Move to Jagran APP

हरिद्वार में कमल के सामने हाथ, हाथी ने बनाया त्रिकोणीय मुकाबला

हरिद्वार संसदीय सीट पर यूं तो कई मैदान में उतरे हैं लेकिन निर्णायक युद्ध भाजपा कांग्रेस और सपा-बसपा गठबंधन के महारथियों के बीच होता दिख रहा है।

By BhanuEdited By: Published: Thu, 28 Mar 2019 12:00 PM (IST)Updated: Thu, 28 Mar 2019 12:00 PM (IST)
हरिद्वार में कमल के सामने हाथ, हाथी ने बनाया त्रिकोणीय मुकाबला

हरिद्वार, जेएनएन। हरिद्वार संसदीय सीट पर चुनावी बिसात बिछ चुकी है। सियासी सेनाएं एक-दूसरे पर हमले को तैयार हैं। चुनाव मैदान में यूं तो कई मैदान में उतरे हैं, लेकिन निर्णायक युद्ध भाजपा, कांग्रेस और सपा-बसपा गठबंधन के महारथियों के बीच होता दिख रहा है। गठबंधन ने भाजपा और कांग्र्रेस दोनों की चिंता बढ़ाई हुई है। यदि ताकत पर गौर करें तो भाजपा-कांग्रेस के पास मजबूत संगठन है, जबकि महागठबंधन कैडर के भरोसे मैदान में हैं। 

loksabha election banner

हरिद्वार सीट पर लोगों की पसंद राष्ट्रीय दल ही अधिक रहे। अभी तक इस सीट पर पांच बार भाजपा ने बाजी मारी है, जबकि कांग्रेस चार बार जीत हासिल करने में सफल रही। लोकदल और सपा ने भी एक-एक बार यहां जीत हासिल की। यह जरूर है कि 1991 के बाद इस सीट पर भाजपा का दबदबा बना।

इतना ही नहीं, बल्कि हरिद्वार की सियासत बसपा सुप्रीमो मायावती व लोक जनशक्ति पार्टी प्रमुख रामविलास पासवान को भी जमीन दिखा चुकी है। 1987 के उपचुनाव में इन दोनों दिग्गज नेताओं को हार का सामाना करना पड़ा था। सामाजिक समीकरण की दृष्टि से यहां सभी धर्म, जाति, वर्ग व समुदाय के लोग हैं। ऐसे में गंगा-जमुनी तहजीब की इस सीट पर जीत का समीकरण बनाना चुनौती ही रहा है। 

चुनाव में भाजपा ने निर्वतमान सांसद व पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को उतारा है तो कांग्रेस ने पूर्व विधायक अंबरीष कुमार पर दांव लगाया है। महागठबंधन प्रत्याशी के रूप में अंतरिक्ष सैनी ताल ठोक रहे हैं। जाहिर है तीनों प्रत्याशियों की अपनी सियासी ताकत है तो कुछ कमजोरियां भी हैं। 

संगठन की दृष्टि से भाजपा सबसे अधिक मजबूत नजर आती है। कांग्रेस संगठन में एकजुटता बनाए रखने की चुनौती बनी है, जबकि महागठबंधन कैडर पर काफी हद तक निर्भर है।    

भाजपा प्रत्याशी: ताकत

-मजबूत संगठन, लोकसभा में भाजपा के सर्वाधिक 11 विधायक होना, निकायों व पंचायतों में भी भाजपा का दबदबा।

-निवर्तमान सांसद, पूर्व मुख्यमंत्री, जनता के बीच सक्रियता, संवाद साधने में माहिर। 

-केंद्र व राज्य सरकार के कामों की ताकत, मोदी मैजिक, भाजपा के बड़े नेताओं में शामिल, कार्यकर्ताओं से ठीक तालमेल। 

कमजोरी

-एंटी इनकंबेंसी की चुनौती

-विकास को लेकर कुछ क्षेत्रों में नाराजगी

-चुनाव में कुछ कार्यकर्ताओं का निष्क्रिय होना

कांग्रेस प्रत्याशी: ताकत

-मुद्दों को जनता के सामने मजबूती से रखने की कला, अच्छे वक्ता, सियासी सक्रियता। 

-सांगठानिक कौशल के साथ ही पार्टी के आला नेताओं के साथ बेहतर तालमेल।  

-समर्थकों के साथ ठीक समन्वय, प्रचार को गति देने में माहिर।

कमजोरी

- लंबे सियासी जीवन में कांग्रेस से अंदर-बाहर होने के कारण कार्यकर्ताओं से कमजोर तालमेल।

-पार्टी में गुटीय नेताओं का हावी होना और कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने की चुनौती।

-हरिद्वार शहर तक ही राजनीति केंद्रित रखने से पूरे क्षेत्र में मजबूत पहचान नहीं बन पाना।

महागठबंधन प्रत्याशी: ताकत

-बसपा का कैडर और सपा से गठबंधन होना।

-चिकित्सा क्षेत्र में होने के कारण सामाजिक कार्यों में सक्रियता।

-सियासत में लगातार सक्रिय रहना और चुनाव की तैयारियों को प्रतिद्वंद्वियों से पहले अंतिम रूप देना।

कमजोरी

-बसपा व सपा का हरिद्वार में कमजोर सांगठानिक ढांचा, दोनों दलों में मजबूत समन्वय का अभाव। 

-पूरे संसदीय क्षेत्र में स्थापित बसपा नेता के रूप में मजबूत पहचान नहीं होना

-चुनावी दृष्टि से ही चुनिंदा मुद्दों पर सक्रिय दिखना। 

यह भी पढ़ें: पूर्व विधायक ओमगोपाल रावत की भाजपा में घर वापसी

यह भी पढ़ें: मैं भी चौकीदार' कैंपेन के तहत पांचों लोकसभा में सीधा संवाद करेंगे पीएम मोदी

यह भी पढ़ें: लोकसभा चुनाव: उत्तराखंड में दांव पर भाजपा की साख और कांग्रेस का वजूद


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.