एल. मुरुगन। काशी तमिल संगमम का तीसरा संस्करण आज से शुरू हो रहा है। यह भारत की विविधता में एकता का एक और प्रमाण है। 15 से 24 फरवरी के बीच आयोजित होने वाला यह अनूठा सांस्कृतिक संगम देश के दो सबसे प्राचीन और आध्यात्मिक रूप से समृद्ध क्षेत्रों-काशी और तमिलनाडु को एक साथ लाता है।

यह अनूठा सांस्कृतिक संगम भूगोल से परे प्रगाढ़ सभ्यतागत बंधन को बढ़ावा देता है। काशी तमिल संगमम का उद्घाटन 2022 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया था। इस वर्ष सांस्कृतिक कार्यक्रम का यह तीसरा संस्करण है। आजादी के अमृत महोत्सव समारोह के अंग के रूप में आरंभ की गई भारत सरकार की यह पहल एक भारत-श्रेष्ठ भारत की भावना को कायम रखती है।

केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने घोषणा की है कि इस कार्यक्रम का तीसरा संस्करण भारत के सबसे सम्मानित संतों में से एक महर्षि अगस्त्यर (अगस्त्य) की स्मृति में मनाया जाएगा। महर्षि अगस्त्यर की बौद्धिक क्षमता तमिल भाषा और साहित्य, साझा मूल्यों, ज्ञान परंपराओं और विरासत की नींव के रूप में कार्य करती है।

इस वर्ष काशी तमिल संगमम का विशेष महत्व है, क्योंकि इसकी आयोजन अवधि महाकुंभ के साथ मेल खाती है और अयोध्या में श्रीरामलला की ‘प्राण प्रतिष्ठा’ के बाद यह पहला संगम है। महाकुंभ और श्री अयोध्या धाम की पृष्ठभूमि और महर्षि अगस्त्यर पर मुख्य फोकस के साथ काशी तमिल संगमम उत्कृष्ट अनुभव प्रदान करेगा।

यह भारत के दो सबसे प्राचीन शिक्षा और सांस्कृतिक विरासत केंद्रों तमिलनाडु और काशी के बीच संबंध को इतना प्रगाढ़ करेगा, जितने पहले कभी नहीं हुए। काशी तमिल संगमम 3.0 के लिए सरकार ने तमिलनाडु से लगभग 1,000 प्रतिनिधियों को लाने की योजना बनाई है। इसमें युवाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करने पर विशेष बल दिया गया है। काशी तमिल संगमम के दौरान उपस्थित लोगों को काशी एवं तमिलनाडु, दोनों की उत्कृष्ट कला का अनुभव होगा।

सदियों से तमिल संतों, ऋषियों और विद्वानों ने काशी की यात्रा की है, जिसने इसके आध्यात्मिक और शैक्षणिक परिदृश्य को समृद्ध किया है। तमिल समुदाय ने काशी को पवित्र स्थल के रूप में प्रतिष्ठित किया है। ज्ञान एवं परंपराओं का यह आदान-प्रदान पारस्परिक रहा है।

आदि शंकराचार्य से लेकर महाकवि सुब्रमण्यम भरतियार तक, काशी में तमिल सांस्कृतिक पदचिह्न गहरे और स्थायी रहे हैं। सबसे महान तमिल साहित्यकारों में से एक महाकवि भरतियार का घर काशी में हनुमान घाट के तट पर स्थित तीर्थ स्थल है। काशी-तमिलनाडु का संबंध सदियों पुराना है। तमिल संत कुमारगुरुपारा देसीकर ने 17वीं शताब्दी में हनुमान घाट पर कुमारस्वामी मठ की स्थापना की, जिससे काशी में तमिल उपस्थिति स्थापित हुई।

श्रीकाशी नातुकोट्टई नगरथर सतराम ने 200 वर्षों से अधिक समय से काशी विश्वनाथ मंदिर में प्रसाद की सुविधा प्रदान की है। कुछ विभाजनकारी ताकतों ने हमारे सामाजिक तानेबाने को बिगाड़ने का प्रयास किया है और इसी सिलसिले में एक क्षेत्र को दूसरे के खिलाफ, एक भाषा को दूसरी भाषा के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश की है।

हालांकि प्रधानमंत्री मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में भारत ने एकता, विकास और समावेशिता के मार्ग पर दृढ़ता से काम किया है। ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास’ दृष्टिकोण राष्ट्रीय नीतियों को आकार देने वाला मार्गदर्शक सिद्धांत है, जो हर समुदाय और क्षेत्र के लिए समान प्रगति सुनिश्चित करता है।

प्रधानमंत्री मोदी ने भाषाई और सांस्कृतिक सद्भाव का लगातार समर्थन किया है। तमिल संस्कृति के प्रति उनका गहरा लगाव सर्वविदित है। उनके भाषण प्राय: तमिल साहित्य, भाषा और परंपराओं की समृद्ध विरासत को उजागर करते हैं। उन्होंने इस बात पर बार-बार बल दिया है कि तमिल दुनिया की सबसे पुरानी भाषाओं में से एक है, जो पूरे देश के लिए गर्व का विषय है।

तमिल इतिहास के संरक्षण और सम्मान के प्रति उनकी प्रतिबद्धता सिंगापुर में तिरुवल्लुवर सांस्कृतिक केंद्र की स्थापना और जकार्ता के मुरुगन मंदिर में महाकुंभाभिषेकम समारोह में उनकी भागीदारी से प्रदर्शित हुई।

वाराणसी में काशी तमिल संगमम-2023 का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री ने कन्याकुमारी-वाराणसी तमिल संगमम ट्रेन को हरी झंडी दिखाई थी और तिरुक्कुरल, मणिमेकलाई और अन्य क्लासिक तमिल साहित्यिक कृतियों के बहुभाषी और ब्रेल अनुवाद का शुभारंभ किया था।

उन्होंने भारतीय विचार और संस्कृति को इस दक्षिण-पश्चिमी प्रशांत राष्ट्र के लोगों के करीब लाने के लिए गुजराती और पापुआ न्यू गिनी की भाषा टोक पिसिन में तिरुक्कुरल जारी किया। यह पहल तमिलनाडु के साथ उनके गहरे संबंध को मजबूत करती है और अपनी समृद्ध विरासत को संरक्षित और उसे बढ़ावा देने के लिए भारत की व्यापक प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है।

काशी-तमिल संगमम के तीसरे पड़ाव में तमिलनाडु के हजारों प्रतिभागी राष्ट्र को एकजुट करने वाले शाश्वत संबंधों के साक्षी बनेंगे। यह आयोजन उत्सव मात्र नहीं, वरन हमारी सामूहिक पहचान की पुनः पुष्टि है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत सांस्कृतिक समावेशिता के मार्ग पर चल रहा है, ताकि प्रत्येक भाषा, प्रत्येक परंपरा और प्रत्येक समुदाय को हमारे राष्ट्रीय आख्यान में उचित मान्यता मिले।

आज जब हम काशी तमिल संगमम 2025 का उत्सव मना रहे हैं, तब यह याद रखें कि हमारी विविधता कोई चुनौती नहीं है, वरन यह संजोने के लिए एक खजाना है। काशी और तमिलनाडु की एकता ही भारत की एकता है। हमें सदैव इसका उत्सव मनाना चाहिए।

(लेखक सूचना एवं प्रसारण और संसदीय कार्य राज्यमंत्री हैं)