तरुण गुप्त : इस डिजिटल युग में अपने विचारों की अभिव्यक्ति में कुछ दिनों की देरी भी बहुत विलंबित मानी जाती है। विशेषकर तब जब किसी विषय के संदर्भ में तमाम विशेषज्ञ पहले ही अपनी राय व्यक्त कर चुके हों तो आपके पास कहने के लिए बचता ही क्या है? जब प्रशस्ति में नई-नई उपमाएं गढ़ ली गई हों। जब बारीक से बारीक पहलू की ऐसी भावप्रवण अभिव्यक्ति हो चुकी हो, जिसका विश्व भर में करोड़ों उत्साही लोगों ने अनुभव किया हो, तब कुछ नया लिखने की चुनौती और बड़ी हो जाती है। यहां बात उस खेल की हो रही है, जिसके एक दिग्गज प्रशिक्षक सर एलेक्स फर्ग्युसन ने इसके रोमांच को व्यक्त करने के लिए जुमला गढ़ा था-‘फुटबाल-ब्लडी हेल।’ दरअसल, यह खेल कभी विस्मित और रोमांचित करना बंद नहीं करता। फिर भी, अपनी तमाम चकाचौंध और ग्लैमर, प्रचार और महिमामंडन, ऐश्वर्य और शक्ति के बावजूद यह एक सामान्य खेल ही तो है, जिसमें 22 खिलाड़ी एक गेंद के लिए मुकाबला करते हैं और समूचा विश्व मंत्रमुग्ध होकर देखता है।

प्रतिस्पर्धी खेलों की प्रकृति के अनुरूप इसमें भी अक्सर अंत में एक पक्ष को आनंद और दूसरे को निराशा की अनुभूति होती है। कतर में बीते रविवार की रात पुन: इसी सत्य की पुष्टि हुई। खेलों के सबसे भव्य आयोजन का सबसे बड़ा मंच संभवत: सबसे रोमांचक मुकाबले का साक्षी बना। इस लेख में मैं चर्चा उस विषय की करना चाहता हूं, जो खेल प्रेमियों के लिए शाश्वत आकर्षण लिए रहता है और वह है सर्वकालिक महानतम खिलाड़ी को लेकर बहस और इतिहास से विलक्षण समानताएं।

क्या लियोनेल मेसी सर्वकालिक महानतम फुटबालर हैं? हम तार्किक आधार पर यह निष्कर्ष अवश्य निकाल सकते हैं कि कोई भी समकालीन खिलाड़ी उनके चमत्कारिक प्रदर्शन और असाधारण उपलब्धियों के आगे कहीं नहीं ठहरता। क्या मेसी, पेले और माराडोना की श्रेणी में सम्मिलित होकर फुटबाल की तथाकथित त्रिमूर्ति बनाते हैं या उनका दर्जा इन दोनों से भी ऊपर हो जाता है? इस विमर्श के संदर्भ में यह स्मरण रखना चाहिए कि पेले ने तीन बार विश्व कप जीता और यह मेसी का पहला खिताब है। इतना ही नहीं, पेले इतने अद्भुत स्कोरर थे, जिनके बारे में दंतकथाएं हैं कि उनके असल आंकड़ों की कोई थाह नहीं। वहीं, माराडोना को इसका श्रेय जाता है कि वह अपेक्षाकृत लचर अर्जेंटीना और नापोली को अपनी अद्वितीय प्रतिभा एवं प्रेरक नेतृत्व के दम पर शिखर तक ले गए।

आंकड़े भले झूठ न बोलते हों, किंतु कुछ पहेलियां अवश्य उलझा देती हैं। एक सत्य यह भी है कि चोट के चलते पेले 1962 का विश्व कप बमुश्किल ही खेल पाए। इसलिए उस विजय में उनका योगदान न के बराबर था। वहीं 1970 की विश्व विजेता ब्राजील की टीम एक तरह से 1948 में ब्रैडमैन के नेतृत्व वाली अपराजेय क्रिकेट टीम के समकक्ष थी। यह उनकी उत्कृष्टता का अवमूल्यन नहीं, लेकिन वह टीम उनकी उपस्थिति के बगैर भी जीतने की क्षमता रखती थी। जहां तक माराडोना की बात है तो अपनी असाधारण प्रतिभा के बावजूद वह अपने सर्वोत्तम दौर को पेले या मेसी जितना लंबा विस्तार नहीं दे पाए। वहीं, मेसी के पास ट्राफियों का ऐसा आकर्षक अंबार है, जैसा इतिहास में किसी के पास नहीं रहा। पेले कभी यूरोपीय लीग नहीं खेले तो माराडोना कोपा अमेरिका अपने नाम नहीं कर पाए। जबकि मेसी ने फुटबाल की हर उपलब्धि हासिल की है, चाहे वह क्लब स्तर पर हो या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, व्यक्तिगत स्तर पर हो या सामूहिक स्तर पर।

