Ramgarh Shekhawati: रामगढ़ शेखावटी को कहते हैं ओपन आर्ट गैलरी, 200 साल से वीरान होने के बाद भी कम नहीं हुआ आकर्षण
भारत के शहरों को किसी न किसी राजा-महाराजा ने बसाया था। मगर राजस्थान के सीकर जिले का एक छोटा-सा शहर है रामगढ़ शेखावाटी जिसे किसी राजा ने नहीं मारवाड़ी व्यापारियों ने बसाया। उन्होंने यहां बड़ी-बड़ी हवेलियां बनवाईं थीं। 19वीं शताब्दी तक यह जगह भारत के सबसे अमीर शहरों में शुमार होती थी। यहीं से सबसे ज्यादा व्यापार होता था। मगर आज वो हवेलियां सुनसान पड़ी हैं।
शशांक शेखर बाजपेई। स्थापत्य और कला यानी आर्ट और आर्किटेक्चर में भी रामगढ़ का कोई दूसरा शहर सानी नहीं था। मगर, आज यह जगह वीरान पड़ी करीब 125 बड़ी-बड़ी हवेलियों की वजह से अपनी पहचान रखती है। देश की धरोहर में आज हम बात करेंगे रामगढ़ शेखावटी की।
कहते हैं कि एक समय ऐसा था कि जब यहां एक से बढ़कर एक धनी व्यापारी परिवार रहा करते थे। वे अपनी धन-संपत्ति का प्रदर्शन करने के लिए न सिर्फ शानदार हवेलियां बनवाते थे, बल्कि उसके एक-एक कोने में चित्रकारी भी करवाते थे।
इसी वजह से इस शहर को दुनिया की सबसे बड़ी ओपन एयर आर्ट गैलरी के नाम से भी जाना जाता है। वजह है यहां बनी दर्जनों हवेलियों पर बने भित्ति चित्र। शानदार छतरियां और मारवाड़ी समुदाय की बनाई गई एक से बढ़कर एक हवेलियां लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती हैं।
जो एक बात रामगढ़ के बारे में कही जाती है, वह यह है कि एक समय में यहां इतने सेठ रहा करते थे कि इसे सेठों का रामगढ़ कहा जाता था। यह देश का सबसे संपन्न सबसे अमीर क्षेत्र हुआ करता था। - डॉ. रीमा हूजा, इतिहासकार
चुरू से जुड़ी है रामगढ़ के बनने की कहानी
ओटीटी प्लेटफॉर्म डिस्कवरी प्लस के शो एकांत में बताया गया है कि राजस्थान का चुरू एक समृद्ध शहर हुआ करता था। वहां ऊन का व्यापार करने वाले कई धनी पोद्दार परिवार रहा करते थे। उन्होंने इससे होने वाली कमाई से बड़ी-बड़ी हवेलियां बनवाई थीं और चित्रों से सजाई थीं। उस समय चुरू के ठाकुरों की स्थिति ठीक नहीं थी।
लिहाजा, उन्होंने ऊन से अच्छी कमाई करने वाले पोद्दारों पर टैक्स बहुत बढ़ा दिया। इस बात से नाखुश एक पोद्दार ने विद्रोह कर दिया। कहा कि वह चुरू से दूर कहीं नया शहर बसाएंगे। वहां बड़ी-बड़ी हवेलियां बनाएंगे और उसे चुरू से भी ज्यादा संपन्न बनाएंगे।
इसके बाद वे रामगढ़ पहुंचे। यहां उन्होंने सीकर के राजा देवी सिंह की मदद से 1791 में यह शहर बसाया। उन्होंने कई परिवारों को यहां बसने का न्योता दिया। इसके बाद पोद्दार परिवारों ने यहां व्यापार को बढ़ाया और बड़ी-बड़ी हवेलियां बनवाईं। इसके बाद इस बात को सच भी कर दिखाया।
दान-धर्म में पीछे नहीं थे सेठ
स्थानीय लोगों के अनुसार, यहां रहने वाले सेठ दान-धर्म में भी पीछे नहीं थे। कहते हैं कि सेठ होने के लिए चार चीजें होनी जरूरी थीं। स्कूल, धर्मशाला, गोशाला और मंदिर। इसी वजह से यहां के सेठों ने शहर में कई स्कूल, धर्मशालाएं और मंदिरों का निर्माण कराया।
यहां के स्कूल की इतनी ख्याति हुआ करती थी कि देश के कोने-कोने से पढ़ने के लिए छात्र आया करते थे। यहां फ्री में शिक्षा और खाना भी दिया जाता था। उन्हीं में से कई लोग बाद में बड़े पदों पर गए या शिक्षक बनकर ज्ञान का प्रकाश फैलाने लगे। इसी वजह से इस जगह को छोटी काशी के रूप में भी पहचान मिली, जो शिक्षा का अद्वितीय केंद्र रहा।
