Bhangarh Fort Story: तांत्रिक का श्राप, भूतों की कहानियां… वीरान भानगढ़ किले का कभी था भव्य इतिहास
देश की धरोहर में आज हम आपको एक ऐसे किले की कहानी बताने जा रहे हैं जिसे भूतों का डेरा कहा जाता है। खास बात है कि इस वीरान किले में दीवारें तो हैं लेकिन छत नहीं है। अंधेरे के बाद कोई यहां नहीं रुकता है। कहते हैं कि राजस्थान के भानगढ़ किले में आत्माएं पर्यटकों से बात करने की कोशिश करती हैं।
शशांक शेखर बाजपेई। जयपुर से 118 किमी दूर बनी है भानगढ़ नगरी और उसका किला। यह देश की सबसे भूतिया कही जाने वाली जगहों में से एक है। 17वीं शताब्दी में इस किले का निर्माण आमेर के मुगल सेनापति मानसिंह के छोटे भाई राजा माधोसिंह ने करवाया था।
मगर, अब यह जगह वीरान है। किले के परिसर में हवेलियों, मंदिरों और सुनसान बाजारों के अवशेष खंडहर के रूप में खड़े हैं। शाम को सूर्यास्त के बाद कोई भी व्यक्ति यहां नहीं जाता है।
कहते हैं कि यहां अंधेरे में पैरानॉर्मल एक्टिविटीज होती हैं। इसके बावजूद पर्यटक इस खूबसूरत किले को देखने के लिए पहुंचते हैं।
श्राप का असर... गिर जाती है छत
किले की सबसे अजीब चीज जिसे देखकर आप हैरान हो जाएंगे, वह है कि यहां बने किसी भी घर की छत नहीं है। घर का पूरा स्ट्रक्चर बना है, लेकिन किसी की भी छत नहीं है।
स्थानीय लोग बताते हैं कि घरों में छत इसलिए नहीं है, क्योंकि जब भी बनाओ, वह गिर जाती है। यहां का बच्चा-बच्चा जानता है कि इस पर बालूनाथ का श्राप है।
इतनी कहानियां कि इतिहासकार भी कन्फ्यूज
ओटीटी प्लेटफॉर्म डिस्कवरी प्लस पर रिलीज हुए शो ‘एकांत’ में इतिहासकार डॉक्टर रीमा आहूजा ने बात की। उन्होंने कहा कि भानगढ़ के बारे में इतनी कहानियां हैं, इतनी किंवदंतियां हैं कि इतिहास कहां शुरू होता है, कहां खत्म होता है, ये कहना आम लोगों के लिए मुश्किल है।
यहां तक कि इतिहासकारों के लिए भी समस्या है। वह बताती हैं कि कुछ कहानियां बहुत पुरानी हैं। कुछ भूत-प्रेतों की कहानियां आ जाती हैं। किसी राजा या राजकुमारी पर श्राप हुआ किसी का।
रीमा कहती हैं कि कई बार हम देखते हैं कि लोग इन चीजों के बारे में ज्यादा जिज्ञासा रखते हैं। इस वजह से ऐसी कहानियां प्रचलन में हैं। मगर, पूरा सच किसी को नहीं पता।
संत बालूनाथ और महाराजा की कहानी
भानगढ़ के महाराज माधोसिंह एक संत बालूनाथ के भक्त थे। बालूनाथ ने तपस्या करने के लिए महाराज से एक गुफा बनाने की मांग की। महाराज तुरंत तैयार हो गए और उन्होंने एक गुफा बनवा दी। बालूनाथ उस गुफा में तपस्या करने चले गए।
मगर, दरबार के पुजारी महाराज और संत बालूनाथ के बीच रिश्ते को देखकर जलने लगे। दोनों को अलग करने के लिए पुजारियों ने एक योजना बनाई। उन्होंने एक बिल्ली को मारकर गुफा के अंदर फेंक दिया।
दो-तीन दिन बाद जब बिल्ली के मृत शरीर से बदबू फैलने लगी, तो पुजारियों ने राजा को जानकारी दी कि संत बालूनाथ का गुफा में निधन हो गया है।
फिर संत ने दे दिया तबाही का श्राप
यह जानकारी मिलने के बाद महाराजा माधोसिंह बहुत दुखी हुए। वह गुफा तक गए, लेकिन बदबू की वजह से अंदर नहीं घुसे। उन्होंने गुफा को बंद करने का आदेश दिया।
उधर, जब संत बालूनाथ की तपस्या पूरी हो गई, तो उन्होंने देखा कि उनके बाहर निकलने का रास्ता बंद करा दिया गया है। इसके बाद क्रोधित होकर संत बालूनाथ ने श्राप दे दिया कि भानगढ़ पूरी तरह से तबाह हो जाए।
इसके बाद क्या हुआ, यह कोई नहीं जानता, लेकिन भानगढ़ पूरी तरह तबाह हो गया। घरों की छतें गिर गईं। स्थानीय लोग बताते हैं कि तब का दिन और आज का दिन है, यहां के घरों में जब भी कोई छत बनाओ, तो वह गिर जाती है।
जंगल में बनी है संत की समाधि
