Kittur Rani Chennamma: कित्तूर किले की बुलंद दीवारें बताती हैं, कैसे अंग्रेजों के खिलाफ 1824 में लड़ी थीं रानी चेन्नम्मा
कभी-कभी सफलता की चोटी पर पहुंचना प्रसिद्ध बनाना समृद्ध बनना ही कुछ जगहों की बर्बादी की वजह बन जाती है। ऐसी ही एक जगह है कित्तूर है। कर्नाटक के बेलगाम से 50 किमी दूर छोटा सा यह राज्य कभी बड़ा साम्राज्य नहीं बना। मगर फिर भी मुगल और मैसूर के राजाओं के बीच भी यहां के देसाई शासकों ने इसे स्वतंत्र रखा।
शशांक शेखर बाजपेई। अंग्रेजों के खिलाफ 1857 के युद्ध को भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम माना जाता है। मगर, इससे भी कई साल पहले कित्तूर ने अंग्रेजों को कड़ी टक्कर दी थी। जर्जर हो चुके कित्तूर के किले की बुलंद दीवारें आज भी बताती हैं कि यहां के वीर और वीरांगनाएं कभी झुके नहीं।
एक वक्त ऐसा भी था, जब यहां की संपन्नता की चर्चा हर ओर होती थी। इस छोटे से राज्य ने कभी पेशवाओं और मुगलों के अलावा अंग्रेजों के आगे भी घुटने नहीं टेके। इसी वजह से राजा मल्लसर्ज की मृत्यु के बाद रानी चेन्नम्मा की बहादुरी के किस्से आज भी लोगों को उस वीरांगना की याद दिलाते हैं।
खजाने के लालच में अंग्रेजों ने किया हमला
डिस्कवरी प्लस के शो ‘एकांत’ में बताया गया है कि चेन्नम्मा ऐसी वीरांगना रानी थीं, जिसने अपनी सीमित शक्ति के बावजूद 1857 में भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम से पहले अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोला। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का ऑफिस धारवाड़ में हुआ करता था।
वहां के कलेक्टर जॉन थैकरे खजाने के लालच में 1824 में अपनी सेना लेकर कित्तूर पहुंचे। पहले युद्ध में वह बहादुरी से लड़ीं और थैकरे भी मारा गया। यह अंग्रेजों के लिए एक बड़ा झटका था। साथ ही इस युद्ध के बाद रानी चेन्नम्मा का प्रभाव स्थापित हो गया।
कित्तूर का खजाना बना था पतन की वजह
मगर, सवाल यह उठता है कि अंग्रेजों ने वहां हमला क्यों किया। इसका जवाब है कि 19वीं सदी की शुरुआत में कित्तूर के खजाने में 15 लाख रुपये नगद और कई बेशकीमती हीरे-जवारात हुआ करते थे। इसके हड़पने के लिए अंग्रेजों ने कित्तूर पर हमला किया था। हालांकि, ऐसा करने वाले वह पहले नहीं थे।
कहते हैं कि पेशवाओं की नजर भी कित्तूर के खजाने पर थी। इसलिए पेशवा बाजीराव ने कित्तूर के राजा मल्लसर्ज को बंदी भी बना लिया था। मगर, उनकी हालत बिगड़ने के बाद उन्हें रिहा कर दिया था। हालांकि, कित्तूर वापस लौटने के दौरान रास्ते में उनकी मौत हो गई थी। इसके बाद रानी चेन्नम्मा ने शासन संभाला।
सफल रहा अंग्रेजों का दूसरा हमला
अब बात करते हैं फिर से अंग्रेजों की। पहले की हार का बदला लेने के लिए अंग्रेजों ने दूसरी बार कित्तूर पर हमला किया। इसके लिए उन्होंने बहाना बनाया कि जिस राज्य का शासक सशक्त नहीं है या जिस राजा की कोई संतान नहीं है, उस राज्य का शासन ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी चलाएगी।
