Unakoti Rock Carvings: उनाकोटी में हैं एक करोड़ से एक कम मूर्तियां, किसने और कब बनाई… ये आज भी है रहस्य
पूर्वोत्तर भारत के त्रिपुरा में एक जगह है उनाकोटी। जंगलों के बीच इस सुदूर पहाड़ी इलाके में देवी-देवताओं की 99 लाख 99 हजार 999 मूर्तियां बनी हुई हैं। ये मूर्तियां कब और किसने बनवाईं किस राजा की देख-रेख में यह काम हुआ था यह आज भी रहस्य है। मगर यहां का प्राकृतिक सौंदर्य और भगवान शिव को समर्पित यह जगह आपका मन मोह लेगी।
शशांक शेखर बाजपेई। Unakoti Rock Carvings: त्रिपुरा और बांग्लादेश की सीमा पर कैलाशहर है। यहां से 10 किमी दूर घने जंगलों में बसा है उनाकोटी। कहते हैं कि इसी रास्ते से होकर एक करोड़ देवी-देवता काशी गए थे। मगर, इस जगह का एक रहस्य है कि इतनी दूरस्थ और एकांत जगह पर किसने और कब चट्टानों को तराशकर इतनी सारी मूर्तियां बनाई थीं।
दुर्गम इलाके में इस जगह के बनने की कथा रहस्यमयी है। कोई भी इतिहास इस रहस्य को सुलझा नहीं सका है। यह पता ही नहीं है कि किस काल खंड में किस युग में यहां मूर्तियों का निर्माण किया गया था। इतनी सारी भव्य मूर्तियां पहले कभी एक साथ देश के किसी कोने में देखने को नहीं मिली हैं।
कुछ लोग मानते हैं कि पाल साम्राज्य के दौरान यह जगह बनी, तो कोई कहता है कि 8वीं-9वीं शताब्दी में यह जगह बनी। कुछ लोग मानते हैं कि यहां बनी मूर्तियां बौद्ध संस्कृति से प्रभावित हैं। हालांकि, इसके बाद भी कोई पक्के दावे के साथ कुछ नहीं बता पाता है।
भोलेनाथ इस रास्ते से गए थे काशी
डिस्कवरी प्लस से शो एकांत में त्रिपुरा ऑब्जरवर के रिपोर्टर मृणाल कांति सिन्हा ने बताया कि उनाकोटी के बारे में बहुत सारी किंवदंतियां हैं। यह भी कहा जाता है कि एक भगवान शिव कई देवी-देवताओं के साथ यहां से बनारस जा रहे थे।
इस दौरान वे रघुनंदन पहाड़ से गुजरे। उनाकोटी को पहले रघुनंदन पहाड़ के नाम से जाना जाता था। रात का समय था, तो सभी देवी-देवता थक गए थे। तब शंकर भगवान ने कहा कि सभी रात को रघुनंदन पहाड़ पर आराम करेंगे और सुबह होते ही वाराणसी के लिए प्रस्थान करेंगे।
मगर, दुर्भाग्य से अगली सुबह किसी भी देवी-देवता की नींद नहीं खुली। महादेव उठे और अकेले ही वाराणसी के लिए चल दिए। कहा जाता है कि जो देवी-देवता नहीं उठ पाए, वो पत्थर में बदल गए। यह उन बहुत सारी लोककथाओं में से एक है, जिसे कई लोग मानते हैं।
उनाकोटी मतलब एक करोड़ से एक कम
उनाकोटी में पत्थरों को काटकर पहाड़ों में मूर्तियां बनाई गई हैं। ये मूर्तियां कब और कैसे बनीं, यह बता पाना बहुत मुश्किल है। उस समय त्रिपुरा साम्राज्य भी नहीं था। जब तक इस जगह की पुरातात्विक जांच नहीं होती, तब तक कुछ भी कह पाना मुश्किल है। मगर, उनाकोटी शब्द बंगाली भाषा से निकला है, जिसका अर्थ है एक करोड़ से एक कम। - डॉक्टर सुकेंदू देबबर्मन, त्रिपुरा यूनिवर्सिटी में इतिहास के प्रोफेसर
पूरी वादी ही लगती है मंदिर का हिस्सा
उनाकोटी की पूरी वादी ही एक विशाल मंदिर की तरह दिखती है। करीब एक किलोमीटर के दायरे में फैली पहाड़ियों पर जहां तक नजर जाती है, पत्थरों पर उकेरी गई देवी-देवताओं की प्राचीन मूर्तियां दिखती हैं। यहां पर चतुर्मुखी शिव, गणेश भगवान, दुर्गा मां, लक्ष्मी मां सहित कई देवी-देवताओं की मूर्तियां तो हैं ही। इसके अलावा यहां आपको रावण की मूर्ति भी देखने को मिलेगी, जो हाथ में धनुष-बाण लेकर निशाना साधते हुए दिखती है।
