीफा दे दिया। लेकिन फिल्म नहीं चली। वर्ष 1957 में प्रदर्शित महबूब ख़ान की फ़िल्म मदर इंडिया से उनको एक नई पहचान मिली। वर्ष 1959 में आई 'पैग़ाम', 'दिल अपना और प्रीत पराई-1960', 'घराना- 1961', 'गोदान- 1963', 'दिल एक मंदिर- 1964', 'दूज का चांद- 1964' जैसी फ़िल्मों में मिली कामयाबी के ज़रिये राज कुमार दर्शको के बीच अपने अभिनय की धाक जमाई। वर्ष 1965 में आई उनकी फिल्म काजल को जबरदस्त कामयाबी मिली। इसके अलावा 1965 में आई बीआर चोपड़ा की फ़िल्म वक्त में वह सभी का ध्यान अपनी और खींचने में कामयाब हुए। इस फिल्म में बोला गया उनका डॉयलॉग चिनाय सेठ जिनके घर शीशे के बने होते है वो दूसरों पे पत्थर नहीं फेंका करते लोगों की जुबान पर चढ़ गया था। इसके बाद भी उन्होंने कई जबरदस्त फिल्में की।
अमजद खान
बलूचिस्तान में पैदा हुए अमजद खान के पिता भी बॉलीवुड में जाने माने अभिनेता थे। कश्मीरी पंडित परिवार में पैदा हुए अमजद खान का परिवार 1940 के अंत में मुंबई में बस गया था। उन्होंने मुंबई पुलिस में नौकरी भी की। 1973 में उन्होंने हिंदुस्तान की कसम फिल्म से बॉलीवुड में शुरुआत की। इसके बाद आई शोले ने उन्हें रातोंरात शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचा दिया था। गब्बर सिंह का बॉलीवुड पर आतंक वर्षों तक बना रहा और आज भी इसको महसूस किया जाता है।
प्रेम चोपड़ा
पंजाबी खत्री परिवार में जन्मे प्रेम चोपड़ा का जन्म 23 सिंतबर 1935 को हुआ था। बंटवारे के बाद उनका परिवार शिमला आ गया। उनके पिता चाहते थे कि प्रेम डॉक्टर या फिर आईएएस बनें। लेकिन उन्होंने अपना करियर फिल्मों में बनाया।
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