विचार: धार्मिक विरासत के नाम पर राजनीतिक लड़ाई, स्थायी रूप से सुलझाना होगा थाइलैंड और कंबोडिया के बीच सीमा विवाद
थाइलैंड और कंबोडिया के बीच सीमा विवाद के चलते लड़ाई छिड़ गई जिसमें अमेरिका और मलेशिया ने मध्यस्थता की। विवाद प्रीह विहेयर मंदिर को लेकर था जिस पर दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया था। इस लड़ाई में कई सैनिक और नागरिक मारे गए और लोगों को पलायन करना पड़ा। हालांकि दोनों देशों के बीच हाइड्रोकार्बन को लेकर भी तकरार है।
विवेक काटजू। थाइलैंड और कंबोडिया के बीच छिड़ी लड़ाई थम गई। अमेरिका और मलेशिया की मध्यस्थता से दोनों देशों में संघर्ष विराम पर सहमति बनी। संघर्ष विराम के लिए यह वार्ता आसियान की कमान संभाल रहे मलेशिया में हुई।
इस वार्ता में मलेशियाई प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम और अमेरिकी एवं चीनी राजदूत की भी उपस्थिति रही, जिन्होंने थाइलैंड के कार्यवाहक प्रधानमंत्री फुमतम वेचायाचाई और कंबोडियाई प्रधानमंत्री हुन मानेत के बीच संधि कराई।
हुन कंबोडियाई दिग्गज हुन सेन के बेटे हैं। इस बैठक से पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी दोनों देशों पर लड़ाई बंद करने के लिए दबाव डाल चुके थे। वैसे तो सीमा विवाद के चलते थाइलैंड और कंबोडिया के बीच अक्सर छिटपुट तनाव भड़कता रहा है, लेकिन ताजा हिंसक टकराव प्रीह विहेयर (प्रिय विहार) नाम के एक हिंदू शिव मंदिर के मुद्दे पर भड़का।
इसी कारण भारत के लोगों की इसमें उत्सुकता भी रही। यह स्वाभाविक है। वैसे तो कई मुद्दों पर दोनों देशों के बीच बीते कुछ दिनों से तनाव बढ़ रहा था, लेकिन प्रीह विहेयर की स्थिति ने हालात विकट बना दिए। इसके चलते दोनों देशों की सेनाओं ने कमान संभाली और एक दूसरे से लोहा लेने लगीं। इसमें कई सैनिकों और आम नागरिकों की मौत हो गई। एक बड़ी संख्या में लोगों को उन इलाकों से पलायन भी करना पड़ा, जहां यह लड़ाई छिड़ी हुई थी।
दोनों देशों के बीच हाइड्रोकार्बन से समृद्ध एक समुद्री इलाके पर भी तकरार रही है। ऐसे में इनके टकराव को केवल धार्मिक पहलुओं से देखने पर पूरी तस्वीर स्पष्ट नहीं होगी, क्योंकि दोनों देशों में बहुलांश आबादी थेरवाद बौद्ध धर्म को मानने वाली है।
पूरे परिदृश्य को समझने के लिए पृष्ठभूमि का संज्ञान लेना होगा। पड़ताल करें तो जहां थाइलैंड सदैव स्वतंत्र रहा है, वहीं पड़ोसी कंबोडिया वियतनाम और लाओस की तरह फ्रांसीसी उपनिवेश रहा। 1907 में कंबोडिया के औपनिवेशिक शासक फ्रांस और थाइलैंड (तब उसका नाम सियाम था) एक व्यापक सीमा समझौते पर सहमत हुए। कंबोडिया 1953 में स्वतंत्र हुआ।
स्वतंत्रता के साथ ही थाइलैंड के साथ उसके सीमा विवाद शुरू हुए। विशेषकर प्रीह विहेयर मंदिर की स्थिति को लेकर। कंबोडिया 1959 में इस मामले को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में ले गया। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने 1962 में फैसला कंबोडिया के पक्ष में सुनाया। उस समय थाइलैंड ने मन मसोस कर वह फैसला मान लिया, लेकिन उसके भीतर कहीं न कहीं यह भाव घर कर गया कि उससे उसका हक छीन लिया गया।
प्रीह विहेयर मामले ने थाई जनता की चेतना को उस समय फिर से झकझोरा जब कंबोडिया ने 2008 में इस मंदिर को विश्व विरासत स्थल की मान्यता दिलाने के लिए यूनेस्को का रुख किया। यहां उल्लेख करना भी महत्वपूर्ण है कि खमेर शासन के दौरान 11वीं से 13वीं शताब्दी के दौरान कंबोडिया में हिंदू धर्म का प्रसार अपने चरम पर पहुंच गया था।
