Election 2024: सभी दलों के मन में मुस्लिम मतदाता, कांग्रेस की मुठ्ठी से फिसल क्षेत्रीय पार्टियों को दिया चुनावी जीत का नया समीकरण
भाजपा पर मुस्लिम विरोधी होने का आरोप लगाकर उसके द्वारा मुस्लिम नेताओं को लोकसभा का टिकट न दिए जाने का मुद्दा विपक्षी दल बेशक उठाते रहें पर आंकड़े उनकी खुद की नीयत की चुगली करते हैं। यह सही है कि 2014 में भाजपा बहुमत के साथ जीतने वाली पहली ऐसी पार्टी बनी जिसके पास एक भी निर्वाचित मुस्लिम सांसद नहीं था।
जितेंद्र शर्मा, नई दिल्ली। देश के कुछ मुस्लिम नेताओं की यदि यह शिकायत रह-रहकर उभरती रही है कि आबादी के अनुपात में उन्हें लोकसभा में समुचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला तो उसकी वजह यह नहीं कि यह वर्ग राजनीति के प्रति उदासीन है।
सच तो यह है कि कभी पूरी तरह कांग्रेस की मुठ्ठी में रहा यह वोटबैंक जब फिसला तो यूं बिखरा कि कांग्रेस फिर लगातार कमजोर होती गई। इस वोट की ताकत ने अलग-अलग राज्यों में क्षेत्रीय दलों को चुनावी जीत का नया समीकरण दे दिया। अब जब 2024 के महासमर के लिए सभी दलों की रणनीति बन रही है तो मुस्लिम मतदाता सबके मन में हैं।
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मुस्लिम वोटों के विभाजन को रोकने का प्रयास
विपक्षी गठबंधन आइएनडीआइए के गठन के पीछे सोच मुस्लिम मतों का विभाजन रोकना है जिससे भाजपा भी सतर्क है। ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास’ के मंत्र और भेदभावरहित कल्याणकारी योजनाओं से अल्पसंख्यकों का विश्वास जीतने के जतन के साथ ही भाजपा मुस्लिमों में पिछड़े वर्ग पसमांदा की पीड़ा का मामला उठाकर इस वर्ग की एकजुटता पर असर डालने के प्रयास में दिखती है। यदि 2011 की जनगणना को आधार मानें तो देश की आबादी में मुस्लिमों की भागीदारी लगभग 14 प्रतिशत है।
विभिन्न सर्वे और रिपोर्ट के निष्कर्ष हैं कि 92 सीटों पर 20 प्रतिशत से ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं। इनमें 41 सीटों पर 21-30 प्रतिशत, 11 सीटों पर 41-50 प्रतिशत, 24 सीटों पर 31-40 प्रतिशत और 16 सीटों पर 50 प्रतिशत से ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, कर्नाटक और असम जैसे राज्यों में यह मतदाता वर्ग काफी असरदार माना जाता है।
क्षेत्रीय दलों को मिली ताकत
वर्ष 1980 तक कांग्रेस के साथ मजबूती से खड़ा रहा यह वोटबैंक छिटका तो इसने राज्य स्तर पर क्षेत्रीय दलों का दामन थाम लिया। मसलन, मंडल-कमंडल की राजनीति के बाद उत्तर प्रदेश में उभरी समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को मुस्लिमों ने ‘वोटबैंक’ के रूप में ताकत दी। बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (राजद), बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, कर्नाटक में कभी कांग्रेस तो कभी जनता दल (सेकुलर) को मजबूत किया।
वामपंथी दलों को तो इनका सहारा शुरू से रहा है। इस बड़े वोटबैंक में राजनीतिक सेंध ही अहम कारण है कि यह वर्ग भाजपा के विरोध में मजबूत प्रतिद्वंद्वी की तलाश में भटकते हुए अलग-अलग दलों संग बिखरता रहा और अपना महत्व घटाया। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण भी है। करीब 14 प्रतिशत कुल आबादी और अहम राज्यों पर राजनीतिक प्रभाव की क्षमता के बाद भी इसे लोकसभा में समुचित प्रतिनिधत्व कभी नहीं मिला।
विपक्ष की नीयत भी अच्छी नहीं
भाजपा पर मुस्लिम विरोधी होने का आरोप लगाकर उसके द्वारा मुस्लिम नेताओं को लोकसभा का टिकट न दिए जाने का मुद्दा विपक्षी दल बेशक उठाते रहें, पर आंकड़े उनकी खुद की नीयत की चुगली करते हैं। यह सही है कि 2014 में भाजपा बहुमत के साथ जीतने वाली पहली ऐसी पार्टी बनी, जिसके पास एक भी निर्वाचित मुस्लिम सांसद नहीं था।
विपक्षी दलों ने मुस्लिम प्रत्याशी उतारे और वह जीते भी। 2019 में 17वीं लोस में 27 मुस्लिम सांसद चुने गए, जो 16वीं लोस के 23 सांसदों से थोड़ा अधिक हैं। वैसे आबादी के अनुपात के हिसाब से संसद में कम से कम 76 मुस्लिम सांसद होने चाहिए थे। सबसे अधिक मुस्लिम सांसद वर्ष 1980 में संसद पहुंचे थे, जिनकी संख्या 49 थी। उसके बाद से अब तक यह आंकड़ा गिरता ही रहा है।
मिथक तोड़ती भाजपा
मुस्लिम राजनीति को लेकर देश में जो भी मिथक थे, उन्हें भाजपा तोड़ने का प्रयास करती दिख रही है। पहले तो यह कि गरीब कल्याण की जो भी नरेन्द्र मोदी सरकार की योजनाएं हैं, उन में बिना भेदभाव के मुस्लिम वर्ग को भी पूरा लाभ दिया जा रहा है। फिर भाजपा ने इस वर्ग में भी उन वर्गों को चिह्नित किया, जिन्हें सहारे की आवश्यकता है।
जैसे, मुस्लिम महिलाओं को पीढ़ियों पुराने दंश से मुक्ति दिलाने के लिए तीन तलाक के विरुद्ध कानून बनाया। फिर मुस्लिम आबादी में सर्वाधिक हिस्सेदारी वाले पिछड़े मुसलमान यानी पसमांदा मुस्लिमों के हक की आवाज उठाई। बूथ स्तर पर मोदी मित्र बनाए जा रहे हैं। यह प्रयास परिणाम में बदल रहा।
चार से सात प्रतिशत तक मुस्लिम भाजपा को वोट देते रहे हैं। सेंटर फार द स्टडी आफ डेवलपिंग सोसायटी के मुताबिक 2014 के चुनाव में राष्ट्रीय स्तर पर मुस्लिम वोटों का करीब 8.5 प्रतिशत भाजपा के पक्ष में गया था। भाजपा को इससे पहले इनका इतना समर्थन कभी नहीं मिला।
रिपोर्ट के मुताबिक, 2009 में भाजपा को तीन प्रतिशत मुस्लिमों ने वोट किया था। 2014 से पहले भाजपा को सबसे ज्यादा सात प्रतिशत मुस्लिमों का समर्थन 2004 में मिला था। 1998 में पांच और 1999 में छह प्रतिशत। इससे यह स्पष्ट है कि मुस्लिम सीधे तौर पर मोदी विरोधी नहीं हैं।
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