इस लोकसभा चुनाव में खंडूड़ी के खाते में जुड़ेगा यश या अपयश
पूर्व मुख्यमंत्री एवं भाजपा सांसद मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूड़ी (सेनि) भले ही इस मर्तबा लोकसभा का चुनाव न लड़ रहे हों मगर पौड़ी गढ़वाल सीट की सियासत उनके इर्द-गिर्द ही घूम रही है।
देहरादून, केदार दत्त। उत्तराखंड की सियासत के दिग्गज पूर्व मुख्यमंत्री एवं भाजपा सांसद मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूड़ी (सेनि) भले ही इस मर्तबा लोकसभा का चुनाव न लड़ रहे हों, मगर पौड़ी गढ़वाल सीट की सियासत उनके इर्द-गिर्द ही घूम रही है।
यहां की चुनावी जंग में एक ओर उनके शिष्य हैं तो दूसरी तरफ पुत्र। ऐसे में उनके सामने विचित्र स्थिति है और अग्नि परीक्षा से हर हाल में उन्हें ही गुजरना है। यदि शिष्य जीता तो इसका यश मिलेगा, मगर पुत्र की हार पर अफसोस। अगर पुत्र जीता तो यश और शिष्य की हार पर अपयश। साफ है कि नतीजे आने पर यहां का यश-अपयश तो जनरल खंडूड़ी के खाते में ही जाएगा।
जनरल खंडूड़ी सेवानिवृत्ति के बाद पिछले तीन दशक से यहां की सियासत में सक्रिय हैं। उत्तराखंड में भाजपा के लिए खंडूड़ी जरूरी हैं और उन्होंने भी पार्टी को अपना शत-प्रतिशत दिया है। स्वास्थ्य संबंधी कारणों के चलते इस मर्तबा वह पौड़ी सीट से चुनाव नहीं लड़ रहे, मगर सियासी गलियारों में यह चर्चा आम है कि कि पार्टी नेतृत्व ने उनकी पसंद के प्रत्याशी के नाम पर ही मुहर लगाई। भले ही यह पार्टी की रणनीति का हिस्सा हो, पर चुनाव में अग्नि परीक्षा तो उन्हीं की है।
चुनावी दंगल में एक तरफ उनके शिष्य भाजपा प्रत्याशी तीरथ सिंह रावत हैं तो दूसरी ओर उनके पुत्र मनीष खंडूडी कांग्रेस के टिकट पर मैदान में उतरे हुए हैं। दोनों ही प्रत्याशी जनरल का आशीर्वाद खुद के साथ होने का दावा कर रहे, मगर अब तक के परिदृश्य से साफ है कि इस सबके चलते जनरल खंडूड़ी की उलझन अधिक बढ़ी है। हालांकि, अभी तक चुनावी परिदृश्य से वह पूरी तरह नदारद हैं। वह न तो किसी सभा में आए और न किसी के पक्ष में कोई अपील ही जारी की।
बावजूद इसके जनरल खंडूड़ी के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि वह इस परीक्षा में कैसे पास हों। ये भी आरोप न लगे कि बेटे के पक्ष में काम करते दिखें और पुत्र को भी यह अहसास न हो कि वे पिता के धर्म से कैसे विमुख हो गए। ऐसी ही स्थिति शिष्य के मामले में भी है। ऐसा न लगे कि शिष्य के पक्ष में काम कर रहे हैं। यही कारण है कि अभी तक इसे लेकर रहस्य बना है कि आखिर जनरल खंडूड़ी का आशीर्वाद किसके साथ है।
खैर, अब जबकि चुनाव मुकाम की ओर बढ़ रहा है तो भी जनरल खंडूड़ी की उलझन कम नहीं हुई है। इस सीट पर नतीजा चाहे जो भी रहे, इसका यश और अपयश उन्हीं के माथे आएगा। शिष्य जीता तो पहली सियासी पारी में पुत्र की हार का उन्हें अफसोस होगा। अगर पुत्र ने जीत हासिल की तो अपने सबसे करीबी शिष्य की हार का दुख।
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