लोकसभा चुनाव: उत्तराखंड में दांव पर भाजपा की साख और कांग्रेस का वजूद
उत्तराखंड में देखें तो यह चुनाव केंद्र व राज्य की सत्ता पर आसीन भाजपा के लिए अपनी साख बनाए रखने के लिहाज से महत्वपूर्ण है तो कांग्रेस के सामने अपना वजूद कायम रखने की चुनौती है।
देहरादून, विकास धूलिया। सत्रहवीं लोकसभा के लिए होने जा रहे आमचुनाव को मैदान सज चुका है और महारथी मोर्चे पर तैनात हो गए हैं। उत्तराखंड के परिप्रेक्ष्य में देखें तो यह चुनाव केंद्र व राज्य की सत्ता पर आसीन भाजपा के लिए अपनी साख बनाए रखने के लिहाज से महत्वपूर्ण है तो कांग्रेस के सामने अपना वजूद कायम रखने की चुनौती है।
भाजपा अपनी केंद्र व राज्य सरकारों के कामकाज को कसौटी पर कसते हुए मजबूत देशव्यापी सांगठनिक नेटवर्क के बूते जनादेश हासिल करने की राह पर है तो कांग्रेस को सबसे बड़ा भरोसा भाजपा की केंद्र व राज्य सरकार के खिलाफ संभावित एंटी इनकंबेंसी फैक्टर का है।
उत्तराखंड में अमूमन चुनावी मुकाबले में भाजपा और कांग्रेस ही आमने-सामने रहती आई हैं। उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद के तीन आमचुनावों पर ही नजर डालें तो इसकी तस्दीक होती है। वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के हिस्से तीन और कांग्रेस व सपा के हिस्से एक-एक सीट आई।
यानी चार सीटों पर आमने-सामने का मुकाबला भाजपा व कांग्रेस के बीच रहा। केवल हरिद्वार संसदीय सीट पर मुख्य मुकाबले में सपा व बसपा रही और जीत मिली सपा को। इसके अलावा आज तक कभी भी सपा और बसपा उत्तराखंड में किसी भी सीट पर मुख्य मुकाबले का हिस्सा नहीं बन पाईं।
वर्ष 2009 में सीधी टक्कर में पांचों सीटें कांग्रेस और वर्ष 2014 में भाजपा को हासिल हुईं। इस आमचुनाव में भी कमोवेश यही स्थिति है। हालांकि पहली बार सपा-बसपा गठबंधन में चुनाव लड़ मुकाबले का तीसरा हिस्सा बनने की मशक्कत कर रही हैं।
मैदानी भूगोल की दो संसदीय सीटों हरिद्वार व नैनीताल पर यह गठबंधन चुनावी समीकरणों को कुछ हद तक प्रभावित कर सकता है। यह बात दीगर है कि गठबंधन में जो पौड़ी गढ़वाल सीट सपा को मिली, उस पर उसने प्रत्याशी ही नहीं उतारा, जबकि बसपा शेष चार सीटों पर मैदान में है। कहने को तो उत्तराखंड क्रांति दल भी सभी पांचों सीटों पर चुनाव लड़ रहा है, लेकिन उसकी भूमिका बस वोट कटवा के रूप में ही देखी जा रही है।
भौगोलिक लिहाज से देखा जाए तो राज्य की पांच में से दो सीटें पौड़ी गढ़वाल व पिथौरागढ़ पर्वतीय भूगोल की हैं, जबकि हरिद्वार सीट पूरी तरह मैदानी है। टिहरी व नैनीताल लोकसभा सीट पहाड़ और मैदान, दोनों में विस्तृत हैं।
सामाजिक समीकरणों पर नजर डालें तो राज्य की आबादी का लगभग 85 फीसद ङ्क्षहदू, 11.92 फीसद मुस्लिम, 2.49 फीसद सिख, 0.32 फीसद ईसाई, 0.15 फीसद बौद्ध, 0.11 फीसद जैन हैं। अनुसूचित जाति लगभग 18 फीसद व अनुसूचित जनजाति लगभग तीन फीसद है।
पार्टियों के मजबूत व कमजोर पक्ष
भाजपा का मजबूत पक्ष
-प्रधानमंत्री मोदी का चेहरा
-प्रदेश में केंद्र की योजनाएं
-मजबूत सांगठनिक नेटवर्क
भाजपा का कमजोर पक्ष
-प्रत्याशियों का चयन
-दोहरी एंटी इनकंबेंसी
-अत्यधिक आत्मविश्वास
कांग्रेस का मजबूत पक्ष
-डबल एंटी इनकंबेंसी फैक्टर
-राहुल गांधी का युवा नेतृत्व
-उत्तराखंड में एकमात्र विपक्ष
कांग्रेस का कमजोर पक्ष
-प्रदेश में सर्वमान्य नेतृत्व का अभाव
-कमजोर सांगठनिक ढांचा
-कुछ कमजोर प्रत्याशी
राज्य की पांच सीटों पर मत प्रतिशत का विवरण
टिहरी लोकसभा सीट
2004
भाजपा-20
कांग्रेस-19
बसपा-01 से भी कम
2009
कांग्रेस-22
भाजपा-18
बसपा-06
2014
भाजपा-33
कांग्रेस-18
आप-01
पौड़ी गढ़वाल लोकसभा सीट
2004
भाजपा-23
कांग्रेस-19
बसपा-001 से भी कम
2009
कांग्रेस-21
भाजपा-20
बसपा-03
2014
भाजपा-32
कांग्रेस-17
बसपा-01 से भी कम
हरिद्वार लोकसभा सीट
2004
सपा-17
बसपा-13
भाजपा-12
2009
कांग्रेस-25
भाजपा-15
बसपा-14
2014
भाजपा-36
कांग्रेस-25
बसपा-06
अल्मोड़ा लोकसभा सीट
2004
भाजपा-22
कांग्रेस-21
उक्रांद-02
2009
कांग्रेस-18
भाजपा-17.5
बसपा-04
2014
भाजपा-27
कांग्रेस-20
बसपा-02
नैनीताल लोकसभा सीट
2004
कांग्रेस-45
भाजपा-37
बसपा-08
2009
कांग्रेस-43
भाजपा-30
बसपा-18
2014
भाजपा-39
कांग्रेस-21
बसपा-03
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