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    कौन होते हैं FII, FPI और DII? कैसे करते हैं ये शेयर बाजार को प्रभावित? इनके रुख से बदल जाती है मार्केट की चाल

    Updated: Thu, 06 Nov 2025 10:50 AM (IST)

    शेयर बाजार (Stock Market) में निवेश करते समय FII, FPI और DII जैसे शब्दों का अर्थ जानना महत्वपूर्ण है। FII विदेशी संस्थागत निवेशक होते हैं, जबकि DII घरेलू संस्थागत निवेशक होते हैं। FPI एक व्यापक श्रेणी है जिसमें FII और अन्य विदेशी निवेशक शामिल होते हैं। ये तीनों निवेशक पूंजी प्रवाह के माध्यम से शेयर बाजार को प्रभावित करते हैं, जिससे बाजार की तरलता और अस्थिरता प्रभावित होती है।

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    FII, DII और FPI में क्या होता है अंतर

    नई दिल्ली। अगर आप शेयर बाजार (Stock Market) में निवेश करते हैं, तो आपने अकसर FII, FPI और DII जैसे शब्दों को जरूर सुना होगा। पर इनका मतलब और प्रभाव आप शायद न जानते हों। यहां हम आपको इन तीनों शब्दों के बारे में बताएंगे। साथ ही जानेंगे कि इनका शेयर बाजार पर कैसे और कितना असर पड़ता है।

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    अलग-अलग कैटेगरी के होते हैं निवेशक

    FII, DII और FPI तीनों निवेशकों की अलग-अलग कैटेगरी हैं। इनमें FII का मतलब फॉरेन इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स है, जबकि DII का मतलब डोमेस्टिक इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स है। FPI होते हैं फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टर्स। FPI बड़ी कैटेगरी है जिसमें FII और अलग-अलग विदेशी निवेशक दोनों शामिल होते हैं।

    FII कैसे होते हैं अलग

    FII बड़े, नॉन-रेजिडेंट इंस्टिट्यूशन (विदेशी एंटिटी, कंपनियां या फंड) होते हैं जो किसी देश की एसेट्स में इन्वेस्ट करते हैं। वहीं DII उसी देश में स्थित संस्थान होते हैं, जैसे कि लोकल म्यूचुअल फंड और इंश्योरेंस कंपनियाँ।

    ये है बड़ा फर्क

    DII घरेलू निवेशक होते हैं, जबकि FPI और FII विदेशी निवेशक। FII में संस्थागत निवेशक होते हैं, जो कि हेज फंड, पेंशन फंड आदि। वहीं FPI में संस्थागत और व्यक्तिगत दोनों कैटेगरी के निवेशक होते हैं। DII में संस्थागत (जैसे, म्यूचुअल फंड, बीमा कंपनियाँ, पेंशन फंड) निवेशक होते हैं।

    कैसे करते हैं शेयर बाजार को प्रभावित

    FII, FPI और DII तीनों ही बड़े पैमाने पर कैपिटल मूवमेंट के जरिए स्टॉक मार्केट पर काफी असर डालते हैं, जिससे मार्केट की लिक्विडिटी, वोलैटिलिटी और ओवरऑल सेंटिमेंट प्रभावित होता है। FII आमतौर पर वोलैटिलिटी लाते हैं, जबकि DII एक स्टेबिलाइजिंग फोर्स के तौर पर काम करते हैं।
    FII अक्सर IT, बैंकिंग और इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे खास हाई-ग्रोथ सेक्टर पर फोकस करते हैं, जिससे सेक्टर-स्पेसिफिक तेजी या गिरावट आती है। वहीं DII का लगातार, लॉन्ग-टर्म इन्वेस्टमेंट अप्रोच (अक्सर रिटेल इन्वेस्टर्स के सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान, या SIPs के जरिए) FII के उतार-चढ़ाव वाले मूवमेंट को बैलेंस करता है।
    लगातार DII की भागीदारी से लोकल इन्वेस्टर्स का कॉन्फिडेंस बना रहता है, जिससे स्टॉक मार्केट में ज्यादा घरेलू भागीदारी को बढ़ावा मिलता है।

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    "शेयर से जुड़े अपने सवाल आप हमें business@jagrannewmedia.com पर भेज सकते हैं।"

    (डिस्क्लेमर: यहां शेयर बाजार की जानकारी दी गयी है, निवेश की राय नहीं। जागरण बिजनेस निवेश की सलाह नहीं दे रहा है। स्टॉक मार्केट में निवेश बाजार जोखिमों के अधीन है, इसलिए निवेश करने से पहले किसी सर्टिफाइड इन्वेस्टमेंट एडवाइजर से परामर्श जरूर करें।)