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    चांदनी चौक का इतिहास: जहांआरा ने क्यों बनवाया था एशिया का सबसे बड़ा बाजार और क्या है इसका 370 साल पुराना रहस्य

    Updated: Wed, 03 Sep 2025 11:55 AM (IST)

    चांदनी चौक (Chandni Chowk History) दिल्ली-एनसीआर का एक प्रमुख बाजार एशिया के सबसे बड़े थोक बाजारों में से एक है। शाहजहां की बेटी जहांआरा बेगम ने 17वीं शताब्दी में इसे डिजाइन किया था। यह बाजार अलग-अलग सेगमेंट में बंटा है जैसे दरीबा कलां चांदी के गहनों के लिए और खारी बावली मसालों के लिए प्रसिद्ध है। कभी यहाँ अर्ध-चन्द्राकार दुकानें थीं जो अब भीड़-भाड़ वाली गलियों में बदल गई हैं।

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    चांदनी चौक मार्केट का इतिहास जानते हैं आप?

    नई दिल्ली। अगर आप दिल्ली-एनसीआर में रहते हैं तो कभी न कभी चांदनी चौक (Chandni Chowk History) जरूर गए होंगे। चांदनी चौक की गिनती एशिया के सबसे बड़ी होलसेल बाजारों (Largest Wholesale Market in Asia) में होती है। वहीं चांदनी चौक में मौजूद खारी बावली एक ऐतिहासिक थोक बाजार है, जिसे एशिया के सबसे बड़े मसाला बाजार के तौर पर पहचान हासिल है।

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    अनुमान के अनुसार चांदनी चौक की मार्केट में रोज 6-7 लाख आते हैं, जबकि इस मार्केट का सालाना कारोबार लाखों करोड़ रुपये है। पर क्या आप जानते हैं कि इतने बड़े बाजार के पीछे किसका दिमाग था? आइए बताते हैं।

    अलग-अलग सेगमेंट के लिए बाजार

    चांदनी चौक मार्केट सेगमेंट्स के लिहाज से अलग-अलग हिस्सों में बंटा है। जैसे कि चाँदी के गहनों और इत्र के लिए दरीबा कलाँ, किताबों और स्टेशनरी के लिए नई सड़क, मसालों के लिए खारी बावली, लाइटों और इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए भागीरथ पैलेस, शादी के कार्ड और पीतल के सामान के लिए चावड़ी बाजार, शादी की सजावट के लिए किनारी बाजार और कपड़ों और फैब्रिक के लिए कटरा नील जैसे स्पेसिफिक बाजार हैं।

    यहाँ कैमरों के लिए कूचा चौधरी मार्केट, जूतों के लिए बल्लीमारान मार्केट और कई दूसरी वस्तुओं के लिए और भी बाजार हैं।

    कितना पुराना है इतिहास

    चांदनी चौक का इतिहास 17वीं शताब्दी में शुरू होता है। रिपोर्ट्स के अनुसार इस बाजार की शुरुआत मुगल काल में सन 1650 के दशक में हुई थी। चांदनी चौक में शुरुआत में 4 बाजार थे। इनमें उर्दू बाजार, जौहरी बाजार (जौहरी बाजार) और अशर्फी बाजार (सोने के सिक्कों का बाजार) शामिल थे।

    किसने तैयार किया डिजाइन

    इतिहास के अनुसार मुगल बादशाह शाहजहां की बेटी जहांआरा बेगम ने इसे मुगल हुकूमत की नई राजधानी शाहजहांनाबाद (अब पुरानी दिल्ली) में एक कमर्शियल हब के रूप में डिजाइन किया था। इसे एक चौकोर बाजार के रूप में डिजाइन किया गया था जिसमें एक केंद्रीय तालाब था।

    क्यों नाम पड़ा चांदनी चौक

    बाजार के बीच में मौजूद तालाब चांदनी रात में चाँद को प्रतिबिंब करता था, जिसके चलते इसका नाम चांदनी चौक पड़ा। जहाँआरा ने इस बाजार को अपनी खरीदारी की इच्छा को पूरा करने के लिए बनवाया था और यह जल्द ही वस्त्र, आभूषण और मसालों के कारोबार का एक प्रमुख केंद्र बन गया था।

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    यूरोप तक हुआ फेमस

    समय के साथ चांदनी चौक एशिया और यूरोप के व्यापारियों को आकर्षित करने लगा। शुरुआत में यहां की मूल दुकानें केंद्रीय सड़क के किनारे अर्ध-चन्द्राकार आकार में डिजाइन की गई थीं। आज भी चांदनी चौक उत्तर भारत के सबसे बिजी और सबसे बड़े कारोबारी केंद्रों में से एक है, जो अपनी मूल भव्यता के बजाय भीड़-भाड़ और संकरी गलियों के लिए जाना जाता है।

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