इंटरसेक्स शिशुओं की लिंग चयनात्मक सर्जरी प्रतिबंधित करने की याचिका पर दिल्ली सरकार को नोटिस
जीवन पर खतरे की स्थितियों को छोड़कर इंटरसेक्स शिशुओं की लिंग चयनात्मक सर्जरी पर प्रतिबंध लगाने की मांग करते हुए दायर की गई याचिका पर बुधवार को हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग और दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (डीसीपीसीआर) को नोटिस जारी किया है।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। जीवन पर खतरे की स्थितियों को छोड़कर इंटरसेक्स शिशुओं की लिंग चयनात्मक सर्जरी पर प्रतिबंध लगाने की मांग करते हुए दायर की गई याचिका पर बुधवार को हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग और दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (डीसीपीसीआर) को नोटिस जारी किया है। इस मामले में अगली सुनवाई 11 अक्टूबर को होगी।
सृष्टि मदुरै एजुकेशनल रिसर्च फाउंडेशन की तरफ से दायर याचिका में कहा कि इंटरसेक्स शिशु ऐसी शरीरिक संरचना के साथ पैदा होते हैं, जो महिला या पुरुष की विशिष्ट परिभाषाओं में फिट नहीं होते हैं। साथ ही बताया कि अप्रैल 2019 में मद्रास हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में तमिलनाडु सरकार को इंटरसेक्स शिशुओं की लिंग चयनात्मक सर्जरी पर प्रभावी ढंग से प्रतिबंध लगाने का निर्देश दिया था। जिस पर तमिलनाडु सरकार ने अधिसूचना जारी की। यह भी बताया कि डीसीपीसीआर ने जनवरी 2021 में एक राय दी थी कि दिल्ली सरकार और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग को जीवन के लिए खतरनाक स्थितियों को छोड़कर अनावश्यक लिंग-चयनात्मक सर्जरी पर प्रतिबंध की घोषणा करनी चाहिए। इस राय पर कोई निर्णय नहीं लिया गया।
फाउंडेशन की तरफ से अधिवक्ता राबिन राजू ने राय रखी कि जब तक शिशु बड़ा न हो जाए और सहमति प्रदान करने में सक्षम न हो जाए, तब तक उसकी सर्जरी कराने के लिए किसी को अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। बिना सहमति के सर्जरी मानवाधिकार का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस तर्क का समर्थन करते हुए कई उदाहरण मौजूद हैं। फाउंडेशन ने जीवन पर खतरे की स्थितियों को सूचिबद्ध करने की भी मांग की है। मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की खंडपीठ इस मामले में नोटिस जारी करते हुए अगली सुनवाई 11 अक्टूबर को तय की है।