इस अवधि में वहां अद्भुत हिंदू मंदिरों का निर्माण हुआ। वैसे तो यह काम मुख्य रूप से सिएम रीप इलाके में हुआ, लेकिन कंबोडिया के दूसरे क्षेत्र भी मंदिर निर्माण से अछूते नहीं रहे। प्रीह विहेयर उसी दौर की अभिव्यक्ति है। भगवान विष्णु को समर्पित भव्य एवं दिव्य मंदिरों में से एक अंगकोरवाट का निर्माण भी सिएम रीप क्षेत्र में 12वीं शताब्दी के मध्य में हुआ था।
कालांतर में कंबोडिया में थेरवाद बौद्ध का प्रभाव बढ़ना शुरू हुआ और 12वीं शताब्दी के अंत में अंगकोरवाट भी बौद्ध उपासना स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त करने लगा। हालांकि उपासना का यह क्रम पूर्व स्थापित ढांचे को किसी प्रकार की क्षति पहुंचाए बिना आगे बढ़ता गया। मंदिर के शीर्ष पर बुद्ध की प्रतिमा स्थापित की गई, जो मंदिर के बदलते स्वरूप का प्रतीक थी। यही वह दौर था जब कंबोडिया, लाओस, थाइलैंड और बाद में म्यांमार जैसे इलाके थेरवाद बौद्ध धर्म के प्रभाव में आते गए।
थेरवाद बौद्ध धारा गौतम बुद्ध की उच्च नैतिक शिक्षाओं पर आधारित है, जो व्यक्ति को जन्म एवं पुनर्जन्म के फेर से मुक्त होकर निर्वाण या मोक्ष प्राप्ति पर ध्यान केंद्रित करने की राह दिखाता है। थाइलैंड में बतौर राजदूत अपनी नियुक्ति के दौरान मैंने गौर किया कि जहां थाई बौद्ध बुद्ध को उच्च आध्यात्मिकता का शिखर समझते हैं, वहीं अपने वर्तमान जीवन में सहायता के लिए वे हिंदू देवी-देवताओं की भी पूजा करते हैं। थाई राज परिवार भी थेरवाद बौद्ध धर्म मानता है, लेकिन हिंदू पुजारियों का भी सम्मान करता है।
कुछ पुजारी तो राजकीय महल से भी संबद्ध होते हैं। इस क्रम में राजा या राज परिवार का कोई अन्य वरिष्ठ सदस्य फसल बोआई के वार्षिक अनुष्ठान में शामिल होता है, जहां पुजारी बीजों को अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं। हिंदू धर्मग्रंथ और महाकाव्य विशेषकर रामायण का थाई संस्करण इस देश की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है।
दोनों देशों के रिश्तों में कंबोडिया के दिग्गज नेता हुन सेन और थाइलैंड की बड़ी राजनीतिक हस्ती के रूप में स्थापित हुए थाकसिन शिनवात्रा के बीच की मैत्री की भी छाप रही है। दोनों के बीच बहुत घनिष्ठ संबंध रहे हैं। थाकसिन के 15 साल चले निर्वासन के दौरान हुन ने उनकी बहुत सहायता की, लेकिन थाकसिन के दोबारा थाइलैंड पहुंचने और वहां राजनीतिक रूप से शक्तिशाली होने के बाद दोनों नेताओं के संबंध में खटास पैदा हो गई।
अगस्त 2024 में थाइलैंड की प्रधानमंत्री बनीं थाकसिन की 36 वर्षीय बेटी पेटोंगटर्न ने हुन सेन के साथ रिश्तों पर जमी बर्फ पिघलाने का प्रयास किया।
एक निजी टेलीफोन बातचीत में हुन को ‘अंकल’ के रूप में संबोधित करते हुए उन्हें यह कहते हुए सुना गया कि ‘दूसरे पक्ष’ की ओर से मुश्किलें पैदा की जा रही हैं और वह सेना पर लगाम लगाएंगी। हुन सेन ने बातचीत का यह ब्योरा इंटरनेट मीडिया पर जारी कर दिया और फिर थाई संवैधानिक अदालत को पेटोंगटर्न ने एक जुलाई को उनके पद से निलंबित कर दिया गया।
अभी दोनों देशों में राष्ट्रवादी भावनाओं का ज्वार उमड़ा हुआ है। लगता है ये भावनाएं तो समय के साथ शांत हो जाएंगी, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि प्रीह विहेयर मंदिर प्रकरण का भी हमेशा के लिए पटाक्षेप हो जाएगा। यह विवाद सतह पर उभरता रहेगा।
(लेखक थाइलैंड में भारत के राजदूत रहे हैं)
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