हर्ष वी पंत : इंडोनेशिया के बाली में आयोजित जी-20 देशों का हालिया सम्मेलन बहुत महत्वपूर्ण समय में आयोजित हुआ। महत्वपूर्ण इसलिए कि इस साल फरवरी में रूस और यूक्रेन के बीच छिड़े युद्ध के अभी तक थमने के कोई संकेत नहीं मिल रहे। इसके कारण दुनिया में खाद्य वस्तुओं से लेकर ऊर्जा संसाधनों की आपूर्ति बिगड़ी है, जिससे पूरी दुनिया महंगाई की मार झेल रही है। कोविड महामारी के बाद से ही सुधार की राह पर लौटने के लिए संघर्ष कर रही वैश्विक अर्थव्यवस्था को इसने और झटका दिया है। इससे वैश्विक मंदी की आशंका गहरा गई है।

मानो इतना ही काफी न हो, अमेरिका और चीन जैसे दुनिया के दो महाबली देशों के बीच तनातनी बनी हुई है, जिसमें तमाम देशों को मुश्किलें झेलनी पड़ रही हैं। चूंकि जी-20 विश्व की शीर्ष 20 अर्थव्यवस्थाओं का संगठन है तो स्वाभाविक रूप से यह उसका दायित्व है कि वह आर्थिक परिदृश्य को सुधारने की राह में आ रही बाधाओं को दूर करने की दिशा में प्रयास करे। इसलिए, हालिया सम्मेलन की महत्ता और बढ़ गई।

जब संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्था और उसकी सबसे प्रमुख इकाई सुरक्षा परिषद में शामिल शक्तिशाली देशों में ही टकराव कायम है तो उस स्थिति में जी-20 जैसे संगठन से अपेक्षाएं बढ़ जाती हैं कि वह विश्व का मार्गदर्शन करे। बाली सम्मेलन में जुटे वैश्विक नेताओं की भाव-भंगिमा तो सकारात्मक संदेश देने वाली रही। ऐसा प्रतीत हुआ कि वहां नेता अपने मतभेद किनारे करके संवाद के लिए आए हैं। यह बात सम्मेलन के घोषणापत्र में भी दिखी, जब यूक्रेन मसले पर रूस के मित्र भारत और चीन ने भी वैश्विक स्वर से स्वर मिलाए। इससे रूस को एक संदेश तो गया कि इस युद्ध से पूरी दुनिया परेशान है।

भारत के दृष्टिकोण से तो यह घोषणापत्र और भी महत्व का रहा, क्योंकि इसमें ‘यह युद्ध का समय नहीं’ वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उस संदेश को समाहित किया गया, जो उन्होंने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को दिया था। यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की मुखर होती आवाज का भी प्रतीक है कि दुनिया अब न केवल भारत की बात को सुनती है, बल्कि उसे मानकर तवज्जो भी देती है।

जी-20 के मंच पर नेताओं के बीच व्यापार, तकनीक और आपूर्ति शृंखला को बेहतर बनाने पर चर्चा हुई, जिसकी आवश्यकता भी थी। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बिगड़े समीकरणों से व्यापार का तानाबाना प्रभावित हुआ है तो उसे पटरी पर लाना जरूरी है। विकसित और विकासशील देश दोनों इस संगठन के सदस्य हैं तो तकनीक का पहलू भी महत्वपूर्ण रहा। वहीं कोविड आपदा के बाद से ही चीन केंद्रित विनिर्माण इकाइयों के लिए विकल्प तलाशने की जो मुहिम शुरू हुई थी, उसे सही दिशा दिखाना भी समय की मांग है। यह जी-20 की ही जिम्मेदारी है कि वह इन मोर्चों पर विश्वास आधारित सहयोग को बढ़ावा देने में उत्प्रेरक की भूमिका निभाए।