खेल, कला के सौंदर्य और विज्ञान की सटीकता का अद्भुत संगम बनाते हैं। यहां केवल यही पर्याप्त नहीं कि आपने क्या हासिल किया, परंतु इसका भी महत्व होता है कि उसे कैसे हासिल किया। यहां मेसी का पलड़ा अन्य महान खिलाड़ियों पर भारी पड़ता है। वह अपनी कला-कौशल के अप्रतिम अग्रदूत हैं। उनका खेल मैदान पर किसी बहते छंद की मानिंद है, जो खेल के पारखियों को परम आनंद की अनुभूति कराता है। मैदान पर अपने कौशल का नायाब प्रदर्शन और बाहर सौहार्दपूर्ण आचरण। विजय में विनम्रता और पराजय में गरिमा का आवरण।

कुछ पैमानों पर रोजर फेडरर से उनकी तुलना मुझे उपयुक्त लगती है। फेडरर-नडाल और मेसी-रोनाल्डो प्रतिद्वंद्विता में गजब की समानता दिखती है। पूर्णता से परिपूर्ण प्रतिभा बनाम कड़ी मेहनत की प्रतिमूर्ति। जैसे करीब-करीब एक आदर्श आधुनिक टेनिस खिलाड़ी जोकोविक का उदय होता है, जो अपने प्रख्यात प्रतिद्वंद्वियों से कई मामलों में इक्कीस सिद्ध होते हैं, वैसे ही एम्बापे का उभार भी कुछ ऐसी ही कहानी कहता है। एक लगभग संपूर्ण आधुनिक फुटबालर, जो निश्चित रूप से योग्य उत्तराधिकारी और कालांतर में सर्वकालिक महानतम पदवी को चुनौती देने में सक्षम प्रतीत होते हैं। जहां, टेनिस कोर्ट पर तमाम उपलब्धियों के बावजूद जोकोविक फेडरर के प्रशंसकों की बराबरी नहीं कर सके, वहीं एम्बापे का प्रदर्शन, प्रतिष्ठा और उनका अब तक का व्यवहार भी उसी नियति के संकेत करता है।

कृपया 2019 का फेडरर-जोकोविक विंबलडन फाइनल याद करें। फेडरर से भावनात्मक लगाव के अतिरिक्त टेनिस की खूबसूरती के लिए भी अधिकांश खेल प्रेमियों की यह प्रबल इच्छा थी कि फेडरर की विजय हो। अपनी सर्व पर दो मैच पाइंट्स के बावजूद जब वह नहीं जीत सके तो हमने स्वयं को यही कहकर सांत्वना दी कि जीवन का यही दस्तूर होता है, जहां आवश्यक नहीं कि हर बार अंत हमेशा किसी परीकथा सरीखा हो। वह मिसाल रविवार को बदल गई। उसकी समापन पटकथा इतनी संपूर्ण थी कि मानो ईश्वर की मर्जी इसी में हो। इसने सर्वकालिक महानतम के विमर्श को भी फिलहाल तो तय कर ही दिया। इसकी बुनियादी सीख यही है कि क्षमता और प्रयास शिखर पर पहुंचने के लिए पर्याप्त हैं। आक्रामकता और निर्ममता न केवल अप्रिय, अपितु अनावश्यक भी है। यदि खेल को जीवन के एक रूपक के तौर पर लें तो मेसी से उपयुक्त आदर्श की तलाश अत्यंत कठिन होगी और यही मेरे लिए उन्हें सर्वकालिक महानतम बनाता है।

और अंत में, अपने देश के परिप्रेक्ष्य में देखें तो हम फुटबाल का परोक्ष आनंद ही ले पाते हैं, क्योंकि विश्व के सबसे लोकप्रिय खेल में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की पहचान को लेकर हम अभी तक प्रतीक्षारत हैं। वर्तमान स्थिति तो यह है कि हम विश्व कप के क्वालिफाइंग दौर के लिए भी क्वालिफाई नहीं कर पाते। क्या 2038 विश्व कप को लेकर कोई उम्मीद लगाना उचित होगा?