वीआईपी सीट: भ्रष्टाचार की कड़वाहट और जातीय गोलबंदी में उलझे बेतिया के मतदाता, कौन मारेगा बाजी?
बेतिया, एक महत्वपूर्ण सीट, भ्रष्टाचार और जातीय समीकरणों में उलझी है। मतदाता भ्रष्टाचार से परेशान हैं और जातीय गोलबंदी के कारण सही विकल्प चुनने में कठिनाई महसूस कर रहे हैं। इससे चुनाव परिणाम अनिश्चित हो गया है। देखना होगा कि मतदाता विकास और सुशासन के लिए किसे चुनते हैं।

कांग्रेस प्रत्याशी वसी अहमद और बीजेपी प्रत्याशी रेणु देवी। फाइल फोटो
सुनील आनंद, बेतिया (पश्चिम चंपारण)। गीतों के राजकुमार गोपाल सिंह नेपाली की जन्मस्थली बेतिया। साहित्य और संस्कारों की मिट्टी। छल-प्रपंच से दूर, अपने कार्यों में निष्ठा और परिश्रम से जुड़े लोग। सादगी, समर्पण और सांस्कृतिक चेतना की धरती बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर विकास के साथ भ्रष्टाचार की कड़वाहट और जातीय गोलबंदी के उलझाव में है।
नगर निगम बेतिया और मझौलिया प्रखंड के 18 पंचायतों को मिलकर बेतिया विधानसभा क्षेत्र का अस्तित्व है। दूसरे चरण में यहां 11 नवंबर को मतदान है। यहां से कुल छह उम्मीदवार हैं। इसमें बिहार सरकार की पूर्व उपमुख्यमंत्री रेणु देवी यहां से एनडीए समर्थित भाजपा उम्मीदवार हैं। वह छठी बार जीत के लिए सुशासन के साथ विकास के मुद्दे पर मैदान में हैं।
महागठबंधन की ओर से कांग्रेस के युवा नेता वसी अहमद उन्हें टक्कर दे रहे हैं। वहीं, नगर निगम की महापौर गरिमा देवी सिकारिया के पति बड़े व्यवसायी रोहित सिकारिया और जनसुराज के अनिल सिंह अपने - अपने एजेंडे के साथ मतदाताओं को आकर्षित करने के प्रयास में है। चुनाव के चंद दिन अब रह गए हैं। फिर भी आम मतदाता खुलकर बोलने के मूड में नहीं है।
यह खामोशी दलों के चुनावी शोर के बीच नेताओं को बेचैन कर रही है। दलीय नेता एवं प्रत्याशी विकास एवं जनसेवा के बोल भले बोल रहे हैं, लेकिन उनकी दृष्टि जातीय समीकरणों पर है। ऐसे में राजनीतिक दल धार्मिक और जातीय समीकरण की चमक बिखरने में लगे हुए हैं। चुनावी आंच पर महंगाई, बेरोजगारी, अशिक्षा समेत क्षेत्रीय मुद्दों को भी तापने का प्रयास चल रहा है।
मुस्लिम, वैश्य, यादव की बहुलता वाले इस विधानसभा सीट पर पहली बार 1990 में भाजपा की जीत हुई थी। 1952 में अस्तित्व में आए इस विधानसभा सीट से 1985 तक सिर्फ एकबार निर्दलीय को जीत मिली थी। बाकी समय कांग्रेस का कब्जा रहा। 30 वर्ष बाद 2015 में यहां कांग्रेस की पुनर्वापसी मदन मोहन तिवारी ने की थी, लेकिन महज पांच वर्ष में वे फिर चुनाव हार गए और भाजपा की रेणु देवी 2020 में18,079 मतों के अंतर से जीत गई थीं।
एनडीए की उम्मीदवार रेणू देवी नोनिया जाति से हैं, जबकि महागठबंधन के प्रत्याशी वसी अहमद मुस्लिम समुदाय से हैं। जनसुराज के अनिल सिंह राजपूत हैं। वहीं निर्दलीय रोहित सिकारिया मारवाड़ी हैं। महागठबंधन के प्रत्याशी को छोड़कर किसी अन्य का खुद का कोई खास मजबूत जातीय आधार नहीं है।
क्षेत्रीय मुद्दों का प्रभाव
डंबल इंजन की सरकार में सुशासन के साथ विकास के बीच क्षेत्रीय मुद्दे भी इस बार चुनाव में प्रभावी हैं। बेतिया शहर में जलजमाव की समस्या, शहर की सड़कों की जर्जर हाल और जाम से हांफता शहर मतदाताओं को कचोट रहा है। राजनीतिक मतभेद के कारण नगर निगम और क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों की टकराव में शहर की सड़कें जर्जर हैं, जबकि गांवों की कनेक्टिविटी शहर से बेहतर है।
ऐतिहासिक चंद्रावत नदी के अतिक्रमण, मझौलिया के 62 पुल की फटेहाली के कारण हजारों एकड़ भूमि में जलजमाव से किसानों की फटेहाली का मुद्दा भी प्रभावी है। सरकारी कार्यालयों में भ्रष्टाचार से परेशान लोग खुलकर बोल रहे हैं, कि विकास तो हुआ है, लेकिन कार्यालयों में बगैर रिश्वत के फाइलें नहीं बढ़ रही है। भ्रष्टाचार के इस मुद्दे पर महागठबंधन के प्रत्याशी एनडीए को घेर रहे हैं।
युवाओं में पलायन की पीड़ा
युवाओं में पलायन की पीड़ा है तो छात्रों में यूनिवर्सिटी में शोषण का आक्रोश है। बेतिया के एमजेके कॉलेज में बिहार यूनिवर्सिटी के एक्सटेंशन काउंटर के उद्घाटन के करीब दो वर्ष पूरे होने जा रहे हैं, लेकिन अभी तक वह काउंटर क्रियाशिल नहीं हुआ है, जबकि विधायक रेणु देवी यूनिवर्सिटी में सीनेट की सदस्य हैं।
स्नातक की छात्रा शांभवी कुमारी का कहना है कि जिले में छात्राओं के लिए कोई सरकारी बालिका महाविद्यालय नहीं है। मझौलिया के किसान राजेंद्र प्रसाद का कहना है कि 62 पुल से जल निकासी नहीं होने के कारण यहां के किसान प्रति वर्ष बरसात में तबाह होते हैं। वहीं, बेतिया शहर में जलजमाव और जर्जर सड़क को लेकर लोगों में नाराजगी है।
किराना व्यापारी संजय प्रसाद का कहना है कि अक्टूबर में हुई वर्षा के कारण एक पखवारा तक शहर में जलजमाव की स्थिति रही। कई व्यापारियों के गोदाम और दुकान में पानी घुस गया था, जिससे करोड़ों का नुकसान हुआ। हमें किसी पार्टी और जाति - धर्म से मतलब नहीं है। इस समस्या का समाधान चाहिए।
हालांकि नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार में बनी सरकार के बाद से शांति व्यवस्था को लेकर वे काफी प्रभावित हैं। उनका कहना है कि जब से नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने हैं, तब से लेवी के लिए किसी अपराधी का फोन और धमकी नहीं आता है।
- कुल मतदाता: 290424
- पुरुष मतदाता: 153193
- महिला मतदाता: 137226
- अन्य: 05
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