हरित विकास के लिए हर साल 2-2.8 लाख करोड़ डॉलर निवेश की जरूरत, ग्रीन जीडीपी बनाने के दिशा में काम कर रहा है नीति आयोग
आज नीति आयोग द्वारा भारत और गरीब देशों में हरित और सतत विकास पर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक विकासशील देशों में हरित और सतत विकास के लिए 2030 तक 2 से 2.8 ट्रिलियन डॉलर के बीच वार्षिक खर्च की जरूरत होगी तभी औद्योगिक उत्पादन से लेकर परिवहन तक विभिन्न क्षेत्रों में कार्बन उत्सर्जन कम होगा। पढ़िए क्या है पूरी खबर।

राजीव कुमार, नई दिल्ली। विकासशील देशों के हरित व टिकाऊ विकास के लिए वर्ष 2030 तक हर साल 2-2.8 लाख करोड़ डॉलर खर्च करने की जरूरत होगी तब जाकर विभिन्न औद्योगिक उत्पादन से लेकर ट्रांसपोर्टेशन जैसे क्षेत्र में कार्बन उत्सर्जन में खासी कटौती की जा सकेगी।
नीति आयोग की तरफ से मंगलवार को जारी भारत व गरीब देशों के लिए हरित व टिकाऊ विकास संबंधी रिपोर्ट में इन बातों का जिक्र किया गया है।
टिकाऊ विकास के लिए नीति आयोग कर रहा काम
इस मौके पर नीति आयोग के उपाध्यक्ष सुमन बेरी ने कहा कि भारत के साथ गरीब देशों के हरित व टिकाऊ विकास के एजेंडा निर्माण पर नीति आयोग काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि भारत का विकास दुनिया के अन्य देशों के विकास से जुड़ा है और अब विकास को लेकर दुनिया भारत के मॉडल को अपना रही हैं। बेरी ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हरित जीडीपी बनाने के लिए कहा है। नीति आयोग इस दिशा में काम कर रहा है।

इस कारण होता है कार्बन उत्सर्जन
जीडीपी में आर्थिक गतिविधियों से जुड़े उत्पादन को शामिल किया जाता है। उद्योग जगत उत्पादन के दौरान प्रदूषण व कार्बन उत्सर्जन करते हैं जिससे पर्यावरण को नुकसान होता है। वे इस नुकसान के बदले कोई भुगतान नहीं करते हैं। पर्यावरण को होने वाले नुकसान की भरपाई से जुड़े खर्च को जीडीपी में से घटाने के बाद हरित जीडीपी तैयार होता है।
रिपोर्ट के मुताबिक विकासशील देशों में मुख्य रूप से बिजली, ट्रांसपोर्ट, उद्योग, भवन प्रणाली को हरित बनाने के साथ ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन पर वर्ष 2030 तक हर साल 2.8 लाख करोड़ डॉलर खर्च करना होगा। विकासशील देशों के इस खर्च में चीन को शामिल नहीं किया गया है।

वित्तीय व्यवस्था सबसे बड़ी चुनौती
गरीब देशों में हरित विकास के लिए वित्तीय व्यवस्था सबसे बड़ी चुनौती है। गरीब देश मानते हैं कि उनके लिए वित्तीय व्यवस्था करना विकसित देशों का फर्ज है क्योंकि इन देशों ने अपने विकास के दौरान बड़ी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन किया है और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया है।


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