क्या दिल्ली में क्लाउड सीडिंग संभव है? संसद में उठा था ये सवाल, पर्यावरण राज्य मंत्री का जवाब कर देगा हैरान
संसद में क्लाउड सीडिंग की व्यवहार्यता पर सवाल उठ चुका है। केंद्रीय पर्यावरण राज्यमंत्री ने विशेषज्ञों की राय के आधार पर बताया कि दिल्ली में क्लाउड सीडिंग अव्यावहारिक है। सर्दियों में पश्चिमी विक्षोभ से बनने वाले बादल प्राकृतिक वर्षा कर देते हैं, और अधिक ऊंचाई वाले बादलों में सीडिंग संभव नहीं है। शुष्क हवा वर्षा को वाष्पित कर सकती है। दिल्ली में प्रदूषण के कई कारण हैं।

सांसद विक्रम जीत सिंह साहनी ने संसद में पूछा था सवाल।
संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। प्रदूषण से जंग में दिल्ली में कृत्रिम वर्षा के लिए क्लाउड सीडिंग की व्यावहारिकता पर संसद में भी सवाल उठ चुका है। सवाल के जवाब में विशेषज्ञ एजेंसियों के हवाले से यह भी कहा गया था कि यदि आसमान में उपयुक्त बादल मौजूद हों भी, तो उनके नीचे की शुष्क वायुमंडलीय परत सतह पर पहुंचने से पहले किसी भी तरह विकसित वर्षा को वाष्पित कर सकती है।
पिछले शीतकालीन सत्र के दौरान क्लाउड सीडिंग की व्यावहारिकता को लेकर सांसद विक्रम जीत सिंह साहनी ने सवाल पूछा था। सवाल का जवाब केंद्रीय पर्यावरण राज्यमंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने दिया। सिंह ने इस बारे में अपना लिखित जवाब मौसम विभाग, वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से विशेषज्ञ राय लेकर दिया था।
उनके लिखित जवाब के अनुसार, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सर्दियों के बादल मुख्य रूप से पश्चिमी विक्षोभ के कारण बनते हैं। यह कुछ ही समय के लिए होते हैं और पश्चिम से पूर्व की ओर यात्रा करते हैं।
जब पश्चिमी विक्षोभ के कारण लो लाइन (नीचे के स्तर पर) बादल बनते हैं, तो वे स्व: ही आमतौर पर उत्तर-पश्चिम भारत में प्राकृतिक वर्षा का कारण बन जाते हैं। इससे क्लाउड सीडिंग की जरूरत ही नहीं रह जाती। इससे इतर जो बादल पांच से छह किमी से अधिक ऊंचाई पर होते हैं, विमान की सीमाओं के कारण उनमें कृत्रिम तरीके से उनमें सीडिंग ही संभव नहीं हो पाती।
यह भी पढ़ें- स्मॉग की चादर में लिपटा दिल्ली-NCR, गाजियाबाद के वसुंधरा में सबसे खराब AQI; क्या है राजधानी का हाल?
राज्यमंत्री के जवाब में यह भी कहा गया था कि प्रभावी क्लाउड सीडिंग के लिए विशिष्ट स्थितियों की आवश्यकता होती है, जो आम तौर पर दिल्ली के ठंडे और शुष्क महीनों में अनुपस्थित होती हैं।
यदि उपयुक्त बादल मौजूद भी हों, तो उनके नीचे की शुष्क वायुमंडलीय परत सतह पर पहुंचने से पहले ही किसी भी तरह विकसित वर्षा को वाष्पित कर सकती है। यही नहीं, क्लाउड सीडिंग रसायनों की अनिश्चितताओं, प्रभावशीलता और संभावित प्रतिकूल प्रभावों के बारे में चिंताएं अभी बरकरार हैं।
यह भी पढ़ें- दिल्ली में सवा करोड़ की 'बारिश चोरी': बादलों के इंतजार में आसमान ताकते रहे लोग, अब थाने में शिकायत दर्ज
केंद्रीय पर्यावरण राज्यमंत्री ने इस दौरान यह भी कहा था कि दिल्ली और एनसीआर में वायु प्रदूषण कई कारकों का सामूहिक परिणाम है।वाहन प्रदूषण, औद्योगिक प्रदूषण, निर्माण और विध्वंस गतिविधियों से धूल, सड़क और खुले क्षेत्रों की धूल, बायोमास जलाना, नगर निगम के ठोस कचरे को जलाना, लैंडफिल में आग और बिखरे स्रोतों से वायु प्रदूषण इसमें प्रमुख है। मानसून के बाद सर्द महीनों में, कम तापमान, स्थिर हवाओं, पराली और पटाखों आदि जलने से यह और भी गंभीर हो जाता है।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।