Explainer: भारत के पास रेयर अर्थ एलिमेंट्स का तीसरा बड़ा भंडार, फिर क्यों हम चीन पर निर्भर? समझिए असली बात
India Rare Earth Reserves दुनिया भर में इस समय रेयर अर्थ मेटल्स की खूब चर्चा हो रही है। इन खनिजों का उत्पादन करना बहुत ही कठिन होता है। क्योंकि इनकी माइनिंग करना बहुत ही रिस्की होती है। माइनिंग के बाद रिफाइनिंग प्रोसेस में बहुत इनवेस्ट करना पड़ता है। चीन (China) दुर्लभ खनिज का सबसे बड़ा उत्पादक है।

नई दिल्ली। रेयर अर्थ मेटल या फिर रेयर अर्थ एलिमेंट्स आज के समय में व्यापार जगत में चर्चा का विषय बने रहते हैं। इनका इस्तेमाल ऑटो सेक्टर में बड़ी मात्रा में होता है। गाड़ियों के कई पार्ट्स में रेयर अर्थ मेटल का यूज होता है। इस साल इसकी अब तक खूब चर्चा हुई है। इसके पीछे का कारण हैं डोनाल्ड ट्रंप।
जी हां। डोनाल्ड ट्रंप ने जब से टैरिफ वाला गेम शुरू किया है, तभी से रेयर अर्थ मेटल की खूब चर्चा हो रही है। इतनी चर्चा हुई है कि इस पर एकाधिकार रखने वाले चीन ने इसके निर्यात पर ही प्रतिबंध लगा दिए। चीन दुनिया में रेयर अर्थ मेटल का राजा है। उसके पास सबसे रेयर अर्थ एलिमेंट्स का भंडार है। दुनिया को चीन के सामने हाथ फैलाना पड़ता है। भारत को भी इसके लिए चीन पर डिपेंडेंट रहना पड़ता है।
हालांकि, भारत के पास भी रेयर अर्थ मेटल का भंडार है। हम चीन और ब्राजील के बाद रेयर अर्थ मेटल (Rare Earth Elements) के मामले में तीसरे नंबर पर हैं। लेकिन फिर भी हमें चीन पर निर्भर रहना पड़ता है। आज के इस लेख में विस्तार से जानेंगे आखिर वो इसके पीछे की वजह क्या है कि हमें रेयर अर्थ मेटल के लिए चीन पर निर्भर रहना होता है। और रेयर अर्थ एलिमेंट्स है क्या, इसका इस्तेमाल किस लिए किया जाता है, इनकी माइनिंग रिस्की क्यों होती है और भारत के पास रेयर अर्थ मेटल का कितना बड़ा भंडार है? आइए इन सभी सवालों के जवाब जानने की कोशिश करते हैं।
रेयर अर्थ मेटल्स क्या है? What are Rare Earth Metals?
पीरियॉडिक टेबल के मिडिल में 17 एलिमेंट्स का ग्रुप रेयर अर्थ मेटल है। इसमें सेरियम (Ce), डिस्प्रोसियम (Dy), अर्बियम (Er), युरोपियम (Eu), गैडोलीनियम (Gd), होल्मियम (Ho), लैंथेनम (La), ल्यूटेटियम (Lu), नियोडिमियम (Nd), प्रेसियोडिमियम (Pr), प्रोमेथियम (Pm), समैरियम (Sm), स्कैंडियम (Sc), टेरबियम (Tb), थ्यूलियम (Tm), येटरबियम (Yb), और येट्रियम (Y)। ये 17 एलिमेंट्स रेयर अर्थ एलिमेंट्स हैं।
रेयर अर्थ मेटल में हाई मैग्नेटिक फील्ड, लाइट एमिटिंग प्रॉपर्टी और कैटेलिटिक क्षमताएं होती हैं। ये एलिमेंट्स हाई मेल्टिंग प्वाइंट्स, बॉइलिंग प्वाइंट्स, हाई इलेक्ट्रिकल थर्मल कंडक्टिविटी के लिए पहचाने जाते हैं।
Rare Earth Metals को क्यों कहा जाता है दुर्लभ खनिज?
