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    Exclusive Interview: डिक्शनरी में जितने कड़वे और गंदे शब्द होंगे, वो सब मेरे बारे में बोले गये- पीएम मोदी

    By Sanjeev TiwariEdited By:
    Updated: Tue, 09 Apr 2019 09:00 AM (IST)

    डिक्शनरी में जितने कड़वे और गंदे शब्द होंगे वो सब मेरे बारे में बोले गये लेकिन दुख इस बात का है कि देश का स्वतंत्र मीडिया इसे बैलेंस करने वाली स्टोरिय ...और पढ़ें

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    Exclusive Interview: डिक्शनरी में जितने कड़वे और गंदे शब्द होंगे, वो सब मेरे बारे में बोले गये- पीएम मोदी

    नई दिल्ली (जेएनएन)। प्रधानमंत्री ने दैनिक जागरण के वरिष्ठ कार्यकारी संपादक प्रशांत मिश्र, संपादक, उत्तर प्रदेश आशुतोष शुक्ल और राष्ट्रीय ब्यूरो प्रमुख आशुतोष झा से लंबी बात की। मुख्य अंश :

     - हाल ही में मायावती ने उत्तर प्रदेश में भाषण दिया कि मुसलमान एक होकर वोट दें? आप इसे कैसे देखते हैं?

    जो लोग सेक्युलरिज्म के नाम पर घोर सम्प्रदायवाद करते हैं, कभी छुपकर करते हैं, कभी खुलेआम करते हैं। अब पराजय उनको इतना परेशान कर रही है कि अपनी जमीन तलाशने के लिए उन्हें ऐसी हरकतें करनी पड़ रही हैं। मायावती अपनी डूबती नैया बचाने के लिए किसी संप्रदाय विशेष से वोट मांगने के लिए अपील करें तो यह उनकी मजबूरी है। उन्हें परिणाम सामने दिख रहा है। असल चिंता का विषय यह है जो अपने आप को सेक्यूलरिज्म का ठेकेदार मानते हैं, वे पिछले 24 घंटे से चुप हैं। क्या यह सेक्यूलिरज्म के अनुकूल की भाषा है। केरल में सुरेश गोपी हमारे उम्मीदवार हैं। वहां के जाने माने एक्टर हैं। उन्होंने सबरीमाला पर कुछ बोला तो उनकी आलोचना करने लोग जमा हो गए। ऐसा क्यों? आप ऐसे अनेक मामले देख सकते हैं।

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     - उत्तर प्रदेश में आप अपना मुख्य विरोधी किसे मानते हैं, कांग्रेस या महागठबंधन को?

    किसी को नहीं। दोनों अंतरविरोधों से ग्रस्त हैं और लड़ाई हार चुके हैं।

     -भाषा की मर्यादा पर सवाल उठ रहे हैं। आप पर तीखे आरोप लगाये जा रहे है। इसका कोई खास कारण?

     डिक्शनरी में जितने कड़वे और गंदे शब्द होंगे, वो सब मेरे बारे में बोले गये लेकिन दुख इस बात का है कि देश का स्वतंत्र मीडिया इसे बैलेंस करने वाली स्टोरियां बनाने लगता है। यदि मैं नामदार और कामदार कहता हूं तो यह गाली नहीं हो सकती लेकिन इसके जवाब में विरोधी जिन शब्दों का प्रयोग करते हैं, वह ठीक नहीं। मीडिया को भी बुरे को बुरा कहना चाहिए। राहुल भी इधर कई व्यक्तिगत आरोप लगा रहे हैं। शायद उनके रणनीतिकारों ने उन्हें सिखाया होगा कि मोदी के विरोध में ऐसा बोलो। वही जाने लोग ऐसा किसलिए बोल रहे? रणनीतिकारों ने उन्हें सिखाया होगा कि अगर मोदी का आभामंडल यदि तोडऩा है तो मोदी को कुछ भी बोल कर कोशिश करो। हो सकता है कि दुनिया के कुछ दूसरे देशों में इस तरह की बात चल जाए लेकिन भारत इन चीजों को स्वीकृति नहीं देगा।

    -यूपी में आप किससे मुकाबला मानते हैं...गठबंधन से या कांग्रेस से ?

    उत्तर प्रदेश में कोई मुकाबला ही नहीं है। अगर वे लोग मुकाबले की स्थिति में होते तो इस प्रकार मुस्लिम वोटों के लिए उन्हें अपील नहीं करना पड़ती। उनके लिए अस्तित्व की लड़ाई है, बचने की कोशिश हो रही है।

    - राष्ट्रवाद आपकी पार्टी का एक बड़ा एजेंडा है। अभी जिस तरह से पाकिस्तान के साथ एक छोटे युद्ध की स्थिति बनी है तो क्या इससे भाजपा की राष्ट्रवाद की नीति को और धार मिली है?

    देखिए राष्ट्रवाद की परिभाषा को लोग पाकिस्तान से जोड़ कर देखते हैैं, यह देश में एक बड़ी भ्रांति है। जब मैैं भारत माता की जय बोलता हूं तो वह राष्ट्रवाद है। लेकिन जब मैं हर गरीब देशवासियों को रहने के लिए घर दूं, जब भारत माता को स्वच्छ करने के लिए बड़ा अभियान चलाऊं, जब किसानों के हितोंं के लिए काम करूं, जब बीमार लोगों के लिए आसानी से इलाज कराने के लिए आयुष्मान भारत जैसी स्कीमें लागू करें तो यह सब भाजपा के लिए और मेरे लिए राष्ट्रवाद है। गांव का विकास क्या राष्ट्रवाद नहीं है। राष्ट्रवाद को सीमित न किया जाए, इसके बड़े व्यापक अर्थ हैं।

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    - फिल्म उद्योग और थिएटर की करीब 600 हस्तियां या कुछ दूसरे क्षेत्र के लोगों ने भाजपा के खिलाफ वोट करने की अपील की है, इसे कैसे देखते हैं?

