Loksabha Election 2019: उत्तराखंड के चुनावी रण में रणबांकुरों की भूमिका है अहम
उत्तराखंड में सैन्य मतदाताओं की चुनाव में भूमिका काफी हद तक निर्णायक होती आई है। यही वजह है कि सभी दल उन्हें लुभाने की कोशिशों में जुटे रहते हैं।
देहरादून, कुशल कोठियाल। उत्तराखंड की पांच लोकसभा सीटों के महासमर में भाजपा- कांग्रेस हर बार की तरह इस बार भी आमने सामने है। चुनावी लड़ाई में सैन्य मतदाताओं की भूमिका काफी हद तक निर्णायक होती आई है। बारह फीसद सैन्य मतदाता वाले राज्य में राजनीतिक दलों का इन्हें लुभाने का मकसद केवल इनका एकमुश्त मत हासिल करना ही नहीं होता, बल्कि चुनावी फिजा को अपने हक में बनाना भी होता है। इस बार पुलवामा हमले व इसके बाद बालाकोट एयर स्ट्राइक का असर चुनावी माहौल में साफ दिखाई-सुनाई दे रहा है। एयरस्ट्राइक के बाद कांग्रेस के राष्ट्रीय बयानवीरों की बदजुबानी ने सैन्य मतदाताओं को ज्यादा मुखर किया है।
राज्य में कांग्रेस के प्रत्याशी इस तरह की बयानबाजी से खुद को असहज महसूस कर रहे हैं, तो भाजपाई चुनावी कार्यक्रमों में छप्पन इंच के सीने का हवाला देना नहीं भूल रहे। राज्य की इस स्थिति को भापंते हुए ही कांग्रेस के शिखर पुरुष राहुल गांधी ने देहरादून की चुनावी रैली में उत्तराखंड की सैन्य परंपरा को बार-बार सलाम किया, आने वाले दिनों में होने वाली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों में भी स्वाभाविक रूप से यही होगा।
राज्य में सैन्य पृष्ठभूमि से जुड़े मतदाताओं की संख्या बारह फीसद से अधिक है, साथ ही यह वह जमात है जो पर्वतीय समाज में सजग, सतर्क व सक्रिय भी है। जाहिर है कि इन क्षेत्रों में पूर्व सैनिक काफी हद तक ओपीनियन मेकर भी होते हैं। चुनावी राजनीति में इस वोटबैंक का महत्व समझते हुए ही प्रमुख सियासी दलों ने सैन्य प्रकोष्ठ बनाए हैं। उत्तराखंड राज्य की लड़ाई में पूर्व सैनिकों ने सड़कों पर निकल कर आंदोलन को धार दी थी और राज्य बनने के बाद भी ये बड़े दबाव समूह के रूप में मौजूद हैं।
राज्य गठन से पहले से ही इस पर्वतीय क्षेत्र की सियासी फितरत राष्ट्रीय धारा में मतदान करने की रही है। उत्तराखंड राज्य बन जाने के बाद भी चुनाव के दौरान क्षेत्रीय मुद्दे गौण व राष्ट्रीय मुद्दे ही हावी रहे हैं। प्रदेश में राजनीतिक जागरूकता, साक्षरता, जातीय खेमों से स्वतंत्र राजनीति के अलावा सैन्य पृष्ठभूमि भी इसकी एक वजह रही है। भाजपा इस मत व्यवहार को राष्ट्रवाद की धार देने में काफी हद तक कामयाब रही। मेजर जनरल (सेनि) सांसद भुवन चंद्र खंडूड़ी ने भी फौजी परिवारों को भाजपाई फोल्ड में लाने का काम किया। इसी तथ्य के मद्देनजर उनके बेटे मनीष खंडूडी को कांग्रेस से गढ़वाल सीट का प्रत्याशी को बड़ी सियासी कामयाबी माना जा रहा है और इसीलिए राहुल गांधी अपनी रैली में भाजपा सांसद खंडूडी की शान में कसीदे पढ़ गए। खंडूडी के सैन्य वोटरों को सहेजने के लिए पार्टी में उनके खास तीरथ सिंह रावत को भाजपा प्रत्याशी बना दिया गया, जिनका पिछले विधानसभा चुनाव में टिकट काट दिया गया था।
सबसे अधिक सैन्य मतदाताओं वाली संसदीय सीट
राज्य की पांच संसदीय सीटों में से पौड़ी गढ़वाल, टिहरी और अल्मोड़ा, तीन में सैन्य वोटर निर्णायक स्थिति में है। भाजपा-कांग्रेस दोनों दलों के वार रूम में सैन्य बिरादरी के वोटों को लुभाने के लिए रणनीति बन रही है। पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में वन रैंक वन पेंशन के मुद्दे पर दोनों दलों ने सैन्य मतों को रिझाने का प्रयास किया था। इस बार भाजपा फिर इस मुद्दे को अपने रिपोर्ट कार्ड में शामिल करेगी। इसके साथ ही राष्ट्रवाद को हवा देने की भी योजना बन रही है। कांग्रेस को इसी हवा में चतुरता के साथ भाजपा की पिच पर खेलना पड़ रहा है।
सैन्य पृष्ठभूमि के कुल मतदाता- 258119
पूर्व सैनिक- 126540
वीर नारियां- 42979
सर्विस वोटर- 88600
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