कांग्रेस के सामने सीट बंटवारे की सिरदर्दी से पहले गठबंधन बचाने का दोहरा संकट, नीतीश के नए दांव से टूटने की कगार पर INDIA
विपक्षी गठबंधन के बीच सीट बंटवारे की गाड़ी पटरी पर लाने की कोशिश कर रही कांग्रेस अब दोहरी चुनौती के फांस से घिर गई है। पश्चिम बंगाल से लेकर पंजाब तक तालमेल पर सहयोगी दलों के साफ इनकार का पार्टी रास्ता निकाले इसे पहले ही बिहार में नीतीश कुमार के नए सियासी दांव की तेज गति ने विपक्षी आईएनडीआईए गठबंधन की चुनावी रणनीति को डिरेल कर दिया है।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। विपक्षी गठबंधन के बीच सीट बंटवारे की गाड़ी पटरी पर लाने की कोशिश कर रही कांग्रेस अब दोहरी चुनौती के फांस से घिर गई है। पश्चिम बंगाल से लेकर पंजाब तक तालमेल पर सहयोगी दलों के साफ इनकार का पार्टी रास्ता निकाले इसे पहले ही बिहार में नीतीश कुमार के नए सियासी दांव की तेज गति ने विपक्षी आईएनडीआईए गठबंधन की चुनावी रणनीति को डिरेल कर दिया है।
पार्टी पर ही सवाल उठा रहे कांग्रेसी
विपक्षी गठबंधन की डांवाडोल होती सियासत के बीच अब कांग्रेस के भीतर भी कई राज्य इकाईयों के नेता सीटों के तालमेल को लेकर अपनी पार्टी की कमजोर रणनीति को लेकर सवाल उठाने लगे हैं। बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी जहां अब भी ममता बनर्जी से तालमेल की खिलाफत से पीछे नहीं हटे हैं। वहीं, बिहार के नेता भी नीतीश प्रकरण में पार्टी की हो रही किरकिरी को लेकर सवाल उठा रहे हैं।
खरगे और नीतीश के बीच नहीं हो पाई बात
कांग्रेस हाईकमान ने आईएनडीआईए गठबंधन की एकता में बड़ी टूट को बचाने के लिए आखिरी क्षणों में चाहे कोशिश की हो मगर नीतीश कुमार ने उन्हें इसकी गुंजाइश का मौका नहीं दिया। सूत्रों के अनुसार कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के कई प्रयासों के बावजूद पिछले चार-पांच दिनों में नीतीश फोन पर उपलब्ध नहीं हुए और ऐसे में आईएनडीआईए गठबंधन को लगने जा रहे इस बड़े झटके को संभालने की उनकी पहल विफल साबित हुई है।
गठबंधन के दलों में मची खलबली
जाहिर तौर पर तूणमूल प्रमुख ममता बनर्जी, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से लेकर आम आदमी पार्टी सब गठबंधन की एकता बनाए रखने की जवाबदेही कांग्रेस की बताते हुए उसकी सियासी परेशानी में इजाफा कर रहे हैं। विपक्षी खेमे के कुछ नेता तो नीतीश को नहीं रोक पाने के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराने से भी हिचक नहीं रहे। नीतीश को आईएनडीआईए का संयोजक नहीं बनाने के फैसले को लेकर भी नुक्ताचीनी की जा रही है। इसमें कोई संदेह नहीं कि बिहार के सियासी घटनाक्रम के बाद कांग्रेस पर अब ममता और अखिलेश का दबाव कहीं ज्यादा बढ़ेगा।
बंगाल में कांग्रेस को गठबंधन बचाने के लिए तृणमूल की शर्त पर गठबंधन के लिए हामी भरने की मजबूरी होगी तो उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी पर अधिक सीटों के लिए दबाव बनाना उसके लिए कठिन होगा। बंगाल में कांग्रेस की दोहरी मुसीबत यह है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी के खिलाफ आक्रामक हमले से बाज नहीं आ रहे और तृणमूल की ओर से दो सीटों की पेशकश पर भी वे मानने को तैयार नहीं। जाहिर तौर पर बंगाल में गठबंधन ओर पार्टी के बीच संतुलन बनाना पार्टी की सिरदर्दी है।
कांग्रेस का राजद से पुराना नाता
वैसे यह सही है कि बिहार में कांग्रेस का राजद से पुराना गठबंधन है और इसमें अब भी कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन नीतीश के ताजा राजनीतिक कदमों के बाद सूबे के नेताओं का एक वर्ग इस बात से नाराज है कि हाईकमान ने जदयू अध्यक्ष की पलटमार सियासत को लेकर कई बार आगाह किया मगर उनकी बातों को तवज्जो नहीं दी गई।
टूटने की कगार पर आईएनडीआईए
अब ऐन चुनाव से पहले नीतीश के दांव से सूबे में महागठबंधन ही नहीं लड़खड़ा गया बल्कि आईएनडीआईए गठबंधन की एकता क्षत-विक्षत हो रही है और इसके लिए पार्टी के रणनीतिकार जिम्मेदार हैं। इतना ही नहीं सूबे के नेताओं को आशंका है कि पार्टी पर इसको लेकर बढ़े दबाव का राजद भी फायदा उठाने की कोशिश करेगा और लोकसभा में कांग्रेस को कम सीटें देने की चाल चलेगा।
बिहार कांग्रेस के वरिष्ठ नेता किशोर कुमार झा ने नीतीश को भांपने में पार्टी रणनीतिकारों की रणनीतिक चूक की ओर इशारा करते हुए कहा कि उनके जैसे कई पार्टी नेताओं ने महागठबंधन में जदयू की वापसी पर सवाल उठाए। इसके बाद नीतीश की सरकार में कांग्रेस के शामिल नहीं होने की पैरोकारी की लेकिन नहीं सुनी गई।
आप के साथ भी उलझा है मामला
मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी का नीतीश को आईएनडीआईए का संयोजक नहीं बनाने का रूख सही कदम रहा अन्यथा विपक्षी गठबंधन के लिए स्थिति ज्यादा नाजुक हो जाती। राजद के दबाव को लेकर नेतृत्व को आगाह करते हुए झा ने कहा कि जदयू के अलग होते रास्ते के मद्देनजर कांग्रेस को बिहार में कम से 15 लोकसभा सीटें राजद से लेने पर फोकस करना चाहिए अन्यथा लालू प्रसाद पांच-सात सीटों में पार्टी को निपटाने की कोशिश करेंगे।
आम आदमी पार्टी ने पंजाब में गठबंधन नहीं करने का एलान कर दिया है और कांग्रेस की पंजाब इकाई भी ऐसा ही चाहती थी। लेकिन गुजरात, हरियाणा और गोवा में आप में चुनाव लड़ने के लिए तालमेल करने का विकल्प अभी छोड़ा नहीं है और ऐसे में कांग्रेस पर दबाव दोहरा है। इसी वजह से दिल्ली में चार और तीन के फॉर्मूले पर सहमति बनने के बाद भी कांग्रेस-आप के बीच सीटों के तालमेल का ऐलान लटका हुआ है।
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