Lok Sabha Election: कांकेर में कांग्रेस नहीं जमा पाई पैर; यहां भगवा पर जनता को भरोसा! जानिए सीट का समीकरण
छत्तीसगढ़ की कांकेर लोकसभा सीट पर मतदाताओं को स्थानीय प्रत्याशी पर ही भरोसा है। जनपद गठन के बाद से सभी लोकसभा चुनावों में स्थानीय प्रत्याशियों को ही सफलता मिली है। यही वजह है कि इस सीट पर महेन्द्र कर्मा जैसे दिग्गज नेता को हार का सामना करना पड़ा। वहीं छह बार से इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का कब्जा है।
रायपुर, राज्य ब्यूरो: बस्तर से अलग होकर कांकेर जिले के गठन के बाद से यहां की लोकसभा सीट पर अब तक स्थानीय प्रत्याशी पर ही मतदाताओं ने विश्वास जताया है। यहां से बस्तर के टाइगर कहे जाने वाले कांग्रेस नेता महेन्द्र कर्मा ने भी वर्ष-1998 में लोकसभा चुनाव लड़ा था लेकिन उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा।
भाजपा के सोहन पोटाई ने महेन्द्र कर्मा को पराजित किया था। लोकसभा चुनाव-2024 के लिए भाजपा ने यहां से अंतागढ़ के पूर्व विधायक भोजराज नाग को प्रत्याशी बनाया है। वे पूर्व सरपंच, पूर्व जनपद अध्यक्ष रहने के साथ ही पूर्व विधायक रह चुके हैं।
कांकेर लोकसभा क्षेत्र में आठ विधानसभा सीटें
कांग्रेस से बस्तर सांसद दीपक बैज के चुनाव लड़ने की चर्चा तेज है। रायपुर और जगदलपुर के बीच स्थित कांकेर लोकसभा क्षेत्र में आठ विधानसभा सीटें शामिल हैं, जिनमें से छह अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। इन विधानसभा सीटों में गुंडरदेही, संजारी बालोद, सिहावा (एसटी), डोंडी लोहारा (एसटी), अंतागढ़ (एसटी), भानुप्रतापपुर (एसटी), कांकेर (एसटी) और केशकाल (एसटी) शामिल हैं।
1998 में अलग जिला बना कांकेर
मूलरूप से बस्तर जिले का हिस्सा रहा कांकेर वर्ष-1998 में अलग जिला बनाया गया था। ऐतिहासिक रूप से वर्ष-1996 तक इस निर्वाचन क्षेत्र में कांग्रेस पार्टी का प्रभाव रहा, जिसके बाद भाजपा प्रमुख बनकर उभरी। राज्य के गठन के बाद से ही कांकेर लोकसभा सीट पर भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ी टक्कर होती रही है।
अरविंद नेताम के बाद बना भाजपा का गढ़
कांग्रेस के अरविंद नेताम यहां से पांच बार सांसद रहे। वे इंदिरा गांधी और नरसिम्हा राव सरकार में भी मंत्री रहे। उनके पिता विधायक थे। उन्होंने कभी लोकसभा चुनाव लड़ने के बारे में सोचा नहीं था लेकिन 1971 के दूसरे चुनाव में उन्हें कांग्रेस से टिकट मिला और उन्होंने जीत दर्ज की।
वर्ष 1980 में अरविंद नेताम ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आई) के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। फिर वे 1991 तक लगातार सांसद चुने गए। वहीं, 1996 में उनकी पत्नी छबीला नेताम भी कांग्रेस से ही सांसद बनीं। इसके बाद वर्ष-1998 से यह लोकसभा सीट भाजपा का गढ़ बन गई है। जिसे कांग्रेस विगत छह चुनावों में भेद नहीं पाई है।
कांकेर जिला बनने के बाद का चुनावी इतिहास
- 1998 में कांकेर के भाजपा उम्मीदवार सोहन पोटाई को मिली जीत
- 1999 में भाजपा के सोहन पोटाई दोबारा सांसद बने
- 2004 में भाजपा के सोहन पोटाई को तीसरी बार सफलता मिली
- 2009 में भाजपा के सोहन पोटाई चौथी बार सांसद बने
- 2014 में अंतागढ़ के भाजपा प्रत्याशी विक्रम उसेंडी सांसद बने
- 2019 में कांकेर के भाजपा उम्मीदवार मोहन मंडावी बने सांसद
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