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच हुई वार्ता ने भी दुनिया को राहत के संकेत दिए हैं, क्योंकि इन दोनों की तनातनी में तमाम देश पिस रहे हैं। भारतीय मूल के ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक बतौर प्रधानमंत्री इस दौरान पहली बार पीएम मोदी से मिले थे तो उनकी मुलाकात भी चर्चा में रही। पीएम मोदी के साथ उनकी तस्वीरें छाई रहीं, जिनमें अपनत्व और नजदीकी का भाव दिखा।

इस सम्मेलन का एक ऐतिहासिक पड़ाव रहा भारत को जी-20 की अध्यक्षता मिलना। एक दिसंबर से भारत विधिवत जी-20 की अध्यक्षता संभाल लेगा। यह भारत के लिए एक बड़ा अवसर होगा कि वह इसका इस्तेमाल अपने अंतरराष्ट्रीय कद को बढ़ाने के लिए करे। इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि भारत को बेहद चुनौतीपूर्ण समय में यह मौका मिल रहा है, लेकिन भारत ने इस आयोजन से जुड़ी थीम, लोगो और वेबसाइट के माध्यम से जो संकेत दिए हैं, उनसे यही लगता है कि भारत इस मौके को पूरी तरह भुनाने के लिए कमर कसे हुए है।

‘वसुधैव कुटुंबकम्’ के माध्यम से भारत विश्व को आश्वस्त करना चाहता है कि वह केवल अपना ही नहीं, बल्कि समस्त विश्व के कल्याण की कामना करता है और उसके लिए प्रयासरत रहता है। कोविड महामारी के दौरान भारत का अनुकरणीय आचरण इस थीम के संदेश से पूरा न्याय करता है। यह कहना गलत नहीं होगा कि इस समय जो अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियां बनी हैं, उनमें चाहे पश्चिमी देश हों या उनका धुर विरोधी रूस और उनके टकराव से प्रभावित विकासशील देश, वे सभी भारत पर पूरा भरोसा करते हैं और इस समय यदि कोई देश दुनिया में स्थायित्व एवं शांति लाने में सबसे सार्थक भूमिका निभा सकता है तो वह भारत ही है।

भारत ने संकेत दिए हैं कि जी-20 अध्यक्षता के दौरान वह विकासशील देशों की आवाज को मुखरता से उठाएगा। वह ग्लोबल गवर्नेंस के लिए समाधान सुझाने में सक्रिय रहेगा। डिजिटल और डाटा के मोर्चे पर अपनी महारथ से दुनिया की मदद करेगा। जलवायु परिवर्तन की चुनौती का समाधान तलाशने पर काम करेगा। भारत ने इस सिलसिले में काम भी शुरू कर दिया है। अमेरिकी और चीनी तकनीक पर आश्रित दुनिया को उसने विकल्प देने की पहल की है। भारत के सफल डिजिटल भुगतान यूपीआइ में कई देशों ने दिलचस्पी दिखाई है। साथ ही स्वदेशी 5जी तकनीक भी कई देशों को लुभा रही है।

वास्तव में भारत जी-20 की अध्यक्षता को बहुत गंभीरता से ले रहा है और उसने अपना एजेंडा बनाकर उसे अमल में लाना भी आरंभ कर दिया है। इसके माध्यम से भारत अपने विकास की गाथा दुनिया को दिखाकर वैश्विक ढांचे में और ऊपर चढ़ने का प्रयास करेगा। एक ऐसे समय में जब संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्था महत्वपूर्ण मुद्दों पर मात्र मूकदर्शक बनकर रह गई हो तो जी-20 जैसे संगठन की भूमिका और अहम हो जाती है। वर्तमान परिस्थितियों में भारत के रूप में उसे उचित और वास्तविक नेतृत्वकर्ता भी मिला है, क्योंकि जब पूरी दुनिया आर्थिक मंदी की आहट से परेशान है, तब भारत दुनिया में सबसे तेजी से वृद्धि करने वाली अर्थव्यवस्था के रूप में उभर रहा है, जिसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी ‘अंधेरे में उम्मीद की एकमात्र किरण’ करार दिया है।

(लेखक आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में रणनीतिक अध्ययन कार्यक्रम के निदेशक हैं)