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    अपने ही जाल में फंसा चीन, रेयर अर्थ एलिमेंट्स में खोने जा रहा बादशाहत; ड्रैगन के खिलाफ एकजुट हुए ये देश

    Updated: Tue, 08 Jul 2025 01:35 PM (IST)

    दुर्लभ खनिज पर चीन का एकतरफा राज है। उसके पास दुनिया का सबसे ज्यादा रेयर अर्थ एलिमेंट्स का भंडार (China rare earth dominance news) है। साथ ही साथ वह रेयर अर्थ एलिमेंट्स का सबसे बड़ा उत्पादक भी है। लेकिन अब धीरे-धीरे करके भारत अमेरिका ऑस्ट्रेलिया और ब्राजील जैसे देश उसे इस क्षेत्र में कड़ी टक्कर देने की तैयारी कर रहे हैं।

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    अपनी ही करतूत से रेयर अर्थ मेटल में बादशाहत खोने जा रहा चीन

     नई दिल्ली। भारत का पड़ोसी और वैश्विक स्तर पर दुर्लभ खनिजों का राजा चीन अब अपनी बादशाहत खोने जा रहा है। रेयर अर्थ एलिमेंट्स पर एकतरफा राज करने वाला ये देश खूब मनमानी कर रहा है। जब चाहे तब वह रेयर अर्थ एलिमेंट्स के एक्सपोर्ट पर बैन लगा दे रहा है। इसका असर दूसरे देशों की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है।

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    अप्रैल में ड्रैगन ने Rare Earth Elements के निर्यात पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा दिया था। इसका असर ऑटो इंडस्ट्री पर साफ दिखा। चीन के इस रवैये ने दूसरे देशों को रेयर अर्थ एलिमेंट्स के उत्पादन को बढ़ाने पर मजबूर कर दिया। यह कहीं न कहीं भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और ब्राजील जैसे देशों के लिए ही अच्छा हुआ कि चीन की वजह से ये देश दुर्लभ खनिज में भारी भरकम निवेश कर रहे हैं। चीन के पास दुनिया का 49 फीसदी रेयर अर्थ एलिमेंट्स का भंडार है। इसके उलट दुर्लभ खनिजों के प्रोडक्शन मामले में वैश्विक स्तर पर उसकी 69 फीसदी हिस्सेदारी है।

    REE के निर्यात पर प्रतिबंध लगा चीन निकालता है दुश्मनी

    प्रकृति द्वारा दिए गए खनिज भंडार का इस्तेमाल चीन अपनी दुश्मनी निकालने में भी करता है। 2010 में जापान के साथ उसके राजनीतिक विवाद हुए तो उसने इसके निर्यात पर अस्थायी बैन लगा दिया था। ड्रैगन ने 2020 में निर्यात नियंत्रण कानून में भी बदलाव किए। इसके पीछे का कारण सुरक्षा को प्रभावित करने वाले तत्वों पर अंकुश लगाना था।

    यह भी पढ़ें- Explainer: भारत के पास रेयर अर्थ एलिमेंट्स का तीसरा बड़ा भंडार, फिर क्यों हम चीन पर निर्भर? समझिए असली बात

    फिर आगे चलकर इसी कानून का इस्तेमाल करके उसने दिसंबर 2024 में अमेरिका को गैलियम, जर्मेनियम और एंटीमनी के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया।

    इसके अलावा, 4 अप्रैल, 2025 को, चीन ने मध्यम और भारी-दुर्लभ-पृथ्वी तत्वों (REE) से संबंधित सात वस्तुओं के एक्सपोर्ट पर प्रतिबंध लगाया। लेकिन अब चीन का ये तिलिस्म टूटने वाले है। क्योंकि अमेरिका, भारत, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया रेयर अर्थ एलिमेंट्स पर चीन की बादशाहत को खत्म करने की तैयारी कर चुके हैं।

    कितने महत्वपूर्ण हैं दुर्लभ खनिज?

    REE 17 रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण खनिजों का एक समूह हैं। लो रेयर अर्थ एलिमेंट्स (LREE), हैवी रेयर अर्थ एलिमेंट्स (HREE) में विभाजित किया है। हल्के दुर्लभ खनिजों में जैसे नियोडिमियम (Nd) और प्रेजोडियम (Pr) जिनका EV मोटर्स और एयर टर्बाइनों में इस्तेमाल होता है।

    भारी दुर्लभ पृथ्वी तत्व (HREE) जैसे डिस्प्रोसियम (Dy) और टेरबियम (Tb) सैन्य-ग्रेड मैग्नेट और हाई परफॉर्मेंस इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए हैं। इनके बिना आधी से इलेक्ट्रॉनिक उत्पादन चल भी नहीं सकते।

    चीन इस देश में भी करता है REE का खनन

    चीन अपने ही देश नहीं बल्कि दूसरे देशों में रेयर अर्थ एलिमेंट्स की पॉसिबिलिटी को तलाश रहा है। वह म्यांमार के साथ मिलकर दुर्लभ खनिजों का उत्पादन कर रहा है। वर्तमान में, म्यांमार के पास दुनिया के REE खनन का 8% हिस्सा है।

    अमेरिका, भारत, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया तोड़ेंगे ड्रैगन का तिलिस्म?

