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Lok Sabha Election 2024: समान नागरिक संहिता बनेगी भाजपा के लिए चुनावी हथियार! अब क्या करेगा विपक्ष?

Lok Sabha Election 2024 उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू करने का रास्ता साफ हो गया है। उत्तराखंड यूसीसी लागू करने वाला देश का पहला राज्य है। भाजपा इस मुद्दे को देश के अन्य राज्यों में भी प्रचारित कर सकती है और इसे चुनावी हथियार के रूप में इस्तेमाल कर सकती है। क्या विपक्ष के पास है इस मुद्दे की काट? पढ़ें ये रिपोर्ट...

By Jagran News Edited By: Sachin Pandey Fri, 15 Mar 2024 08:54 PM (IST)
Lok Sabha Election 2024: समान नागरिक संहिता बनेगी भाजपा के लिए चुनावी हथियार! अब क्या करेगा विपक्ष?
Lok Sabha Election 2024: कांग्रेस की तरफ से समान नागरिक संहिता को लेकर विरोध नजर नहीं आया।

विकास गुसाईं, देहरादून। राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता कानून लागू करने का रास्ता साफ हो गया है। यह भाजपा की प्राथमिकता में रहा है और उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी सरकार ने इसकी पहल कर इतिहास रच दिया है। उत्तराखंड पहला राज्य बन गया है, जहां यह कानून लागू होने जा रहा है। माना जा रहा कि चुनाव में भाजपा इस मुद्दे को देशभर में प्रचारित करेगी।

उत्तराखंड में मुख्य विपक्ष कांग्रेस की तरफ से समान नागरिक संहिता को लेकर विरोध नजर नहीं आया, लेकिन अन्य राज्यों में कांग्रेस अवश्य अपना स्टैंड बदल सकती है। जिस मतदाता वर्ग से समान नागरिक संहिता के विरोध का अंदेशा है, वह आमतौर पर भाजपा का वोट बैंक है भी नहीं।

सोची समझी रणनीति का हिस्सा

समान नागरिक संहिता, यानी सभी धर्मों, वर्गों के लिए एक समान कानून। राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद उत्तराखंड की भाजपा सरकार ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले समान नागरिक संहिता विधेयक को कानून के रूप में अधिसूचित कर दिया तो यह महज संयोग नहीं बल्कि रणनीति का हिस्सा समझा जा रहा है।

महिला अधिकारों को हर स्तर पर सुरक्षित करने वाला यह विधेयक देशभर में चर्चा के केंद्र में है। अब जबकि मौका लोकसभा चुनाव का है, इस पहल से भाजपा को राष्ट्रीय स्तर पर चुनाव के लिए बड़ा हथियार भी मिल गया। अयोध्या में श्रीराम मंदिर का निर्माण एवं बाल विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा, जम्मू-कश्मीर को अनुच्छेद 370 से मुक्ति के बाद उत्तराखंड की समान नागरिक संहिता का चुनावी लाभ लेने में भाजपा पीछे नहीं रहेगी।

तमाम मंचों पर पार्टी यह विषय रखती आई है और आने वाले दिनों में भी रखेगी। उत्तराखंड की यह ऐसी पहल है, जिसका अनुसरण अन्य भाजपा शासित राज्य भी करेंगे। साथ ही केंद्र स्तर पर समान नागरिक संहिता लागू करने के दृष्टिगत इससे वातावरण का निर्माण भी होगा।

धामी सरकार ने किया था वादा

उत्तराखंड में सभी जाति, धर्म, क्षेत्र व लिंग के आधार पर भेद करने वाले व्यक्तिगत नागरिक मामलों से संबंधित कानून में एकरूपता लाने का वादा धामी ने 2022 के विधानसभा चुनाव में किया था। दोबारा सत्तासीन होने पर उन्होंने ड्राफ्ट तैयार करने को उच्चतम न्यायालय की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय समिति बनाई।

समिति ने 43 जन संवाद कार्यक्रम किए। शुरुआत देश के प्रथम गांवा माणा से की। नई दिल्ली में भी बैठक की। 21 माह में समिति ने 2.33 लाख सुझाव प्राप्त किए। इसी दो फरवरी को ड्राफ्ट मुख्यमंत्री को सौंपा गया और विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर विधेयक के रूप में पारित कर दिया गया।

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महिला सशक्तीकरण पर भाजपा का जोर

भाजपा महिला सशक्तीकरण पर जोर देती आई है और समान नागरिक संहिता विधेयक में भी सरकार ने इसी पर ध्यान केंद्रित किया है। इसमें विवाह का पंजीकरण अनिवार्य किया गया है। ऐसा न करने वालों को सरकारी सुविधाओं से वंचित रहना पड़ सकता है। पति-पत्नी के जीवित रहते हुए दूसरा विवाह पूर्ण रूप से प्रतिबंधित किया गया है।

दंपत्ती में यदि कोई भी दूसरे की सहमति से अपना धर्म परिवर्तन करता है तो दूसरे व्यक्ति को तलाक व गुजारा भत्ता लेने का अधिकार दिया गया है। सभी धर्म में पुत्र-पुत्री को संपत्ति पर बराबर अधिकार दिया गया है। जायज-नाजायज बच्चे में भेद नहीं किया गया है। लिव इन रिलेशनशिप का पंजीकरण अनिवार्य है।

इस दौरान पैदा हुए बच्चों को जैविक संतान की भांति अधिकार देने की व्यवस्था की गई है। विधेयक को भाजपा सामाजिक क्रांति के रूप में पेश कर रही है। कहा है कि धार्मिक मान्यताओं पर असर नहीं पड़ेगा। कांग्रेस समेत विपक्षी पार्टियों को इसकी सीधी काट नहीं दिख रही है।

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