- गलती का एहसास होने पर राजा ने संत की समाधि बनवाई।
- किले के पीछे जंगलों में बालूनाथ की समाधि आज भी बनी है।
- इतिहासकार इस नाम के संत के होने की पुष्टि नहीं करते हैं।
- बालकनाथ नाम के संत होने की बात इतिहासकार मानते हैं।
- हालांकि, वो किस काल, किस क्षेत्र के रहने वाले थे, पता नहीं।
नागर शैली में यहां बने हैं कई मंदिर
अब जरा जान लेते हैं किले के वास्तु के बारे में। किले में मुख्य द्वार के अलावा लाहौरी गेट, अजमेरी गेट, फूलबाड़ी गेट और दिल्ली गेट हैं। किले के मुख्य द्वार पर कई मंदिर हैं, जिनमें से प्रमुख गोपीनाथ मंदिर, सोमेश्वर मंदिर, केशव राय मंदिर, मंगला देवी मंदिर और गणेश मंदिर हैं।
नागर शैली में बने ये मंदिर 17वीं शताब्दी की वास्तुकला और कारीगरी का एक उत्कृष्ट नमूना हैं। कहते हैं कि महल सात मंजिला था, लेकिन अब इसकी केवल चार मंजिलें ही बची हैं।
राजकुमारी रत्नावती और तांत्रिक की कहानी
अब आपको किले से जुड़ी एक और कहानी सुनाते हैं। ये कहानी है राजकुमारी रत्नावती की, जो यहां काफी प्रचलित है। कहते हैं कि रत्नावती इतनी सुंदर थी कि उसकी चर्चा पूरे राजपूताना में होती थी और हर राजकुमार उसकी सुंदरता पर मोहित था।
इस समय वहां रहने वाला सिंधिया नाम का एक तांत्रिक भी राजकुमारी से शादी करना चाहता था। उसने राजकुमारी को हासिल करने के लिए एक तेल बनाया, जिसे छूने के बाद रत्नावती उस तांत्रिक के पास खिंची चली आती।
हालांकि, यह बात राजकुमारी को पता चल गई। लिहाजा, उसने तेल की शीशी को एक पत्थर पर फेंक दिया। कहते हैं कि इसके बाद वह पत्थर एक बड़ी शिला में बदल गया और सीधे तांत्रिक के ऊपर जा गिरा।
मरने से पहले तांत्रिक ने दिया था श्राप
मरने से पहले उस तांत्रिक ने भानगढ़ के तबाह होने और इसके परिसर में किसी के भी न रह पाने का श्राप दे दिया था। स्थानीय लोग बताते हैं कि इसके बाद एक तूफान आया और भानगढ़ पूरी तरह से तबाह हो गया।
कुछ लोगों का कहना है कि मुगल सेना ने राज्य पर जोरदार हमला किया था। इस दौरान किले को काफी नुकसान हुआ और राजकुमारी रत्नावती सहित किले में मौजूद लोगों का कत्ल कर दिया था।
हालांकि, इस बात का भी इतिहास में कोई उल्लेख नहीं मिलता है। किसी को नहीं पता कि राजकुमारी रत्नावती किसकी बेटी थी, किसकी पत्नी थी या किस समय की ये कहानी है।
औरत के चीखने की सुनाई देती है आवाज
कुछ लोगों का दावा है कि इस किले से औरत के चिल्लाने, चूड़ियां तोड़ने और रोने की आवाजें सुनाई देती हैं। वहीं कुछ लोगों का कहना है कि किले की दीवारों पर कान लगाने से आत्माओं की आवाजें भी सुनाई देती हैं।
कुछ लोगों का मानना है कि किले में घूमने के दौरान ऐसा लगता है, जैसे कोई साया उनका पीछा कर रहा हो बहरहाल, अलवर की पहाड़ी पर बने इस किले में घूमने आने वालों की कोई कमी नहीं है।
अगर आप भी इस बात को महसूस करना चाहते हैं या आपको लगता है ये मनगढ़ंत बाते हैं, तो इसका पता लगाने के लिए आपको भानगढ़ आना होगा।
दिल्ली से 283 किमी दूर है भानगढ़ किला
यह किला सैंक्चुअरी से 50 किलोमीटर दूर जयपुर और अलवर शहर के बीच में बना है। राजस्थान के बाहरी शहरों से बस या टैक्सी से अलवर पहुंच सकते हैं।
दिल्ली से यह जगह करीब 283 किमी और जयपुर से करीब दो घंटे की दूरी पर स्थित है। अगर आप यहां जा रहे हैं, तो अलवर में बाला फोर्ट और अलवर सिटी पैलेस को देखना जाना न भूलें।
डिस्क्लेमरः डिस्कवरी प्लस ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज हुए शो ‘एकांत’ और राजस्थान की पर्यटन वेबसाइट से जानकारी और फोटो लिए गए हैं।
यह भी पढ़ें- हिमाचल का चालाल गांव है 2 दिन के रिलैक्सिंग वीकेंड के लिए बेहतरीन जगह