Election 2024: आंध्र को सबक दे सकता है तेलंगाना का परिणाम, प्रदेश का कर्ज एसजीडीपी अनुपात के 34 प्रतिशत तक पहुंचा
रेवड़ी राजनीति के माध्यम से सरकार हर बार वोट नहीं बटोर सकती क्योंकि विपक्ष भी वोटरों को चांद-तारे दिलाने का सपना दिखा सकते हैं। एक दिन ऐसा भी आएगा जब मतदाता इन्हें सहायता नहीं बल्कि अधिकार मानने लगेंगे। इसके बाद स्थिति यह आएगी कि रेवड़ियों की सूची नहीं बढ़ेगी तो वोट भी नहीं मिलेंगे। मतदाताओं की उम्मीदें बढ़ जाएंगीं। तेलंगाना में ऐसा हो चुका है।
अरविंद शर्मा, नई दिल्ली। विजयवाड़ा एयरपोर्ट के रास्ते पर गांव कंकीपाडु के शेख मीरावाली ने आंध्र प्रदेश के भविष्य की सही तस्वीर खींची है। कहते हैं कि आंध्र प्रदेश को ऐसे ही बनाए रखना है तो यह सरकार ठीक है। अगर बच्चों का भविष्य देखना है तो उसे चुनो जो विकास कर सके।
कौन करेगा विकास? इस प्रश्न का उत्तर फिलहाल उनके पास नहीं है। किंतु वह मुफ्त रेवड़ियों के विरोधी हैं। उन्हें इंडस्ट्री चाहिए। बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा एवं भविष्य चाहिए, जो तभी संभव है, जब इस राज्य को कर्ज से मुक्ति मिल जाएगी। अभी आंध्र प्रदेश पर पांच लाख करोड़ रुपये से ज्यादा कर्ज है। फिर भी रेवड़ियां बांटने का सिलसिला थम नहीं रहा है।
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रेवड़ी राजनीति गंभीर मुद्दा
आंध्र प्रदेश में लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव भी होने हैं। दोनों तरफ से वादों की गठरियां खुल गई हैं। वाइएसआर कांग्रेस सरकार ने जनकल्याण के नाम पर वोट बैंक को समेटने का प्रबंध पहले ही कर रखा है। भाजपा का तेलुगु देसम पार्टी (तेदेपा) एवं जनसेना पार्टी (जसेपा) से गठबंधन के बाद विपक्षी मोर्चा भी तैयार है। जगन सरकार मंचों से रेवड़ियों की सूची बांचने के साथ ही आगाह कर रही कि इन योजनाओं का लाभ उठाते रहना है तो वोट वाइएसआर कांग्रेस को ही देना।
जगन हार गए तो विपक्ष इन योजनाओं को कूड़ेदान में डाल देगा। वोटरों को हवा महल दिखाने में जुटे दलों को याद रखना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट ने रेवड़ी राजनीति को ‘गंभीर मुद्दा’ बताया है। सुप्रीम कोर्ट ने अर्थतंत्र और रेवड़ी संस्कृति में संतुलन पर जोर देते हुए कहा है कि सुविधाएं लेने वाले जरूरतमंद हो सकते हैं, लेिकन कर दाता भी कह सकते हैं कि उनके पैसे को विकास में लगाया जाए। हमें दोनों को सुनना है।
रेवड़ी राजनीति से हर बार नहीं मिलेंगे वोट
राजनीतिक विश्लेषक अभय कुमार का मानना है कि रेवड़ी राजनीति के माध्यम से सरकार हर बार वोट नहीं बटोर सकती, क्योंकि विपक्ष भी वोटरों को चांद-तारे दिलाने का सपना दिखा सकते हैं। एक दिन ऐसा भी आएगा, जब मतदाता इन्हें सहायता नहीं, बल्कि अधिकार मानने लगेंगे। इसके बाद स्थिति यह आएगी कि रेवड़ियों की सूची नहीं बढ़ेगी तो वोट भी नहीं मिलेंगे। मतदाताओं की उम्मीदें बढ़ जाएंगीं। तेलंगाना में ऐसा हो चुका है।
आंध्र प्रदेश के लिए सबक है कि तेलंगाना की तत्कालीन केसीआर सरकार की मुफ्त योजनाओं को वोटरों ने खारिज करते हुए अन्य राज्यों को आगाह कर दिया है कि सत्ता सिर्फ रेवड़ियां बांटने से ही नहीं मिल सकती। इसके लिए जरूरी है कि जनहित में कामकाज किया जाए।
बच्चों के भविष्य की चिंता
बहरहाल, मतदाताओं में अभी सिर्फ दो बातों की चर्चा है। जनकल्याण के नाम पर बताई जा रही रेवड़ियों की सूची और जात-पात की। महिलाएं खुश हैं कि उनके खाते में पुरुषों की तुलना में ज्यादा रुपये आ रहे। मछलीपटनम से विजयवाड़ा की ओर 10 किमी आगे एनएच-65 पर चिट्टीगुडुरु गांव के खेतों में काम कर रही बिजुअम्मा एवं कोटेश्वरम्मा ने मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी का पक्ष लिया, किंतु वहीं पर मौजूद किसान यीशु को चंद्र बाबू नायडू में आंध्र प्रदेश का भविष्य दिखा। मलाल है कि तेदेपा की सरकार पांच वर्ष और रह जाती तो तेलंगाना की तरह आंध्र प्रदेश में भी कंपनियों की भरमार होती। इससे लोगों के लिए यहां रोजगार के खूब अवसर होते। फिर उनके बेटे को नौकरी के लिए हैदराबाद नहीं जाना पड़ता।
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