रेयर अर्थ एलिमेंट्स को इसलिए रेयर नहीं कहा जाता कि वो दुर्लभ हैं। ये धरती पर प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। इन्हें रेयर इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्हें उनके अयस्कों (Ores) से निकालना और रिफाइन करना बहुत कठिन है। इन्हें पृथ्वी के अंदर से बाहर निकालने के लिए भारी मात्रा में एनर्जी खत्म करनी पड़ती है। यही सब कारण हैं कि इन्हें रेयर अर्थ मेटल यानी दुर्लभ खनिज कहा जाता है।
दुर्लभ खनिजों की माइनिंग करना क्यों है रिस्की?
रेयर अर्थ मेटल की माइनिंग करना सिर्फ महंगा ही नहीं बल्कि इसके पर्यावरण परिणाम खतरनाक हो सकते हैं। यह दुर्लभ खनिज हाई रेडियोएक्टिव एलिमेंट्स जैसे यूरेनियम और थोरियम के साथ मिक्स पाए जाते हैं। ऐसे में इनकी माइनिंग करना बहुत ही खतरनाक होता है। इनकी माइनिंग करना जान जोखिम में डालने जैसे होता है।
दुनिया के किन 5 देशों के पास है सबसे ज्यादा रेयर अर्थ एलिमेंट्स
दुनिया में सबसे ज्यादा रेयर अर्थ मेटल चीन के पास है। चीन (China) के पास लगभग 44 मिलियन मीट्रिक टन दुर्लभ खनिज का भंडार है। वहीं, दूसरे नंबर पर ब्राजील है। ब्राजील के पास 21 मिलियन मीट्रिक टन दुर्लभ खनिज का भंडार है। फिर तीसरे नंबर पर भारत आता है। भारत के पास 6.9 बिलियन मीट्रिक टन दुर्लभ खनिज (India Rare Earth Reserves) का भंडार है। इसके बाद ऑस्ट्रेलिया के है। उसके पास 5.7 बिलियन मीट्रिक टन दुर्लभ खनिज का भंडार है। नंबर पांच पर अमेरिका है, जिसके पास 1.9 बिलियन मीट्रिक टन दुर्लभ खनिज का भंडार है।
वहीं, प्रोडक्शन के मामले में भारत पांचवे नंबर पर है। दुनिया में सबसे ज्यादा चीन रेयर अर्थ मेटल का प्रोडक्शन करता है। वह लगभग 270,000 मीट्रिक टन दुर्लभ खनिज उत्पादित करता है। ऑस्ट्रेलिया 113,000 मीट्रिक टन दुर्लभ खनिज का उत्पादन करता है। अमेरिका 45,000, बर्मा 31,000 तो इंडिया 2,900 मिट्रिक टन दुर्लभ खनिज का उत्पादन करता है।
दुर्लभ खनिजों के लिए भारत को क्यों चीन पर रहना पड़ता है निर्भर?
भारत के पास प्रचुर मात्रा में दुर्लभ खनिज का भंडार है। लेकिन इसके बावजूद भारत इन खनिजों के लिए चीन पर निर्भर रहता है। इसके कई कारण हैं। जैसे-
भारत में दुर्लभ खनिजों के लिए रिफाइनिंग की कमी: भारत में रेयर अर्थ मेटल के खनन के लिए पर्याप्त सुविधा नहीं है। खनन होता है लेकिन लेकिन रिफाइनिंग और प्रोसेसिंग की सुविधाएं बहुत ही सीमित हैं। हम कच्चा माल ज्यादातर चीन भेजते हैं और इसे रिफाइन करवाते हैं।
निजी कंपनियों की भागीदारी कम होना: भारत में रेयर अर्थ उद्योग में जोखिम और लागत ज्यादा होने के कारण इसमें प्राइवेट कंपनियां ज्यादा एक्टिव नहीं है।
पर्यावरण का खतरा: खनन और रिफाइनिंग से पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है। स्थानीय विरोध के कारण कई परियोजनाएं अभी तक रुकी हुई हैं।
टेक्नोलॉजी का अभाव: इसके साथ भारत में रेयर अर्थ मैग्नेट और बैटरी बनाने की पूरी सप्लाई चेन और एडवांस टेक्नोलॉजी का अभाव भी है।
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