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    दुष्कर्म के झूठे मामलों पर दिल्ली हाईकोर्ट सख्त, कहा-निर्दोषों पर जिंदगीभर के घाव छोड़ते हैं ऐसे आरोप

    Updated: Wed, 31 Dec 2025 07:51 PM (IST)

    दिल्ली हाईकोर्ट ने झूठे दुष्कर्म मामलों पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। अदालत ने कहा कि ऐसे आरोप न केवल न्याय व्यवस्था को प्रभावित करते हैं, बल्कि निर्दो ...और पढ़ें

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    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने झूठे दुष्कर्म मामले दर्ज कराने को बेहद गंभीर मुद्दा बताते हुए कहा है कि ऐसी गलत शिकायतें न सिर्फ न्याय व्यवस्था को प्रभावित करती हैं, बल्कि निर्दोष आरोपितों पर भी जिंदगीभर के लिए गहरे घाव छोड़ जाती हैं। अदालत ने कहा कि झूठे आरोपों के कारण प्रतिष्ठा खोना, जेल जाना, सामाजिक कलंक और मानसिक आघात जैसी पीड़ाएं ऐसी होती हैं, जो अक्सर कभी नहीं भर पातीं।

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    न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ ने कहा कि जैसे वास्तविक यौन उत्पीड़न के मामलों में पीड़िता के सम्मान और शारीरिक स्वायत्तता पर गहरा असर पड़ता है, वैसे ही झूठे आरोपों से निर्दोष लोगों की पूरी जिंदगी प्रभावित हो जाती है। केवल आरोपित का बरी होना या सहानुभूति जताना पर्याप्त नहीं है, क्योंकि नुकसान इससे कहीं अधिक गहरा होता है।

    हाई कोर्ट ने कहा कि जब गंभीर आरोप लगाए जाते हैं और फिर बिना किसी ठोस कारण के वापस ले लिए जाते हैं, तो इससे वास्तविक पीड़ितों के मामलों पर भी अविश्वास बढ़ता है। समाज में यह संदेश जाता है कि ऐसे मामले झूठे भी हो सकते हैं, जिससे असली पीड़ितों की आवाज कमजोर हो जाती है। इसलिए झूठी शिकायतों को हल्के में नहीं लिया जा सकता और कानून के तहत सख्त जांच और कार्रवाई आवश्यक है।

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    यह टिप्पणियां हाई कोर्ट ने उस मामले में कीं, जिसमें एक महिला ने नौकरी दिलाने के बहाने बुलाकर तीन लोगों पर सामूहिक दुष्कर्म का आरोप लगाया था, लेकिन बाद में ट्रायल के दौरान अपने बयान वापस ले लिए। ट्रायल कोर्ट ने तीनों आरोपितों को बरी कर दिया था। दिल्ली पुलिस ने इस फैसले को चुनौती दी, लेकिन हाई कोर्ट ने 15 दिसंबर को अपील खारिज कर दी।

    हाई कोर्ट ने यह भी चिंता जताई कि कुछ मामलों में दिल्ली पीड़ित मुआवजा योजना 2018 के तहत मिलने वाला अंतरिम मुआवजा लेने के बाद महिलाएं आरोप वापस ले लेती हैं या गवाही से मुकर जाती हैं। अदालत ने कहा कि यह सार्वजनिक धन का दुरुपयोग है और इससे योजना की विश्वसनीयता कमजोर होती है।

    इसको रोकने के लिए कोर्ट ने निर्देश दिया कि जिन मामलों में अंतरिम मुआवजा दिया गया हो और बाद में मामला झूठा साबित हो जाए, समझौते से खत्म हो जाए या पीड़िता प्रतिकूल हो जाए, तो ट्रायल कोर्ट उस केस का रिकार्ड दिल्ली राज्य विधिक सेवाएं प्राधिकरण (डीएसएलएसए) को भेजे ताकि मुआवजा वसूलने की कार्रवाई पर विचार हो सके। साथ ही, ऐसे मामलों को समाप्त करने के लिए दायर याचिकाओं में यह स्पष्ट जानकारी देना जरूरी होगा कि क्या पीड़िता को मुआवजा मिला था और उसकी स्थिति क्या है।

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