उत्तराखंड चुनाव: तो उत्तराखंड में इस बार नहीं होगा पैराशूट सीएम
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2017 में अब जिस तरह के सियासी समीकरण और संकेत कांग्रेस-भाजपा की तरफ से दिए गए हैं, उनसे लगता है कि इस बार कोई पैराशूट सीएम नहीं होगा।
देहरादून, [राज्य ब्यूरो]: उत्तराखंड के वजूद में आने के बाद शायद यह पहली दफा होगा कि सत्ता में चाहे कांग्रेस आए या भाजपा, मुख्यमंत्री निर्वाचित विधायकों में से ही चुना जाएगा। कांग्रेस मुख्यमंत्री हरीश रावत के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही है तो स्वाभाविक रूप से सत्ता में वापसी पर उनके सिर ही ताज सजेगा। उधर, भाजपा के प्रदेश चुनाव प्रभारी जेपी नड्डा ने भी साफ कर दिया कि मुख्यमंत्री का चयन निर्वाचित विधायकों में से ही किया जाएगा।
उत्तराखंड के साथ पैदाइशी यह विडंबना जुड़ी है कि यहां हर दफा मुख्यमंत्री ऊपर से थोपा जाता रहा है। बात राज्य की पहली अंतरिम सरकार की करें तो भाजपा ने बुजुर्ग पार्टी नेता नित्यानंद स्वामी को बतौर मुख्यमंत्री घोषित कर नौ नवंबर 2000 को शपथ दिलवा दी।
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स्वामी को इस कदर विरोध झेलना पड़ा कि वह अपना एक साल का कार्यकाल भी पूरा नहीं कर पाए और भगत सिंह कोश्यारी को अंतरिम सरकार का दूसरा मुख्यमंत्री बनाया गया। कोश्यारी ने नेतृत्व में भाजपा पहले विधानसभा चुनाव में गई, मगर कांग्रेस के हाथों सत्ता गंवा बैठी।
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वर्ष 2002 को पहला उत्तराखंड विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष हरीश रावत के नेतृत्व में लड़ा मगर हाईकमान ने मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी उस समय नैनीताल सीट का लोकसभा में प्रतिनिधित्व कर रहे बुजुर्ग कांग्रेसी नारायण दत्त तिवारी को। रावत समर्थकों ने पहले ही दिन से तिवारी का जो विरोध शुरू किया, वह पूरे पांच साल तक जारी रहा। हालांकि तिवारी अपने लंबे राजनैतिक अनुभव और वरिष्ठता के कारण पूरे पांच साल तक सत्ता में बने रहे।
वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को सत्ता मिली तो केंद्रीय नेतृत्व ने किसी निर्वाचित विधायक की बजाए तत्कालीन गढ़वाल सांसद भुवन चंद्र खंडूड़ी को मुख्यमंत्री बनाकर भेज दिया। अंतर्कलह ने सवा दो साल में ही खंडूड़ी को पद से रुखसत कर दिया मगर उनके उत्तराधिकारी रमेश पोखरियाल निशंक भी सवा दो साल ही मुख्यमंत्री पद पर रह पाए। खंडूड़ी दोबारा कुछ महीनों के लिए मुख्यमंत्री बने।
भाजपा ने 2012 का चुनाव खंडूड़ी के नेतृत्व में लड़ा मगर सत्ता गंवा दी। कांग्रेस को सरकार बनाने का मौका मिला लेकिन एक दफा फिर विधायक के स्थान पर तत्कालीन टिहरी सांसद विजय बहुगुणा को हाईकमान ने मुख्यमंत्री का पद सौंप दिया। फरवरी 2014 में बहुगुणा को हटाया गया तो केंद्र में कैबिनेट मंत्री हरीश रावत को कुर्सी सौंप दी गई। यानी हर कोई पैराशूट।
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अब जिस तरह के सियासी समीकरण और संकेत कांग्रेस-भाजपा की तरफ से दिए गए हैं, उनसे लगता है कि पहली दफा विधानसभा चुनाव के बाद किसी निर्वाचित विधायक को मुख्यमंत्री बनने का अवसर मिल सकेगा।
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