यहां पहुंचते ही आपको अलग ही एहसास होगा। प्रकृतिक सौंदर्य से भरी इस जगह पर चारों तरफ पहाड़ हैं और हरे-भरे पेड़-पौधे देखने को मिलेंगे। यह इलाका बहुत घने जंगलों के बीच बसा है और बहुत दुर्गम है। ऐसा लगता है कि अलग-अलग समय के दौरान यहां मूर्तियों को बनाया गया होगा।
सीता कुंड में स्नान करने से मिलता है पुण्य
डिस्कवरी प्लस से शो एकांत में त्रिपुरा यूनिवर्सिटी में इतिहास के प्रोफेसर डॉक्टर सुकेंदू देबबर्मन ने बताया कि शिव भगवान की भी कई सारी मूर्तियां दिखती हैं। रिपोर्टर मृणाल कांति सिन्हा बताते हैं कि यहां सबसे बड़ी मूर्ति शिव भगवान की है। उस मूर्ति के पास नंदी भी है। बांग्लादेश और पड़ोसी राज्यों से बहुत सारे लोग यहां आते हैं और पूजा करते हैं।
यहां पहुंचने पर आपको वैसी ही शांति मिलती है, जैसी किसी धार्मिक जगह पर मिलती है। यहां पर बड़ी-बड़ी प्रतिमाओं के बीच छोटी-छोटी और अकेली बनी मूर्तियां भी देखने को मिलती हैं। यहां पास में ही सीता कुंड भी बना हुआ है, जिसमें से जल की धारा निकलती है। धार्मिक मान्यता है कि इस जगह पर स्नान करने से पुण्य मिलते हैं। लिहाजा, यहां आने वाले लोग इस कुंड में स्नान जरूर करते हैं।
भगवान विश्वकर्मा के बेटे ने बनाई मूर्तियां
स्थानीय लोगों के बीच एक और कहानी प्रचलित है। यह कहानी है भगवान विश्वकर्मा के बेटे कल्लू कुमार की। उन्हें यहां रहने वाले कबीले के लोग बताते हैं कल्लू कुमार भगवान शिव और माता पार्वती के साथ कैलाश जाना चाहते थे। मगर, भोलेनाथ उन्हें कुछ खास पसंद नहीं करते थे।
लिहाजा, उन्होंने एक शर्त रखी कि यदि कल्लू कुमार एक रात में एक करोड़ मूर्तियां बना लेते हैं, तो वो कैलाश आ सकते हैं। कल्लू कुमार ने सारी रात मेहनत कर मूर्तियों को बनाया। हालांकि, सुबह जब गिनती हुई, तो एक करोड़ में से एक मूर्ति कम निकली और कल्लू कुमार कैलाश नहीं जा सके।
बहरहाल, एक करोड़ में से एक मूर्ति कम होने की वजह से इस जगह का नाम उनाकोटी पड़ गया। मगर, रिपोर्टर मृणाल कांति सिन्हा की बताई कहानी पर यकीन करें, तो भी सवाल तो उठता ही है कि यदि सारे देवी-देवता पत्थर में बदल गए, तो फिर भोले-शंकर की कई सारी मूर्तियां यहां चट्टानों पर क्यों बनी है। दोनों कहानियों से एक बात तो तय है कि इन मूर्तियों को बनाने के पीछे मुख्य भूमिका शिव भगवान की है।
एक कहानी यह भी है प्रचलित
एक और कहानी के अनुसार, कलियुग की शुरुआत में देवी-देवताओं ने धरती छोड़कर स्वर्ग जाने का फैसला किया। दरअसल, उन्हें पता था कि कलियुग में यह जगह रहने लायक नहीं रहेगी। मगर, उन्होंने यह भी फैसला किया कि वो अपनी मूर्तियां यहां पर छोड़कर जाएंगे, ताकि भविष्य में जो लोग यहां आकर उनका आशीर्वाद लेना चाहें, ले सकते हैं।
कैसे पहुंचे
त्रिपुरा की राजधानी अगरतला देश के विभिन्न शहरों से फ्लाइट के जरिये जुड़ी हुई है। उनाकोटी जिले का जिला मुख्यालय कैलाशहर अगरतला से 178 किमी दूरी है। यहां के लिए रोजाना बसें चलती हैं। यहां पहुंचने के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन एनएफ रेलवे का कुमारघाट है, जो कैलाशहर से 26 किमी दूर है।
इसके अलावा गुवाहाटी, शिलांग, सिलचर और राज्य के कई जिलों और उप-विभागीय शहरों से भी कैलाशहर के लिए रोजाना बसें चलती हैं। यहां से उनाकोटी सिर्फ 8 किमी दूर है, जहां पहुंचने के बाद आपको अद्भुत अनुभव मिलेगा। यहां की प्राकृतिक सुदंरता आपको मंत्रमुग्ध कर देगी।
डिस्क्लेमरः डिस्कवरी प्लस ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज हुए शो ‘एकांत’ और त्रिपुरा सरकार की पर्यटन वेबसाइट से जानकारी और फोटो ली गईं हैं।