आशा किरण होम: 200 से ज्यादा लोगों की हो चुकी है मौत, 100 से अधिक बच्चे लापता
आशा किरण से हर साल औसतन छह से सात बच्चे गायब हो जाते हैं। हैरानी की बात है कि सुरक्षा गार्ड तैनात होने के बावजूद कई ऐसे बच्चे भी गायब हैं, जिन्हें डॉक्टरों ने चलने-फिरने में पूरी तरह अनफिट माना था।
नई दिल्ली [नवीन गौतम]। रोहिणी स्थित मंदबुद्धि गृह आशा किरण में 200 से अधिक लोगों की मौत होने के अलावा 100 से ज्यादा बच्चे भी यहां से लापता है। गायब बच्चों में पैरा ओलंपिक का स्वर्ण पदक विजेता भी शामिल है।
आशा किरण के अधिकारियों द्वारा बच्चों की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाकर औपचारिकता पूरी कर दी जाती रही है। हैरानी की बात है कि सात फीट ऊंची दीवार होने और गेट पर सुरक्षा गार्ड तैनात होने के बावजूद कई ऐसे बच्चे भी गायब हैं, जिन्हें डॉक्टरों ने चलने-फिरने में पूरी तरह अनफिट माना था। बच्चों के गायब होने का सिलसिला वर्ष 2001 से लगातार चल रहा है।
आशा किरण से हर साल औसतन छह से सात बच्चे गायब हो जाते हैं। दिल्ली सरकार के समाज कल्याण विभाग द्वारा सूचना के अधिकार (आरटीआइ) के तहत उपलब्ध कराई गई जानकारी के अनुसार, वर्ष 2014 तक यहां से 94 बच्चे गायब हो चुके हैं और पिछले दो वर्षों में यह आंकड़ा 15 है। अगस्त, 2009 में गायब हुए सात वर्षीय राजू और 16 वर्षीय वैभव के बारे में आशा किरण के अधिकारियों का कहना है कि दोनों को इलाज के लिए रोहिणी के डॉ. अंबेडकर अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां से वे गायब हो गए। इसी तरह का तर्क 18 मार्च 2010 को गायब हुए 22 वर्षीय सलमान के बारे में दिया गया।
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मंत्री की घोषणा पर नहीं हुआ अमल
बच्चों की मौत और उनके गायब होने का मामला तूल पकड़ा तो वर्ष 2010 में तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री डॉ. अशोक कुमार वालिया ने आशा किरण का निरीक्षण किया था। उनकी सिफारिश पर तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने आशा किरण को मिनी अस्पताल का रूप देने का एलान किया था ताकि छोटी बीमारियों का इलाज परिसर में ही हो सके।
नहीं बनी विजिटर कमेटी
वर्ष 2009 में जब 21 बच्चों की मौत का मामला सामने आया तो अदालत के आदेश के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने ऐसे गृहों के निरीक्षण के लिए विजिटर कमेटी बनाने का एलान किया था। कमेटी में समाज के विशेषज्ञ लोगों को बतौर सदस्य शामिल किया जाना था, लेकिन यह योजना भी सिरे नहीं चढ़ पाई।
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नहीं पकड़ में आए दोषी
करंट लगने के कारण वर्ष 2014 में आशा किरण में शिवम नाम के युवक की मौत हुई थी। मौत के कारणों की पड़ताल करने के लिए तमाम एजेंसियां जुटीं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की टीम भी पहुंची और दोषियो के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की, लेकिन जांच के नाम पर खानापूर्ति कर दी गई।
दर्ज हुआ था हत्या का मुकदमा, लेकिन हत्यारोपी का नहीं चला पता
आशा किरण में रहने वाले 12 वर्षीय भोला की अगस्त 2010 में मौत के मामले में रोहिणी जिला अदालत ने हत्या का मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिए थे। विजय विहार थाने में मामला भी दर्ज हुआ। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उसकी मौत की वजह सिर में गंभीर चोट लगना बताया गया था। लेकिन आज तक उसके हत्यारे की पहचान ही नहीं हो सकी।
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कई बार मंदबुद्धि लोगों के साथ रखा जाता है शव
आशा किरण में लापरवाही किस हद तक बरती जा रही है, इसका अंदाजा मानवाधिकार आयोग सहित विभिन्न संगठनों की उन रिपोर्ट से लगाया जा सकता है, जिसमें बताया गया कि यदि यहां किसी की मौत हो जाती है तो उसके शव को जल्द हटाने के बजाय औपचारिकता पूरी करने में यहां के अधिकारी 10 से 12 घंटे लगा देते है। इस दौरान शव को वहीं रखा जाता है, जहां मंदबुद्धि लोग रहते हैं। इन रिपोर्ट के सामने आने के बाद आशा किरण के प्रशासन के खिलाफ कठोर टिप्पणी की गई, लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला।
वित्तीय अनियमितताओं का भी गढ़ है आशा किरण
आशा किरण वित्तीय अनियमितताओं का भी गढ़ है। यहां के लिए अधिकांश सामान केंद्रीय भंडार गृह से खरीदने का प्रावधान है, लेकिन दान में आए कंबल तक को फर्जी बिल के सहारे खरीद का कंबल साबित करने में भी यहां के अधिकारी माहिर है। दवाब पड़ता है तो गर्मी में भी बच्चों को कंबल बांट दिया जाता है। इन वित्तीय गड़बड़ियों को लेकर जब आरटीआइ का इस्तेमाल किया गया तो जानकारी देने के बजाय विभागीय अधिकारी आरटीआइ कार्यकर्ता पर ही आवेदन वापस लेने के लिए दवाब बनाने में जुटे हैं।
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