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जब हिमालय पुत्र को हराने में इंदिरा गांधी ने झोंकी ताकत, नहीं मिली जीत

1982 में हिमालय पुत्र हेमवती नंदन बहुगुणा को हराने में इंदिरा गांधी सरकार ने पूरी ताकत झोंक दी थी। पहाड़ की जनता ने बहुगुणा की लड़ाई को सम्मान की दृष्टि से देखा और कांग्रेस हार गई।

By BhanuEdited By: Published: Sat, 30 Mar 2019 12:09 PM (IST)Updated: Sat, 30 Mar 2019 12:38 PM (IST)
जब हिमालय पुत्र को हराने में इंदिरा गांधी ने झोंकी ताकत, नहीं मिली जीत
जब हिमालय पुत्र को हराने में इंदिरा गांधी ने झोंकी ताकत, नहीं मिली जीत

कोटद्वार, अजय खंतवाल। पहाड़ को केंद्र में प्रतिनिधित्व नहीं मिला तो न सिर्फ पार्टी छोड़ दी, बल्कि बगैर एक क्षण गंवाए लोकसभा सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया। उपचुनाव हुए तो सामने पूरी कांग्रेस और केंद्र सरकार खड़ी नजर आई, लेकिन मुद्दा पहाड़ की आन-बान-शान का था। समर्थक पिटते रहे, लेकिन हिमालय पुत्र हेमवती नंदन बहुगुणा ने प्रताड़ित समर्थकों को ही अपनी ताकत बना डाला। बात पहाड़ के सम्मान की थी, जिसे पहाड़ की जनता ने समझा और नतीजा बहुगुणा के पक्ष में आया।

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यह तस्वीर है गढ़वाल संसदीय सीट में हुए 1982 के उस उपचुनाव की, जिसमें कांग्रेस की पूरी ताकत भी बहुगुणा की आंधी को नहीं रोक पाई। 1982 के उस उपचुनाव में हेमवती नंदन बहुगुणा के मुख्य चुनाव अभिकर्ता का दायित्व निभाने वाले कोटद्वार निवासी अमीर अहमद कादरी के चेहरे पर आज भी उन क्षणों को याद कर मुस्कराहट बिखर आती है। 

बकौल कादरी, 1980 के चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर गढ़वाल संसदीय सीट से सांसद बने हेमवती नंदन बहुगुणा को इंदिरा गांधी का पहाड़ के प्रति उपेक्षित रवैया इस कदर नागवार गुजरा कि उन्होंने छह माह बाद ही पार्टी व लोकसभा सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया। 

करीब दो वर्ष बाद गढ़वाल संसदीय सीट पर उपचुनाव हुआ, जिसमें कांग्रेस ने चंद्रमोहन ङ्क्षसह नेगी को बतौर प्रत्याशी मैदान में उतारा, जबकि बहुगुणा जनता पार्टी (एस) से चुनावी मैदान में थे व उनका चुनाव चिह्न तराजू था।

अपने प्रत्येक भाषण में बहुगुणा कहते थे कि मेरा प्रतीक तराजू है, जो न्याय का पैमाना है, लेकिन कांग्रेस का प्रतीक हाथ है, जिसकी सभी पांच उंगलियां असमान हैं और उनसे केवल अन्याय और असंतुलन की उम्मीद है। 

इधर, बहुगुणा को हराने के लिए इंदिरा गांधी ने पूरी ताकत झोंक दी। हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब सहित नौ राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने गढ़वाल संसदीय सीट पर ही डेरा डाल दिया था। पूरा सरकारी सिस्टम इंदिरा के साथ जुटा था। 

इंदिरा गांधी लगातार पूरे पहाड़ में हवाई दौरे कर जनसभाएं कर रही थी, जबकि हेमवती नंदन बहुगुणा कभी कार तो कभी मोटर साइकिल पर सवार हो संसदीय क्षेत्र का भ्रमण कर रहे थे। कांग्रेस जहां 'जय इंदिरा-जय गढ़वाल' का नारा दे रही थी, वहीं बहुगुणा 'पहाड़ टूटता है, झुकता नहीं' की बात कह उपचुनाव को पहाड़ के सम्मान से जोड़ रहे थे। 

कादरी बताते हैं कि इस ऐतिहासिक चुनाव में कई जगह कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने बहुगुणा समर्थकों की पिटाई भी की, लेकिन बहुगुणा ने इन कार्यकर्ताओं को ही अपनी ताकत बना जनता के बीच खड़ा कर दिया। नतीजा, जनता पूरी तरह बहुगुणा के पक्ष में उठ खड़ी हुई और कांग्रेस का हार का सामना करना पड़ा।

चुनाव की विस्तृत जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें

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