    ये वही लोग हैैं जो वर्ष 2014 में थे। अच्छी बात यह है कि उनकी संख्या बढ़ नहीं रही है। इसका साफ मतलब है कि मैैं अच्छा काम कर रहा हूं और वे गलत हैैं।

     - पाकिस्तान के साथ आपके अच्छे अनुभव भी रहे और बाद में तल्ख अनुभव भी रहे, क्या आप समझते हैैं कि भारत व पाकिस्तान के रिश्ते नहीं सुधर सकते?

    ऐसा है भारत जितना शक्तिशाली होगा उतना ही इच्छित परिणाम मिलेगा। इसलिए हमारा पूरा फोकस भारत को शक्तिशाली बनाने में लगाना चाहिए। हर चीज को पाकिस्तान से जोड़ कर नहीं देखना चाहिए और इस मानसिकता से बाहर निकलना चाहिए। खेल का ही उदाहरण लीजिए तो अगर सिर्फ भारत पाकिस्तान के खेल में ही रुचि लेते रहे तो हम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दूसरे खेल में नहीं बढ़ पाएंगे। जहां तक पाकिस्तान के साथ समस्याओं का सवाल है तो उसे सुलझाने के लिए जो भी रास्ते हैैं उसे देखा जाएगा।

    - वाजपेयी सरकार के वक्त सेना को सीमा पार करने पर पाबंदी थी। आपके लिए पाकिस्तान के अंदर घुसकर सैन्य कार्रवाई करने के बारे में फैसला करना कितना मुश्किल था?

    कई मामलो में फैसला नहीं करना ज्यादा मुश्किल था। अगर मैं फैसला नहीं करता तो यह अन्याय होता। अभी मैैं मानता हूं कि आतंकवाद को खत्म किये बिना इस देश का भला नही होगा। पिछले 40 वर्षों में हम आतंकवाद के हाथों काफी कुछ भुगत चुके हैैं। इसकी वजह से मंदिरों तक को सुरक्षा देनी पड़ी है। बड़ी संख्या में सार्वजनिक जीवन से जुड़े लोगों को सुरक्षा देनी पड़ रही है। याद कीजिए जब आतंकवाद नहीं था तो लोग कितनी सहज जिंदगी जीते थे। सुख चैन की वही जिंदगी जीने के लिए आतंकवाद का खात्मा करना ही होगा। जो भी मानवता में विश्वास करता हो उसे इसे एक हो कर आतंकवाद को खत्म करना होगा। साथ ही यह भी ध्यान रखना होगा कि आतंंकवाद का मूल है उस पर वार करना होगा। उपर से टहनियों को काटने से काम नहीं चलेगा। हमारी नीति साफ है कि जिस तरह से 26 नवंबर के हमले के बाद चुप बैठे रहे उस तरह से चुप नही बैठेंगे। यह नई सरकार है, नया देश है।

    - तो क्या माना जाए कि अब यह न्यू नार्मल हो गया?

    हां, गलत होगा तो हम छोड़ेंगे नहीं। 

     - जिस तरह के मुद्दे चुनाव में हावी हो रहे हैं क्या विकास का मुद्दा भटक रहा है?

    नहीं, आज भी विकास के मुद्दों पर चुनाव चलता है। मैं जो भी भाषण देता हूं उसमें 40 मिनट में 35 मिनट विकास पर बात होती है। पांच मिनट ही मैंने राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दों पर बात की लेकिन मीडिया इन पांच मिनट के मुद्दों को ही उठाएगा। कई बार मीडिया व्यंग्य को भी इस तरह से उछाल देता है जो दुर्भाग्यपूर्ण होता है। बेहद सहजता से कही गई बात को भी टीआरपी की वजह से दूसरा रंग दे दिया जा रहा है। इससे डर भी लगता है। गुजरात का एक अनुभव बताता हूं कि एक बार भाषण में किसी दूसरे परिप्रेक्ष्य में मैैंने बिल्ली की बात कही थी लेकिन अगले दिन मीडिया में यह खबर छपी कि मैंने सोनिया गांधी को बिल्ली कहा था। संसद में एक दिन हंसी ठहाकों की आïवाज आ रही थी और मेरे भाषण को बाधित करने की कोशिश हो रही थी। सभाध्यक्ष ने माननीय सांसदों को रोकने की कोशिश तो मैंने कहा कि रहने दीजिए, रामायण के दिनों के बाद इस तरह की हंसी सुनाई दे रही है। मैैंने सहज भाव से कहा था और लेकिन कई दिनों तक बाल की खाल निकाली जाती रही।

    -आपकी छवि जिद्दी नेता की है, है या बना दी गई है?

    मैं चाहूंगा कि मूल्यांकन मैं खुद न करूं। कभी करना भी नहीं चाहिए और न ही ऐसा इंसान मैंने देखा है जो अपना मूल्यांकन कर सके। मेरी कोशिश है आप लोग दर्पण बनकर मेरा मूल्यांकन करें।

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