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    Morena Lok Sabha Seat: धांय-धांय ... जब चुनाव आयोग भी चिंता में पड़ गया; अब बीहड़ में बंदूकों की 'खेती' देखने वाले मुरैना ने...

    Updated: Wed, 28 Feb 2024 06:34 PM (IST)

    Morena Lok Sabha Chunav 2024 updates देश में होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक पार्टियां अपनी जमीन मजबूत करने में जुटी हैं। ऐसे में आपके लिए भी अपनी लोकसभा सीट और सांसद के बारे में जानना भी जरूरी है ताकि इस बार किसको जिताना है इसे लेकर कोई दुविधा न हो। आज हम आपके लिए लाए हैं मुरैना लोकसभा सीट और यहां के सांसद की पूरी जानकारी...

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    Morena Lok Sabha Chunav 2024: मुरैना लोकसभा सीट और यहां के सांसद की पूरी जानकारी।

    हरिओम गौड़, मुरैना। Morena Lok Sabha Election 2024 latest news:  बल की धरती की महत्वपूर्ण लोकसभा सीट मुरैना में एक दौर वह भी था, जब क्षेत्र बागियों की बंदूकों की धांय-धांय से कांपता था। चुनावों में दस्युओं का पूरा दखल रहता था। जिस प्रत्याशी का विरोध करना होता था, उसके विरुद्ध गांवों में धमकियां देना, हत्या, लूट, अपहरण जैसी घटनाओं को अंजाम देते थे। अब स्थितियां बदल चुकी हैं।

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    करीब डेढ़ दशक से चंबल के बीहड़ों और चुनावों में दस्युओं का कोई खौफ नहीं। पिछले दो लोकसभा और तीन विधानसभा चुनावों में गोलियां चलने, हत्याएं होने, बूथ कैप्चरिंग आदि घटनाएं न के बराबर हुई हैं। बीहड़ में बंदूकों की 'खेती' देखने वाले मुरैना क्षेत्र ने देश को कृषि मंत्री भी दिया। साल 2019 में यहां से सांसद चुने गए नरेंद्र सिंह तोमर कुछ समय पहले तक देश के कृषि मंत्री रहे। अब वे विधानसभा अध्यक्ष हैं।

    एक लोकसभा सीट में दो जिले और ये अंतर

    मुरैना लोकसभा क्षेत्र दो जिलों को शामिल कर बना है। मुरैना जहां बगावती तेवरों के लिए जाना जाता है, वहीं श्योपुर को शांति का टापू कहा जाता है। मुरैना में ब्रज भाषा बोली जाती है, वहीं श्योपुर क्षेत्र राजस्थान की हाड़ौती में बोली जाने वाली भाषा का मुरीद है।

    मुरैना वालों को मालपुए, खीर, आलू की घोंटा सब्जी और बेड़ई का स्‍वाद लुभाता है, वहीं श्योपुर के लोगों को दाल-बाटी, बाटी-चकती, कचौड़ी और बेसन गट्टे की सब्जी पसंद है। श्योपुर के खान-पान, रहन-सहन से लेकर तीज-त्योहारों में भी राजस्थान की झलक मिलती है।

    वर्ष 1952 में हुए पहले आम चुनाव के दौरान यह क्षेत्र भिंड जिले से जुड़ा था। वर्ष 1957 में हुए परिसीमन में मुरैना, ग्वालियर लोकसभा क्षेत्र में शामिल कर दिया गया। वर्ष 1967 से मुरैना के साथ श्योपुर जिले को जोड़कर नया संसदीय क्षेत्र बनाया गया था।

    संसद में एक करोड़ रुपये लेकर पहुंचे थे अशोक अर्गल

    घटना जुलाई, 2008 की है। केंद्र की तत्कालीन यूपीए सरकार संकट में थी और संसद में विश्वास मत होना था। इसी बीच, मुरैना के भाजपा सांसद अशोक अर्गल संसद में एक करोड़ रुपये लेकर पहुंच गए।

    संसद में हजार-हजार रुपये के नोटों की गड्डियां लहराते हुए उन्होंने आरोप लगाया था कि यूपीए सरकार ने उन्हें खरीदने के लिए तीन करोड़ रुपये का ऑफर दिया है। एडवांस के तौर पर एक करोड़ रुपये भी दिए हैं।

    अशोक अर्गल ने संसद में कहा था, ''यूपीए सरकार ने तीन करोड़ रुपये की पेशकश के बदले उनसे कहा कि विश्वास मत पर मतदान के समय उन्हें संसद से गैर हाजिर रहना है।''

    इस मामले में यूपीए सरकार की कड़ी आलोचना हुई थी। अशोक अर्गल ने इसे लेकर एफआईआर भी दर्ज करवाई थी।

    साल 1967 में मुरैना लोकसभा सीट को एससी के लिए आरक्षित किया गया था। यह सीट 42 साल तक एससी वर्ग के लिए आरक्षित रही। इस दौरान हुए कुल 11 चुनाव में जनसंघ और भाजपा का पलड़ा भारी रहा। जनसंघ-भाजपा ने 11 में से सात चुनावों में जीत दर्ज की। तीन चुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी, तो एक चुनाव में निर्दलीय उम्‍मीदवार की जीत हुई थी।

    मुरैना लोकसभा सीट को साल 2009 में सामान्‍य सीट घोषित कर दिया। फिलहाल, मुरैना लोकसभा सीट भाजपा का गढ़ है। बीते 33 साल और सात चुनावों से यहां भाजपा एकतरफा जीत दर्ज कर रही हैं। अब तक हुए 17 चुनावों में से 10 जनसंघ-भाजपा के नाम है, छह चुनाव कांग्रेस ने जीते हैं। कांग्रेस ने आखिरी बार इस सीट पर वर्ष 1991 में जीत का मुंह देखा था, तब बारेलाल जाटव सांसद बने थे। इसके बाद कांग्रेस का हर प्रत्याशी विफल रहा।

    भाजपा-कांग्रेस को नकार निर्दलीय आत्मदास को चुना

    मुरैना लोकसभा सीट पर एक चुनाव ऐसा भी रहा, जब यहां के मतदाताओं ने भाजपा और कांग्रेस दोनों को ही नकार दिया। चुनाव में निर्दलीय उतरे आत्मदास को जिताकर संसद में भेजा। यह चुनाव वर्ष 1967 का था। तब भारतीय जनसंघ के अस्तित्व में आने के बाद कांग्रेस कमजोर हुई थी। उस समय मुरैना से कांग्रेस ने सूरज प्रसाद और जनसंघ ने हुकुमचंद को प्रत्याशी बनाया था।

    एक चुनाव में निर्वाचन आयोग भी चिंता में पड़ गया

    जब मतदान मतपत्रों से होते थे और जितने ज्यादा प्रत्याशी होते थे, चुनाव कराना उतना ही जटिल हो जाता था। वर्ष 1996 में मुरैना लोकसभा सीट पर 70 प्रत्याशियों ने नामांकन दाखिल कर दिया था। प्रत्याशियों की इतनी लंबी सूची ने निर्वाचन आयोग को चिंता में डाल दिया था। हालांकि, 41 उम्मीदवारों ने नामांकन वापस ले लिया था। इसके बाद भी 26 उम्मीदवार चुनाव लड़े। इस चुनाव में भाजपा के अशोक अर्गल विजयी रहे।

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