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जमीनी जंग को पूरी तरह से बदलने में लगा है अमेरिका, हर किसी को रहना होगा तैयार

अगर दुनिया के सभी देशों ने अपनी रक्षा तकनीक में इजाफा नहीं किया तो वह दिन दूर नहीं जब अमेरिका इनको पूरी तरह से पंगू बना देगा।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 26 Aug 2018 02:51 PM (IST)Updated: Mon, 27 Aug 2018 06:00 AM (IST)
जमीनी जंग को पूरी तरह से बदलने में लगा है अमेरिका, हर किसी को रहना होगा तैयार
जमीनी जंग को पूरी तरह से बदलने में लगा है अमेरिका, हर किसी को रहना होगा तैयार

नई दिल्‍ली (जागरण्‍ा स्‍पेशल)। 'स्‍पेस वार' की थ्‍योरी धीरे-धीरे ही सही लेकिन रियेलिटी में बदलती दिखाई दे रही है। कभी इसका का नाम सुनते ही हमारे जहन में फिक्‍शन पर आधारित कुछ मूवी सामने आने लगती हैं। लेकिन अब ऐसा नहीं रहा है। जी हां, कल तक जो फिक्‍शन था वह आज रियलिटी के तौर पर सामने आ रहा है। साधारण शब्‍दों में यदि कहा जाए तो अमेरिका अब जमीनी जंग की सूरत को पूरी तरह से बदलने में लगा हुआ है। अभी तक जंग की सूरत में जवान आमने-सामने की लड़ाई में एक दूसरे को शिकस्‍त देने की कोशिश करते हैं, लेकिन आने वाला कल इस जमीनी युद्ध से बिल्‍कुल अलग होगा। यह युद्ध जमीन से करीब 500 किमी की ऊंचाई पर या उससे भी ऊपर लड़ा जाएगा। आप यह सब सुनकर हैरान जरूर हो सकते हैं, लेकिन आने वाले कल की हकीकत यही होगी। अंतरिक्ष में लड़े जाने वाले इस युद्ध के बाद जमीनी लड़ाई सिर्फ नाम मात्र की रह जाएगी।

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धरती से दूर होगी जंग
आप सोच रहे होंगे कि आखिर यह लड़ाइ कैसी होगी, क्‍योंकि अंतरिक्ष में तो न कोई इंसान है और न ही कोई देश। तो हम आपको इसकी हकीकत बता देते हैं। दरअसल, हर देश अंतरिक्ष में चक्‍कर काट रही सैटेलाइट या फिर उपग्रहों से मिली जानकारी के आधार पर अपनी सामरिक रणनीति तय करता है। इस पर ही किसी देश की अर्थव्‍यवस्‍था भी तय होती है। इतना ही नहीं हमारी रोजाना की दिनचर्या में भी इन तमाम सैटेलाइट्स का महत्‍व काफी है। फिर चाहे आप अपने मोबाइल के जरिए किसी से बात करते हों या फिर कंप्‍यूटर पर बैठकर दुनियाभर की खबरों पर नजर डालते हों। आपका मनोरंजन करने वाला एफएम रेडियो या टीवी भी इस पर ही काम करता है। कुल मिलाकर हमारे इर्दगिर्द की तमाम चीजें इसके जरिए ही चलती हैं। मिलाकर हम भी।

ऐसे करेगी काम तकनीक
सुरक्षा की बात करें तो सीमा पर खड़े जवान अपने जिस वायरलैस सेट के माध्‍यम से एक दूसरे को दिशा-निर्देश देते हैं वह भी इसी सैटेलाइट के जरिए ही काम करता है। दुनिया की सभी मिसाइल, हवाई जहाज, लड़ाकू विमान, ट्रेन, एटीएम, बैंक, मेट्रो इसी सैटेलाइट के दम पर आगे बढ़ते हैं। ऐसे में जरा सोचिए कि यदि इन सैटेलाइट को ही खत्‍म कर दिया जाए तो क्‍या होगा। यह कुछ ऐसा ही होगा कि आपको किसी घने जंगल में बिना घड़ी और फोन के छोड़ दिया जाए। जाहिर सी बात है कि ऐसे में आपको न तो दिशा का ही सही ज्ञान हो सकेगा और न ही अाप वहां से कभी निकल सकेंगे। ऐसे में अंजाम होगा सिर्फ - 'मौत'।

स्‍पेस वार का कंसेप्‍ट 
'स्‍पेस वार' भी कुछ ऐसा ही होगा जहां पर दुनिया के बड़े देशों के निशाने पर दुश्‍मन देशों की सैटेलाइट्स होंगी। इन सैटेलाइट्स को खत्‍म कर वह न सिर्फ उस देश का संपर्क पूरी दुनिया से काट देगा बल्कि उसको पूरी तरह से पंगू बनाकर रख देगा। इसका अर्थ होगा कि वहां पर हर क्षेत्र में अव्‍यवस्‍था फैल जाएगी। सुरक्षा की दृष्टि से यदि बात की जाए सेना को यही नहीं पता होगा कि उनके ऊपर कहां से क्‍या खतरा मंडरा रहा है। युद्धपोत अपना ही रास्‍ता भटक जाएंगे और दुश्‍मन का शिकार बन जाएंगे। पानी के नीचे चलने और दुश्‍मन की टोह लेने वाली सबमरीन खुद ही शिकार हो जाएंगी। एेसे पंगू बने देश की सेना के जवानों को मार गिराना दुश्मन के लिए बेहद आसान हो जाएगा। ऐसे देश के जवान सिर्फ दुश्‍मन देश के रहमों करम पर ही बचेंगे, वरना मारे जाएंगे।

चांद पर हमले की थी योजना
यह सब महज एक कल्‍पना नहीं है। यहां पर एक बात और बता देनी जरूरी होगी क्‍योंकि अंतरिक्ष कार्यक्रमों के शुरुआती दौर में अमेरिका की योजना चांद पर मिसाइल से हमला करने की थी। इसके पीछे वजह सिर्फ इतनी ही थी कि अमेरिका अपने इस सीक्रेट मिशन के तहत इससे होने वाले परिणाम जानना और आंकना चाहता था। लेकिन इस सीक्रेट मिशन पर वह अपने ही वैज्ञानिकों में एकराय नहीं बना सका था। इसके अलावा उसपर ऐसा न करने के लिए भी दबाव था। यही वजह थी कि उसको अपने कदम पीछे खींचने पड़े थे। लेकिन अब अमेरिका को 'स्‍पेस वार' करने से रोकपाना कई मायनों में मुश्किल होगा। अमेरिका की 'इलेक्‍ट्रॉमैग्‍नेटिक पल्‍स वेपन' तकनीक इसका ही एक हिस्‍सा मात्र है।

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