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    Betul Lok Sabha Seat: महाराष्‍ट्र से सटी यह सीट कभी थी कांग्रेस का गढ़; बाहरी VS अपनों की जंग में बैतूल हुआ BJP संग

    Updated: Wed, 28 Feb 2024 12:57 PM (IST)

    Betul Lok Sabha Election 2024 latest news देश में 18वीं लोकसभा के लिए चुनाव होने हैं। सभी राजनीतिक पार्टियां अपनी-अपनी जमीन मजबूत करने में जुटी हैं। ऐसे में आपको भी अपनी लोकसभा सीट और अपने सांसद के बारे में जानना चाहिए ताकि इस बार किसको जिताना है इसे लेकर कोई दुविधा न हो। आज हम आपके लिए लाए हैं बेतुल लोकसभा सीट के बारे में पूरी जानकारी...

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    Betul Lok Sabha Election 2024 : बेतुल लोकसभा सीट और यहां के सांसद के बारे में पूरी जानकारी।

     विनय वर्मा, बैतूल। Betul Lok Sabha Election 2024 latest Update: सूर्यपुत्री मां ताप्ती की उद्गम स्थली और सतपुड़ा की पर्वतमालाओं से घिरे बैतूल संसदीय क्षेत्र में आदिवासी वर्ग के मतदाताओं का अच्छा-खासा प्रभाव है। वे पिछले करीब तीन दशक (28 साल) से भाजपा के साथ खड़े हैं। आठ विधानसभा क्षेत्र वाली बैतूल लोकसभा सीट में चार विधानसभा क्षेत्र एसटी वर्ग के लिए आरक्षित हैं।

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    बैतूल लोकसभा सीट महाराष्ट्र की सीमा से सटी हुई है। कभी इसे कांग्रेस का गढ़ माना जाता था, लेकिन वर्ष 1996 में भाजपा ने जब स्थानीय उम्मीदवार को मैदान में उतारा तो जनता ने उसे विजयी बना दिया। इसके बाद से क्षेत्र में लगातार भाजपा का ही परचम लहरा रही है।

    यहां कितनी बार हुआ परिसीमन?

    स्वतंत्रता के बाद से क्षेत्र की भौगोलिक सीमा में तीन बार परिवर्तन भी हो चुका है। साल 1977 से पहले इस संसदीय क्षेत्र में बैतूल के साथ छिंदवाड़ा जिले का कुछ हिस्सा भी शामिल रहा। वर्ष 1977 में छिंदवाड़ा जिले के हिस्से को हटाकर हरदा और टिमरनी विधानसभा क्षेत्र को शामिल किया गया।

    वर्ष 2009 में हुए परिसीमन में बैतूल जिले में एक विधानसभा क्षेत्र कम हो गया, जिसके चलते खंडवा जिले का हरसूद, हरदा जिले के दो और बैतूल के पांच विधानसभा क्षेत्र को शामिल कर बैतूल संसदीय क्षेत्र बनाया गया। इसे एसटी वर्ग के लिए आरक्षित भी किया गया।

    कांग्रेस के बाहरी उम्मीदवार ही जीत दर्ज करने में रहे सफल

    वर्ष 1952 से अब तक के करीब 72 वर्ष में बैतूल संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस के किसी भी स्थानीय नेता को सांसद बनने का अवसर नहीं मिला है। वर्ष 1952 से 1996 तक कांग्रेस ने बैतूल सीट से स्थानीय निवासी को टिकट ही नहीं दिया। छिंदवाड़ा, नागपुर और भोपाल में रहने वाले कांग्रेस नेताओं को टिकट दिया गया। वर्ष 1952, 1957 और 1962 में कांग्रेस के नागपुर निवासी भीखूलाल चांडक सांसद चुने गए।

    वर्ष 1967 और 1971 में नागपुर के कर सलाहकार रहे एनकेपी साल्वे कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते। वर्ष 1980 में भोपाल के गुफराने आजम को बैतूल सीट से जीत मिली।

    इसी तरह वर्ष 1984 और 1991 में कांग्रेस ने भोपाल के ही असलम शेर खान को मैदान में उतारा। दोनों ही बार वे सांसद चुने गए थे। असलम शेर खान अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी थे। उन्होंने वर्ष 1975 में कुआलालंपुर में आयोजित विश्व कप में भारतीय हॉकी टीम में शामिल रहकर स्वर्ण पदक जीतने में विशेष भूमिका निभाई थी।

    स्थानीय उम्मीदवार की जीत से BJP की नींव

    पिछले 28 वर्ष से बैतूल संसदीय क्षेत्र पर लगातार भाजपा का कब्जा बना हुआ है। वर्ष 1996 के चुनाव में भाजपा ने स्थानीय उम्मीदवार विजय कुमार खंडेलवाल को मैदान में उतारा था। उन्होंने कांग्रेस के कब्जे से सीट छीन ली थी। इसके बाद वर्ष 1998, 1999 और 2004 में भी वे लगातार जीत दर्ज करने में सफल रहे।

