Religion: जानिए, दिव्य-दृष्टि के खुल जाने से क्यों अंधकार हमेशा के लिए खत्म हो जाता है
ज्ञान दृष्टि से मनुष्य ज्ञान जगत से संबंधित समस्त बातों का अनुभव कर सकता है। उसी तरह अज्ञान दृष्टि से अज्ञान के जगत का अनुभव कर लेता है।
ज्ञान दृष्टि से मनुष्य ज्ञान जगत से संबंधित समस्त बातों का अनुभव कर सकता है। उसी तरह अज्ञान दृष्टि से अज्ञान के जगत का अनुभव कर लेता है। जिन दो आंखों से हम परिचित हैं, जिन दो आंखों से हम देखते हैं, जिन दो चक्षुओं को हम जानते हैं, वे अज्ञान के चक्षु हैं। अज्ञान की स्थिति में ये दो आंखें काम करती हैं और ज्ञान की दृष्टि बंद रहती है। जब ज्ञान दृष्टि खुल जाती है, तब अज्ञान दृष्टि बंद हो जाती है। जिस तरह अज्ञान दृष्टि बाहर की ओर (बाहरी जगत) काम करती है, उसी प्रकार ज्ञान दृष्टि भीतर (आंतरिक जगत) की ओर काम करती है। दोनों में क्रिया एक ही तरह है। ज्ञान और विज्ञान परिचित आंखों और अदृश्य आंखों का एक भाव भी है। एक सम स्थिति भी है। जहां दोनों नहीं होते हैं, इन दोनों से अलग तीसरी आंख है, जिसे त्रिनेत्र भी कहा जाता है। त्रिनेत्र को दिव्य दृष्टि कह सकते हैं, जो ज्ञानमय दृष्टि है। अज्ञानमय दृष्टि का जिस तरह से उत्तराधिकारी मनुष्य है, उसी प्रकार से इस तीसरी आंख का भी अधिकारी मनुष्य होता है। त्रिनेत्र शक्ति का स्थान है। ध्यान साधना से त्रिनेत्र के खुल जाने से अंधकार हमेशा के लिए खत्म हो जाता है।
दृश्य जगत से अदृश्य जगत के बोध के लिए और सूक्ष्म जगत की सूक्ष्म गतिविधियों में रहने के लिए त्रिनेत्र का विशेष महत्व है। दिव्य भाव में आत्ममय होने और भगवत अनुग्रह के लिए आंतरिक ज्ञानमय शक्ति आवश्यक है, जो त्रिनेत्र पर ध्यान केंद्रित होने पर ही संभव है। त्रिनेत्र पर ध्यान केंद्रित होने पर परम सत्ता के साथ साक्षात्कार होता है। इस पूर्णता को प्राप्त कर लेने पर तीसरी आंखें खोल लेने के बाद ज्ञान शक्ति मनुष्य के अधिकार में होती है। स्पष्ट है, आंतरिक त्रिनेत्र के खुलने के बाद व्यक्ति संसार और परम चेतन तत्व की अच्छी तरह से अनुभूति करने लगता है। कहने का आशय यह है कि आंतरिक नेत्र यानी त्रिनेत्र के खुलने के बाद अंधकार स्वत: खत्म हो जाता है, जैसे कि सूर्योदय के बाद अंधकार अपने आप ही खत्म हो जाता है, परंतु इस त्रिनेत्र को खोलना उतना भी आसान नहीं है। इसके लिए आत्मिक शक्ति को जागृत करना होता है। जिस प्रकार सूर्य समस्त अंधकार को चीरते हुए क्षितिज पर दस्तक देता है उसी तरह हमें भी अपने आंतरिक अंधकार पर वैसे ही विजय प्राप्त करनी होती है।
[ महायोगी पायलट बाबा ]
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