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राहुल गांधी उत्तराखंड से कर सकते हैं चुनावी शंखनाद

राहुल गांधी ऐसे पहले बड़े नेता हैं। जो चुनाव कार्यक्रम तय होने के बाद उत्तराखंड पहुंच रहे हैं। हालांकि यह बात दीगर है कि राहुल का ये दौरा पहले ही तय हो गया था।

By Edited By: Published: Tue, 12 Mar 2019 03:00 AM (IST)Updated: Tue, 12 Mar 2019 11:30 PM (IST)
राहुल गांधी उत्तराखंड से कर सकते हैं चुनावी शंखनाद
राहुल गांधी उत्तराखंड से कर सकते हैं चुनावी शंखनाद

देहरादून, विकास धूलिया। उत्तराखंड जैसे महज पांच सीटों वाले छोटे राज्य में पहले ही चरण में मतदान से सियासी सरगर्मी नजर आने लगी है। जमीनी और सांगठनिक तैयारियों के मोर्चे पर भले ही भाजपा चुनाव एलान के वक्त अपनी प्रतिद्वंद्वियों से आगे दिख रही है, लेकिन कम से कम एक मामले में कांग्रेस जरूर बढ़त बनाने में कामयाब हो गई है। वह यह कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ऐसे पहले बड़े नेता हैं, जो चुनाव कार्यक्रम तय होने के बाद उत्तराखंड पहुंच रहे हैं। हालांकि यह बात दीगर है कि राहुल का 16 मार्च का देहरादून दौरा पहले ही तय हो गया था। ऐसे में इस संभावना से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि कांग्रेस 16 मार्च तक अपने प्रत्याशी घोषित कर दे। 

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उत्तराखंड का राजनैतिक मिजाज कुछ ऐसा है कि यह भाजपा और कांग्रेस, दोनों को रास आता है। अविभाजित उत्तर प्रदेश के दौरान और फिर उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद भी इन्हीं दोनों राष्ट्रीय पार्टियों पर मतदाता भरोसा जताता आया है। ऐसे बहुत कम उदाहरण हैं कि देवभूमि के बाशिंदों ने इन दोनों पार्टियों से इतर किसी अन्य के पक्ष में मतदान किया। 

राज्य गठन के बाद के ही अठारह सालों को लिया जाए तो तीन लोकसभा चुनावों में सूबे की पांचों लोकसभा सीटों में से केवल एक बार ही गैर भाजपा-गैर कांग्रेस पार्टी प्रत्याशी सफल रहा। वर्ष 2004 में हरिद्वार लोकसभा सीट पर समाजवादी पार्टी ने जीत दर्ज की थी। अगर पिछले एक दशक की बात की जाए तो वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में पांचों सीटें कांग्रेस की झोली में गई थीं, जबकि उस वक्त उत्तराखंड में सरकार भाजपा की थी। 

वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने एक सीट ज्यादा लेकर भाजपा को सत्ता से बेदखल कर दिया। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में परिदृश्य बिल्कुल उलट गया। तब प्रदेश में कांग्रेस के सत्तासीन होते हुए भाजपा ने पांचों सीटों पर परचम फहराया। हालांकि उस वक्त पूरे देश में नमो लहर थी और उत्तराखंड भी इससे अछूता नहीं था लेकिन भाजपा ने इसके बाद वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भी प्रचंड बहुमत हासिल कर सरकार बनाई। लब्बोलुआब यह कि पिछले सात सालों के दौरान उत्तराखंड में भाजपा एकतरफा वर्चस्व बनाए हुए है और यही कांग्रेस और उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती भी है। इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस किसी भी तरह भाजपा के वर्चस्व को समाप्त करना चाहती है। इसी रणनीति के तहत कांग्रेस ने राहुल गांधी का एक दिनी दून दौरा तय किया। 

अब रविवार को क्योंकि आमचुनाव की घोषणा हो गई तो राहुल के दौरे की अहमियत पहले की अपेक्षा काफी ज्यादा बढ़ गई है। हालांकि इस नई परिस्थिति ने कांग्रेस के लिए कुछ पसोपेश भी पैदा कर दी है। पसोपेश इसलिए क्योंकि अभी कांग्रेस ने पांच में से एक भी सीट के लिए प्रत्याशी घोषित नहीं किया है और ऐसे में वह अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष के कार्यक्रम का पूरा माइलेज शायद ही ले पाए। 

वैसे, कांग्रेस अध्यक्ष के दून दौरे के कार्यक्रम से पार्टी में उत्साह नजर आ रहा है लेकिन अंदरखाने यह चर्चा भी है कि बेहतर होता राहुल के 16 मार्च के कार्यक्रम तक पार्टी अपने सभी, नहीं तो गढ़वाल मंडल के अंतर्गत आने वाली तीन सीटों पौड़ी गढ़वाल, टिहरी व हरिद्वार के प्रत्याशी फाइनल कर देती। इस स्थिति में इस बात की संभावना से इनकार भी नहीं किया जा सकता कि कांग्रेस 16 मार्च तक अपने प्रत्याशियों के नाम घोषित कर दे। इन दिनों राहुल के कार्यक्रम की तैयारियों में जुटी प्रदेश कांग्रेस उन मुद्दों को अंतिम रूप दे रही है, जो उत्तराखंड में प्रभावी हो सकते हैं। इनसे संबंधित इनपुट जुटाया जा रहा है ताकि राष्ट्रीय अध्यक्ष उन पर भाजपा को कठघरे में खड़ा कर सकें।

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