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    Election 2024: हरियाणा में हाशिये पर क्षेत्रीय दल, इनेलो पर मान्यता छिनने का खतरा; करो या मरो की स्थिति में जजपा

    राष्ट्रीय राजनीति में हरियाणा के तीन लाल मशहूर रहे हैं। तीनों लालों ने क्षेत्रीय दल बनाए जो राष्ट्रीय दलों कांग्रेस और भाजपा के लिए चुनौती बनते रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय चौधरी बंसी लाल द्वारा गठित हरियाणा विकास पार्टी (हविपा) और पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय भजन लाल की हरियाणा जनहित कांग्रेस (हजकां) आज इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुकी है।

    By Jagran News Edited By: Amit Singh Updated: Sun, 17 Mar 2024 04:28 AM (IST)
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    10 सीटें विस चुनावों में जीतने वाली जजपा लोस चुनाव में नहीं खोल पाई थी खाता

    सुधीर तंवर, चंडीगढ़। कभी हरियाणा की राजनीति की दिशा और दशा निर्धारित करने वाले क्षेत्रीय दल आज हाशिये पर हैं। पूर्व उप प्रधानमंत्री स्वर्गीय चौधरी देवीलाल द्वारा बनाई गई पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के सामने स्थिति यह है कि इस बार लोकसभा और विधानसभा चुनावों में प्रदर्शन नहीं सुधरा तो क्षेत्रीय दल की मान्यता छिन जाएगी। इसी तरह ताऊ देवीलाल के प्रपौत्र और पूर्व उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला द्वारा बनाई गई जननायक जनता पार्टी (जजपा) के लिए करो या मरो की स्थिति बन गई है। यह पार्टी फूट की शिकार हो रही है।

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    प्रदेश की राजनीति के तीन लाल

    राष्ट्रीय राजनीति में हरियाणा के तीन लाल मशहूर रहे हैं। तीनों लालों ने क्षेत्रीय दल बनाए, जो राष्ट्रीय दलों कांग्रेस और भाजपा के लिए चुनौती बने रहे। पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय चौधरी बंसी लाल द्वारा गठित हरियाणा विकास पार्टी (हविपा) और पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय भजन लाल की हरियाणा जनहित कांग्रेस (हजकां) आज इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुकी है।

    पूर्व उप प्रधानमंत्री ताऊ देवीलाल ने 1987 में इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के नाम से क्षेत्रीय दल बनाया था, जिसके अध्यक्ष अब उनके बेटे व पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला हैं। वर्तमान में हरियाणा में इनेलो और जजपा ही दो क्षेत्रीय दल हैं। 2014 के लोस चुनाव में दो सीटों हिसार व सिरसा पर शानदार जीत दर्ज करने वाली इनेलो पिछले आम चुनावों में अधिकतर सीटों पर जमानत नहीं बचा पाई थी।

    इसी तरह विधानसभा चुनाव में भी सिर्फ अभय सिंह चौटाला ही जीत दर्ज कर सके, जो इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला के पुत्र और ताऊ देवीलाल के पौत्र हैं। विधानसभा चुनावों में 10 सीटें जीतने वाली जजपा भी लोकसभा चुनावों में कोई गुल नहीं खिला पाई थी। ऐसे में आगामी चुनाव दोनों ही दलों के लिए निर्णायक साबित होने वाले हैं।

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