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    सांसद-विधायक ही नहीं जनता ने प्रत्याशी भी चुना, मनमर्जी से किसी भी दल ने नहीं दिया था टिकट, क्या जानते हैं ये रोचक किस्सा?

    बिहार के हाजीपुर से जुड़ा एक बेहद ही रोचक किस्सा है। यहां 1969 में प्रत्याशियों का चयन जनता की अदालत में किया गया था। किसी भी दल ने मनमर्जी से टिकट नहीं बांटा। चुनाव लड़ने वाले नौ उम्मीदवार थे। सभी को दस-दस मिनट का समय अपनी बात रखने को दिया गया है। इसके बाद प्रत्याशी का चयन किया गया था।

    By Jagran News Edited By: Ajay Kumar Updated: Thu, 11 Apr 2024 06:14 PM (IST)
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    लोकसभा चुनाव 2024: मनमर्जी से नहीं, जनता की अदालत में तय हुए थे प्रत्याशी।

    रविशंकर शुक्ला, हाजीपुर l बात 1969 की है। विधानसभा चुनाव होने वाले थे। तत्कालीन राजनीतिक दलों से जुड़े नेता चुनाव लड़ने को आतुर थे। तब आलाकमान मनमर्जी से टिकट नहीं बांटा करते थे, तय हुआ प्रत्याशी चयन को खुली सभा की जाए। आमजन के सामने सभी दलों के चुनाव लड़ने को इच्छुक नेता अपना-अपना पक्ष, नीतियां व घोषणा पत्र रखें, जिन्हें जनता स्वीकृत करेगी, वही चुनाव मैदान में उतरेंगे।

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    नौ लोग थे मैदान में

    आयोजन के लिए हाजीपुर का कचहरी मैदान चुना गया। नेताओं का आकलन करने के लिए प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता आचार्य राममूर्ति आमंत्रित किए गए। तय तिथि को कचहरी मैदान में चुनाव लड़ने की इच्छा रखने वाले सभी दलों के नेता जुटे। इनमें अधिवक्ता ब्रह्मदेव सिंह, स्वतंत्रता सेनानी किशोरी प्रसन्न सिंह, बसावन सिंह, मोतीलाल प्रसाद सिन्हा कानन समेत कुल नौ लोग थे।

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    सभी को मिला 10 मिनट का समय

    राममूर्ति जी ने सभी को दस-दस मिनट का समय अपनी बात रखने को दिया। मैदान में मतदाताओं का भारी जुटान था। सभी ने एक-एक कर अपनी-अपनी बातें रखी थी। इसके बाद प्रमुख दलों के उम्मीदवार के नाम की घोषणा की गई। हाजीपुर से विधायक और कर्पूरी कैबिनेट में मंत्री रहे मोतीलाल कानन के अनुसार तब राजनीति में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा होती थी।

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