पुराना रामगढ़ 3 किमी के दायरे में बसा हुआ है। इस रामगढ़ के चारों ओर चार दरवाजे बने हुए हैं। बीकानेर जाने के लिए बीकानेरिया दरवाजा, इसके ठीक सामने दिल्ली जाने के लिए दिल्ली दरवाजा, बाईं तरफ फतेहपुर जाने के लिए फतेहपुरिया दरवाजा और उसके सामने चुरू जाने के लिए चुरू दरवाजा बना है। - जगदीश जोहारी, हैंडीक्राफ्ट डीलर
हवेलियों की यह है खासियत
यहां निचली मंजिलों पर दुकान और गोदाम होते थे। ऊपर की मंजिलों पर सेठों का परिवार रहा करता था। हवेलियां इतनी बड़ी होती थीं कि उसमें 100 से ज्यादा परिवार रह सकते थे। रामगढ़ की सबसे बेहतरीन हवेली और छतरी है रामगोपाल पोद्दार की छतरी।
यहां की बाकी हवेलियों की तुलना में रामगोपाल पोद्दार की छतरी बेहतर हालत में है। एकांत के शो में स्थानीय निवासी आनंद ने बताया कि वह 1872 में यहां के अमीर और मशहूर व्यापारी हुआ करते थे। उनकी छतरी में 500 से ज्यादा पेंटिंग्स बनी हैं। इसमें रामायण, कृष्ण लीला और रागमाला के अलावा महाभारत के सीन के साथ ही भगवान शिव, गणेश जी, विष्णु अवतार अदि के चित्र भी बनाए गए हैं।
संपत्ति का प्रदर्शन करने की होड़ में बने चित्र
जानकार बताते हैं कि विभिन्न मारवाड़ी परिवारों के बीच भव्य हवेलियां और चित्रित इमारतें बनाकर अपनी संपत्ति का प्रदर्शन करने की होड़ थी। इसी के चलते इन जगहों पर इतनी सुंदर कलाकारी की गई है। इन्हें रंगने के लिए रंग जर्मनी से मंगाए जाते थे। 200 साल से ज्यादा का समय होने के बाद भी उनकी रंगत बरकरार है।
अब सूनसान पड़ी हैं हवेलियां
मगर, अफसोस की बात यह है कि अब इन हवेलियों में कोई रहने वाला नहीं है। ये सूनसान खाली पड़ी हैं। यहां बनी छतरियां देखरेख के अभाव में बदहाल हालत में हैं। दरअसल, इनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है। ये निजी संपत्तियां हैं, जिसके चलते सरकार इनका रखरखाव नहीं करती है।
वहीं, इन हवेलियों के कई वारिसों को तो पता भी नहीं है कि रामगढ़ शेखावटी में उनकी कोई हवेली भी है। पीढ़ी दर पीढ़ी ये हवेलियां यूं ही खाली चली आ रही हैं। यहां रहने वाले लोग देश-दुनिया में व्यापार कर रहे हैं और तीन से चार पीढ़ियों से यहां लौटे ही नहीं हैं।
आनंद ने बताया कि एस्सार ग्रुप के शशि और रवि रुइया, डनलप टायर के ओनर पवन रुइया के अलावा सुरेखा ग्रुप, बीएम खेतान ग्रुप के मालिक भी रामगढ़ से हैं। आज ये सारे बिजनेसमैन दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और भारत के बाहर कई जगहों पर बस चुके हैं।
रामगढ़ शेखावाटी में घूमने की जगहें
रामगढ़ शेखावाटी में कई हवेलियां देखने लायक हैं, जिन्हें मारवाड़ी परिवारों ने बनवाया था। हालांकि, इनमें से कई अब भी सुनसान पड़ी हैं। कई हवेलियां तो ऐसी हैं, जिनकी तीन से चार पीढ़ियां तक यहां लौटकर वापस नहीं आई हैं। कई लोग तो ऐसे हैं, जिन्हें पता ही नहीं है कि उनकी हवेलियां भी यहां हैं।
इस शहर में आपको रुइया की हवेली, पोद्दार की हवेली, प्रहलादका की हवेली, संवलका की हवेली, खेतान की हवेली देखने को मिलेगी। यहां बनी खेमका की हवेली को अब टूरिस्ट होटल में बदल दिया गया है।
रामगढ़ शेखावाटी कैसे पहुंचें
रामगढ़ शेखावाटी शहर रेल और सड़क दोनों से जुड़ा हुआ है। चुरू-सीकर-जयपुर रेलवे लाइन इस शहर से होकर गुजरती है। यहां का सबसे करीबी हवाई अड्डा जयपुर में है, जो यहां से करीब 125 किमी दूर है।
डिस्क्लेमरः डिस्कवरी प्लस ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज हुए शो ‘एकांत’ और राजस्थान सरकार की पर्यटन वेबसाइट से जानकारी ली गई है।