    रेयर अर्थ एलिमेंट्स में एकक्षत्र राज करने वाले चीन को अमेरिका, भारत, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप से कड़ी टक्कर मिलने वाली है। चीन के बाद पूरी दुनिया में सबसे अधिक भंडार ब्राजील 23% और फिर भारत के पास 8% का है।

    यह भी पढ़ें- चीन का टूटा घमंड! UP की धरती से ये कंपनी निकालेगी रेयर अर्थ एलिमेंट्स; सरकार से मिला लेटर ऑफ इंटेंट

    वहीं, अमेरिका के पास रेयर अर्थ एलिमेंट्स का भंडार पूरी दुनिया का 2.1 फीसदी है। लेकिन इसके बावजूद अमेरिका रेयर अर्थ एलिमेंट्स का दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। वह पूरी दुनिया का 12 फीसदी REE का उत्पादन करता है।

    चीन पर निर्भरता कम कर रहा है अमेरिका

    अमेरिका रेयर अर्थ एलिमेंट्स के लिए चीन पर निर्भर है। वह अपने इस्तेमाल का लगभग 70 फीसदी चीन से निर्यात करता है। लेकिन अब वह अपनी उत्पादन क्षमता को बढ़ा रहा है। वर्तमान में, कैलिफोर्निया में माउंटेन पास खदान एकमात्र सक्रिय अमेरिकी दुर्लभ खदान है।

    इसके अलावा, 2020 से, अमेरिकी रक्षा विभाग ने घरेलू दुर्लभ पृथ्वी तत्व आपूर्ति श्रृंखलाओं को स्थापित करने के लिए 439 मिलियन अमरीकी डालर से अधिक का निवेश किया है।

    कनाडा भी REE के उत्पादन को बढ़ा रहा

    कनाडा भी रेयर अर्थ एलिमेंट्स के प्रोडक्शन में भारी भरकम निवेश कर रहा है। उसके पास दुर्लभ खनिज का दुनिया का 0.9 फीसदी भंडार है।

    कनाडा, अमेरिका के साथ मिलकर भी रेयर अर्थ एलिमेंट्स के प्रोडक्शन पर काम कर रहा है। इसके अलावा कनाडा ने यूरोपीय संघ, जर्मनी और फ्रांस के साथ भी समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जो इसे अपनी महत्वपूर्ण कच्चे माल रणनीति के तहत एक सुरक्षित वैकल्पिक आपूर्तिकर्ता के रूप में देखते हैं।

    अमेरिका में REE प्लांट खोल रहा है ऑस्ट्रेलिया

    ऑस्ट्रेलिया के पास दुनिया का 6 फीसदी रेयर अर्थ एलिमेंट्स का भंडार है। इसके साथ वह लगभग दुनिया का 4 फीसदी दुर्लभ खनिजों का उत्पादन भी करता है। चीन के बाहर लियांस में दूसरा सबसे बड़ा दुर्लभ खनिज उत्पादन प्लांट है। ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका के टेक्सास में नई माइन खोल रहा है।  ऑस्ट्रेलिया रेयर अर्थ एलिमेंट्स पर भारी भरकम निवेश कर रहा है।

    रेयर अर्थ एलिमेंट्स का मजबूत खिलाड़ी है ब्राजील

    अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया कनाडा और भारत के अलावा ब्राजील रेयर अर्थ एलिमेंट्स का एक मजबूत खिलाड़ी है। उसके पास दुनिया का 23 फीसदी दुर्लभ खनिजों का भंडार है। हालांकि, उसकी पहली REE माइन Serra Verde 2024 में शुरू हुई थी। इस माइन में अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम ने भारी भरकम निवेश कर रखा है।

    REE में भारत भी कर रहा भारी भरकम निवेश

    भारत के पास दुनिया का 8 फीसदी रेयर अर्थ एलिमेंट्स का भंडार है। लेकिन हम वैश्विक स्तर पर दुर्लभ खनिजों का एक फीसदी उत्पादन करते हैं। 2025 में भारत सरकार ने नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन शुरू किया जिसके तहत भारत दुर्लभ खनिज के क्षेत्र में खुद को आत्मनिर्भर बनाएगा।  भारत ने 130 खनिज भंडारों को मान्यता दी है।

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    भारत में सबसे अधिक दुर्लभ भंडार तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश और ओडिशा में है। चीन द्वारा REE निर्यात पर हाल ही में लगाए गए प्रतिबंधों ने भारतीय दुर्लभ पृथ्वी लिमिटेड (IREL)अपने देश में दुर्लभ पृथ्वी को बचाने और घरेलू प्रसंस्करण का विस्तार करने के लिए अपने निर्यात को कम किया है। माइनिंग करने वाली कंपनियों को भारत सरकार आर्थिक मदद भी मुहैया करा रही है।

    2030 तक कम हो जाएगा चीन का दबदबा

    वैश्विक स्तर पर जिस तरह से दुर्लभ खनिज के उत्पादन को लेकर अमेरिका, भारत, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, फ्रांस और कनाडा जैसे भारी भरकम निवेश कर रहे है, उसका परिणाम यह होगा कि आने वाले सालों में चीन का दबदबा कम हो जाएगा।

    इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी की एक रिपोर्ट के अनुसार 2030 तक दुर्लभ खनिजों की माइनिंग में चीन 69 फीसदी से 51 फीसदी पर आ जाएगा, जबकि रिफाइनिंग में 90 फीसदी से 76 फीसदी पर आ जाएगा।

     

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