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    Lok Sabha Election 2024: सियासत में अजब-गजब नजारे; कहीं टिकट कटने पर भी 'संतोष' तो कहीं नाम का एलान होने के बाद कर दी बेवफाई

    Lok Sabha Election 2024 जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव की तारीखें नजदीक आ रही है सियासी उठापटक भी तेज हो चली है। टिकट वतरण के बाद असंतुष्ट नेताओं को मनाने का दौर जारी है। इसमें कुछ पार्टियों का चुनावी प्रबंधन कुशल नजर आ रहा है तो कुछ पार्टियां अभी भी पशोपेश में ही जूझ रही हैं। पढ़िए सियासी खेल के अजब-गजब नजारे...

    By Jagran News Edited By: Sachin Pandey Updated: Fri, 29 Mar 2024 12:35 PM (IST)
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    Lok Sabha Election 2024: संतोष गंगवार बरेली से आठ बार सांसद रह चुके हैं।

    चुनाव डेस्क, नई दिल्ली। चुनावी महासमर के बीच राजनीति के नए-नए खेल तो देखने को मिलते ही हैं। एक पार्टी में दिग्गज टिकट कटने के बाद भी 'संतोष' कर लेतें हैं, तो वहीं दूसरी पार्टी में टिकट मिलने के बाद भी प्रत्याशी पाला बदल लेते हैं। इसी बीच अपने चिर-परिचित अंदाज में 'दीदी' एक बार फिर अपने दांव से सबको चौंका रही हैं।

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    ‘झुमका’ गिर जाए तो अफसोस करने के बजाय संतोष कर लेना ही बुद्धिमानी है। सो बरेली के राजनीतिक बाजार में नौंवी बार घूमने की तैयारी कर रहे रुहेलखंड के सबसे वरिष्ठ और बुजुर्ग नेता संतोष कुमार गंगवार अब नई उम्मीदें सहेजने में जुट गए हैं।

    आठ बार रह चुके हैं सांसद

    आठ बार सांसद रह चुके गंगवार के लिए यह आशंका तो पहले ही जताई जा चुकी थी कि उम्र को देखते हुए उनका टिकट कट सकता है, लेकिन राजनीति का योद्धा आसानी से हार कहां मानता है। टिकट न मिलेगा तो मनाया-समझाया तो जाएगा। भीतरखाने क्या समझाया गया यह तो भाजपा के बड़े नेता जानें, लेकिन संतोष कुमार गंगवार की भाषा अब संतोष भरी है।

    कानाफूसी करने वालों में चर्चा है कि जिनकी पैरोकारी के भरोसे वह 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे, उन्होंने ही उनके नाम पर जोर नहीं दिया और उनकी ही जाति से नया मोहरा बिसात पर रख दिया। बहरहाल, बुजुर्ग नेता चुप हैं तो इसके पीछे उन्हें कोई न कोई तो लाल कालीन दिखाई ही दे रही होगी।

    प्रत्याशी ने ही करा दी छुट्टी

    बसपा यूं तो उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद अब तक यहां लोकसभा की एक भी सीट नहीं जीत पाई है, लेकिन विधानसभा में पार्टी का प्रतिनिधित्व रहता आया है। हरिद्वार व नैनीताल-ऊधम सिंह नगर, इन दो लोकसभा सीटों पर बसपा का प्रदर्शन ठीकठाक रहा है।

    मुख्य मुकाबले का हिस्सा भले ही न बन पाए, लेकिन तीसरा कोण बनने में उसकी पूरी भूमिका होती है। गुजरे शुक्रवार को बसपा के प्रदेश प्रभारी नरेश गौतम ने हरिद्वार में प्रेस कान्फ्रेंस कर राज्य की पांचों सीटों पर प्रत्याशी घोषित किए, लेकिन दो दिन भी नहीं बीते कि हरिद्वार से घोषित प्रत्याशी भावना पांडे ने बसपा छोड़ दी।

    आनन-फानन नामांकन खत्म होने से ठीक पहले बसपा ने उत्तर प्रदेश की मीरापुर सीट से विधायक रहे जमील अहमद को प्रत्याशी बनाया। इधर, तत्काल प्रदेश प्रभारी पद से नरेश गौतम की छुट्टी कर दी गई, क्योंकि उन्होंने ही एक सप्ताह पहले भावना पांडे को पार्टी की सदस्यता दिलाई थी। राजनीतिक गलियारों में चर्चा चल रही है कि यह फैसला स्वयं बहनजी ने ही लिया।

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    यह कैसी शुरुआत

    माथे की चोट से उबरने के बाद बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी 31 मार्च से लोकसभा चुनाव के लिए नदिया जिले के कृष्णानगर से प्रचार शुरू करेंगी। इस सीट से सदन में प्रश्न के बदले रुपये लेने के मामले में अपनी लोकसभा सदस्यता गंवाने वाली महुआ मोइत्रा खड़ी हैं।

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    ममता 2024 के इस महासमर में सबसे पहले वोट महुआ के लिए ही मांगेंगी। जैसे ही यह खबर सामने आई तो सवाल उठने लगे कि आखिर तृणमूल सुप्रीमो भ्रष्टाचार में फंसी महुआ के लिए वोट मांग कर अपना चुनावी अभियान शुरू क्यों कर रही हैं? यह कैसी शुरुआत है। कहीं इसका गलत संदेश तो लोगों के बीच नहीं जाएगा?

    वैसे पहले से ही तृणमूल के कई नेता, विधायक और यहां तक कि मंत्री भ्रष्टाचार में फंसे हैं। चार विधायकों और मंत्री रहते हुए दो नेताओं की गिरफ्तारी हो चुकी है। वहीं, महुआ के खिलाफ एक तरफ ईडी तो दूसरी ओर सीबीआइ जांच कर रही है। पहले से ही नदिया जिले के कई तृणमूल नेता ऐसे हैं, जिन्हें महुआ पसंद नहीं हैं।

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