आगे चलकर 1848 में लार्ड डलहौजी की यह हड़प नीति बनी। इसका इस्तेमाल झांसी, सतारा, नागपुर और अवध सहित कई अन्य भारतीय राज्यों पर कब्जा करने के लिए अंग्रेजों ने किया था। इसके चलते झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने भी अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध का एलान कर दिया।
बॉम्बे और मैसूर से बुलाई सेना की टुकड़ी
कित्तूर के मामले में भी अंग्रेजों ने इसी नीति का हवाला देते हुए बॉम्बे और मैसूर से अपनी सेना की टुकड़ियों को बुलाकर दूसरा हमला किया। इस बार भी रानी चेन्नम्मा वह बहादुरी से लड़ीं, लेकिन घर के भेदियों की वजह से युद्ध हार गईं।
अंग्रेजों ने कित्तूर के कुछ लोगों को राजा बनाने का लालच देकर उनके जरिये बारूद में गोबर मिलवा दिया। इसके चलते रानी चेन्नम्मा युद्ध हार गईं। इसके बाद अंग्रेजों ने उन्हें बंदी बनाकर बैलहोंगल के किले में एकांत कारावास में कैद कर दिया।
बीमारी के चलते 21 फरवरी 1829 को रानी चेन्नम्मा का निधन हो गया। उनका जन्म 23 अक्टूबर 1778 को हुआ था। मगर, महज 30 साल की उम्र में रानी चेन्नम्मा ने अपनी जो जगह लोगों के दिलों में बनाई, वो आज भी कायम है। उनकी वीरता के किस्से लोक गीतों में सुने जा सकते हैं।
16वीं सदी में बना था किला
यह किला आज देखरेख के अभाव में खंडहर हो गया है। मगर, किले की दीवारें और अंदर बना संग्रहालय बताता है कि वह कितना समृद्ध और ज्योतिष के क्षेत्र में बहुत उन्नत राज्य था। 16वीं शताब्दी में देसाई शासकों ने कित्तूर के किले को बनवाया। इससे पहले उनकी राजधानी बेलहोंगल हुआ करती थी। कित्तूर के किले के बनने के बाद उन्होंने अपनी राजधानी कित्तूर को बनाया। - सीपी ज्योति, कित्तूर रानी चेन्नम्मा कॉलेज के रिटायर्ड प्रिंसिपल
किले की थीं ये खासियतें
पेशवा-इस्लामी शैली की वास्तुकला से बने इस किले में बाहर की तरफ बारूद रखने की जगह रहने की जगह से काफी दूरी पर बनाई गई थी। दरअसल, बारूद के विस्फोट होने से जान-माल का खतरा रहता था। किले में राजा-रानी के नहाने के लिए एक बड़ा का स्वीमिंग पूल भी था।
राज्य के सारे महत्वपूर्ण काम ज्योतिषीय गणना के आधार पर होते थे। लिहाजा, यहां चंद्र राशि और नक्षत्रों की गणना के साथ ही ध्रुव तारे को देखने के लिए विशेष व्यवस्था की गई थी। इसके लिए किले की दीवार पर एक छेद बना है, जिसमें लगी दूरबीन से पोल स्टार को देखा जाता था।
किले तक कैसे पहुंचे, कब जाएं
कित्तूर के किले को घूमने के लिए किसी भी मौसम में जा सकते हैं। हवाई यात्रा के जरिये यहां पहुंचने के लिए आपको बेलगावी, हुबली जाना होगा। वहां से टैक्सी या बस से कित्तूर पहुंच सकते हैं।
इसके अलावा ट्रेन से आप धारवाड़ या बेलगावी जा सकते हैं। पुणे-बैंगलोर हाईवे पर कित्तूर की दूरी बेलगावी से लगभग 50 किमी और धारवाड़ से 32 किमी है। हुबली से कित्तूर की दूरी करीब 50 किमी है।
डिस्क्लेमरः डिस्कवरी प्लस ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज हुए शो ‘एकांत’ और कर्नाटक सरकार की वेबसाइट से जानकारी ली गई है।