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Bhind Lok Sabha Seat: यहां के लोगों ने राजकुमारी को नकारा; कांग्रेस का दर्द- 'मुझे तो हरा दिया, अब BJP को तो हराओ'

Bhind Lok Sabha Election 2024 latest Update देश में लोकसभा चुनाव होने हैं। सभी राजनीतिक पार्टियां अपनी जमीन मजबूत करने में जुटी हैं। ऐसे में आपको भी अपनी लोकसभा सीट और अपने सांसद के बारे में जानना चाहिए ताकि इस बार किसको जिताना है इसे लेकर कोई दुविधा न हो। आज हम आपके लिए लाए हैं भिंड लोकसभा सीट और यहां के सांसद के बारे में पूरी जानकारी...

By Jagran News Edited By: Deepti Mishra Published: Sat, 24 Feb 2024 07:30 AM (IST)Updated: Sat, 24 Feb 2024 07:30 AM (IST)
Bhind Lok Sabha Chunav 2024: भिंड लोकसभा सीट और यहां के सांसद के बारे में पूरी जानकारी।

मनोज श्रीवास्तव, भिंड। Bhind Lok Sabha Election 2024 latest news: मध्‍य प्रदेश की भिंड लोकसभा सीट में भिंड और दतिया जिला आते हैं और दोनों ही‍ जिलों के पेड़े बड़े मशहूर हैं। भिंड जिला सीमा की रक्षा में तत्पर और तैनात वीर सपूतों के लिए पहचाना जाता है। वहीं, दतिया में पीतांबरा माई शक्तिपीठ है। पीठ की वजह से दतिया में अति विशिष्ट लोगों का आगमन होता रहता है।

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भिंड जिले की तुलना में दतिया शांत जिला है। वर्ष 1989 से यानी 35 साल से भिंड लोकसभा सीट पर लगातार भाजपा चुनाव जीत रही है। स्थानीय लोगों का दर्द यही है कि एक बार भी यहां के सांसद को केंद्र सरकार में बड़ी जिम्मेदारी नहीं मिली। वर्ष 2009 में यह सीट एससी वर्ग के लिए आरक्षित कर दी गई थी।

वर्ष 2019 में हुए चुनाव में यहां से मुरैना की रहने वाली संध्या राय ने जीत दर्ज की। वर्ष 1962 से अब तक लोकसभा क्षेत्र में चार बार कांग्रेस, एक बार जनसंघ, एक बार जनता पार्टी और नौ बार भाजपा के प्रत्याशी चुनाव जीत चुके हैं। वर्ष 1962 से पहले भिंड स्वतंत्र सीट नहीं थी। यह मुरैना लोकसभा सीट का हिस्सा थी।

राजमाता को दिया सम्मान, बेटी वसुंधरा को नकारा

साल 1971 में विजयाराजे सिंधिया भिंड लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुनी गई थीं। वर्ष 1984 में राजनीति के मैदान में पहली बार उतरीं सिंधिया राजघराने की बेटी वसुंधरा राजे यहां से लोकसभा चुनाव हार गईं। इस चुनाव की सबसे रोचक बात यह भी थी कि भाजपा-कांग्रेस दोनों के ही प्रत्याशी पहली बार चुनाव मैदान में उतरे थे।

वसुंधरा राजे भाजपा की संस्थापक सदस्य विजयाराजे सिंधिया की पुत्री होने के नाते राजनीतिक पृष्ठभूमि से थी, जबकि कांग्रेस के कृष्ण सिंह जूदेव गैर राजनीतिक पृष्ठभूमि से थे। उन्हें पूर्व केंद्रीय मंत्री स्‍वर्गीय माधवराव सिंधिया पहली बार राजनीति में लेकर आए थे। कृष्ण सिंह जूदेव जीत गए।

इस चुनाव का रोचक किस्सा यह भी है कि कृष्ण सिंह जूदेव सामान्य पृष्ठभूमि से होने की वजह से कई बार मंचों पर भावुक हुए। किला चौक पर आखिरी सभा के दौरान तो वह इतने भावुक हो गए कि मतदाताओं के सामने रो पड़े। इससे उनके पक्ष में माहौल बन गया।

2009 में SC के लिए आरक्षित हुई सीट

साल 2009 में हुए परिसीमन में भिंड लोकसभा सीट फिर से एससी के लिए आरक्षित हो गई। 2009 में हुए चुनाव में भाजपा के अशोक अर्गल ने जीत हासिल की। अशोक ने तब कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले डॉ. भागीरथ प्रसाद को मात दी थी। वर्ष 2014 के चुनाव में डॉ. भागीरथ प्रसाद भाजपा के टिकट पर लड़े और सांसद बने।

'मुझे तो हरा दिया, अब भाजपा को तो हराओ'

इस सीट पर भाजपा के कब्जे से दिग्गज कांग्रेस नेताओं का दुख सब कुछ बयान कर देता है। कुछ दिन पहले भिंड के व्यापार मंडल धर्मशाला में कांग्रेस की बैठक हई। इसमें पूर्व नेता प्रतिपक्ष और लहार के पूर्व विधायक डॉ. गोविंद सिंह का दर्द छलक उठा। उन्होंने मंच से कहा कि लोग कहते थे, ये कब हारेंगे। आप लोगों ने मुझे तो हरा दिया, लेकिन अब लोकसभा में भाजपा को तो हरा दो। जब से मैं विधायक बना, उससे पहले से यहां भाजपा जीतती आ रही है।

मायके नकारा तो ससुराल ने दिया मान

वसुंधरा राजे सिंधिया ने यहां से हारने के बाद फिर कभी मध्‍य प्रदेश में चुनाव नहीं लड़ा। इस हार के बाद उन्होंने अपनी ससुराल यानी राजस्थान के धौलपुर से चुनाव लड़ा, चुनाव जीतीं और दो बार सूबे की मुख्‍यमंत्री भी रहीं।

बार-बार बदलते रहे कांग्रेस के उम्मीदवार

इस सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी भी बार-बार बदलते रहे हैं। वर्ष 1971 में हुए चुनाव में राजमाता विजयाराजे सिंधिया यहां से जनसंघ के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ीं। उन्होंने कांग्रेस के नरसिंह राव दीक्षित को शिकस्त दी। वर्ष 1980 में यहां से कांग्रेस प्रत्याशी कालीचरण शर्मा चुनाव जीते। 1984 में कांग्रेस प्रत्याशी कृष्ण सिंह जूदेव सांसद बने।

जो कांग्रेस से हारे, वे भाजपा से जीत गए

वर्ष 1989 में कांग्रेस के दिग्गज नेता नरसिंह राव दीक्षित कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा ने उन्हें अपना उम्मीदवार बना दिया और वे जीत भी गए। वर्ष 1991 में भाजपा ने योगानंद सरस्वती को टिकट दिया, जबकि इस चुनाव में पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी ने अपने पत्रकार मित्र उदयन शर्मा को इस सीट पर उतारकर जोर-आजमाइश की, लेकिन वे जीत का सेहरा नहीं बांध पाए।

वर्ष 1996 में भाजपा ने रामलखन सिंह को टिकट दिया। वे जीते और उन्होंने 1998, 1999 और 2004 के चुनाव में भी जीत हासिल की। वैसे यहां हार की वजह कांग्रेस की आपसी गुटबाजी ही रहती है।

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