    वर्ष 2007 में विजय खंडेलवाल के निधन के बाद हुए उपचुनाव में उनके पुत्र हेमंत खंडेलवाल को भाजपा ने मैदान में उतारा। हेमंत ने जीत हासिल की। वर्ष 2009 में परिसीमन के कारण बैतूल संसदीय क्षेत्र एसटी वर्ग के लिए आरक्षित हो गई। भाजपा ने ज्योति धुर्वे को टिकट दिया। वे जीत गईं।

    वर्ष 2014 में भी ज्योति धुर्वे ने अपनी जीत दोहराई। वर्ष 2019 में भाजपा ने शिक्षक रहे दुर्गादास उइके को प्रत्याशी बनाया। वे रिकार्ड मतों से जीत दर्ज करने में सफल रहे।

    चर्चा में रहा फर्जी जाति प्रमाण पत्र का मामला

    वर्ष 2009 में सांसद चुनी गईं भाजपा की ज्योति धुर्वे के जाति प्रमाण पत्र का मामला कई वर्षों तक चर्चा में रहा। प्रमाण पत्र के फर्जी होने की शिकायत अधिवक्ता शंकर पेंद्राम ने की थी। जाति प्रमाण पत्र की जांच के लिए गठित राज्य स्तरीय छानबीन समिति ने ज्योति धुर्वे के जाति प्रमाणपत्र को फर्जी करार दे दिया था।

    समिति की सचिव दीपाली रस्तोगी ने निर्देश में उल्लेख किया था कि ज्योति धुर्वे स्वयं और अपने पिता के गोंड जाति से होने का प्रमाण नहीं दे सकीं। उनके सभी दस्तावेजों में पिता की जगह पति प्रेम सिंह धुर्वे का नाम लिखा है। हालांकि, ज्योति धुर्वे इस निर्देश के विरुद्ध कोर्ट चली गईं और फिर उनका कार्यकाल खत्म हो गया। इसके बाद भी भाजपा ने वर्ष 2014 के चुनाव में उन्हें ही टिकट दिया और वे जीतने में सफल रहीं।

    जब छोटे भाइयों को दी गई थी बड़े भाई को हराने की जिम्मेदारी

    राजनीति में कई ऐसे अवसर भी आते हैं, जब भाई-भाई ही प्रतिद्वंद्वी बन जाते हैं। बैतूल संसदीय क्षेत्र में भी वर्ष 2014 के चुनाव में कुछ ऐसा ही हुआ था। कांग्रेस ने मकड़ाई पूर्व राजघराने के अजय शाह को लोकसभा चुनाव में अपना प्रत्याशी बनाया था। अजय शाह के भाई विजय शाह बैतूल संसदीय क्षेत्र में शामिल हरसूद विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के टिकट पर विधायक चुने गए थे और प्रदेश के खाद्य मंत्री बनाए गए थे।

    लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उन्हें अपने विधानसभा क्षेत्र में पार्टी के प्रत्याशी को जिताने की जिम्मेदारी दी थी। अजय शाह के छोटे भाई संजय शाह टिमरनी विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के विधायक थे। उन्हें भी पार्टी ने बड़े भाई को हराने के लिए जिम्मेदारी सौंपी थी। इस चुनाव में विजय शाह और संजय शाह क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी ज्योति धुर्वे के पक्ष में खुलकर प्रचार करते और कांग्रेस पर खूब हमले भी करते रहे।

    बैतूल लोकसभा सीट में कितनी विधानसभा?

    बैतूल संसदीय क्षेत्र में आठ विधानसभा सीटें- बैतूल, मुलताई, आमला, भैंसदेही, घोड़ाडोंगरी, हरदा, टिमरनी और हरसूद हैं। 

    बैतूल की ताकत

    • कुल मतदाता-18,56,926
    • पुरुष मतदाता- 9,42,601
    • महिला मतदाता- 9,14,292
    • थर्ड जेंडर- 33

    बेतुल पर इन्होंने किया प्रतिनिधित्व

    साल  सांसद पार्टी 
    1952 भीखूलाल चांडक कांग्रेस
    1957 भीखूलाल चांडक कांग्रेस
    1962 भीखूलाल चांडक कांग्रेस
    1967 एनकेपी साल्वे कांग्रेस
    1971 एनकेपी साल्वे कांग्रेस
    1977 सुभाष आहूजा भारतीय लोकदल
    1980 गुफराने आजम कांग्रेस
    1984 असलम शेर खान कांग्रेस
    1989 आरिफ बेग भाजपा
    1991 असलम शेर खान कांग्रेस
    1996 विजय खंडेलवाल भाजपा
    1998 विजय खंडेलवाल भाजपा
    1999 विजय खंडेलवाल भाजपा
    2004 विजय खंडेलवाल भाजपा
    2009 ज्योति धुर्वे भाजपा
    2014 ज्योति धुर्वे भाजपा
    2019 दुर्गादास उइके

    भाजपा

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