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    एेसा दुर्लभ पेड़ जिससे तैयार होती हैं कई जीवनरक्षक दवाएं, जानिए

    By Kajal KumariEdited By:
    Updated: Wed, 08 Mar 2017 10:32 PM (IST)

    चिकित्सा जगत के लिए वरदान कहे जाने वाले कोचिला के दुर्लभ वृक्ष समस्तीपुर में पाए गए हैं। इन्हें संरक्षित करने की जरूरत है क्योंकि इनसे कई जीवनरक्षक दवाएं तैयार की जाती हैं।

    एेसा दुर्लभ पेड़ जिससे तैयार होती हैं कई जीवनरक्षक दवाएं, जानिए

    समस्तीपुर [जेएनएन]। होमियोपैथ की जीवन रक्षक दवा 'नक्स वोमिका' से सभी परिचित हैं। यह जिस फल के बीज से बनता है, उसे 'कोचिला' कहा जाता है। ऐसे मूल्यवान औषधीय वृक्ष संरक्षण के अभाव में विलुप्त हो रहे हैं। हजारों वृक्षवाले इस वन में कोचिला के गिने-चुने पेड़ ही रह गए हैं। 

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    इस औषधीय वृक्ष के फल व बीज से दर्जनों दवाइयां तैयार होती हैं। जिसमें सेडेटिव ड्रग्स, नींद व पागलपन की दवाइयां, एलर्जी की दवाइयां, मांसपेशियों के दर्द निवारक, हृदय रोग, लकवा, तंत्रिका तंत्र से जुड़ी बीमारियों की दवाएं तैयार की जाती हैं।

    कोचिला का एक वन समस्तीपुर जिला अंतर्गत शाहपुरपटोरी के गोरगामा गांव में है। ऐसे मूल्यवान औषधीय वृक्ष संरक्षण के अभाव में विलुप्त हो रहे हैं। हजारों वृक्षवाले इस वन में कोचिला के गिने-चुने पेड़ ही रह गए हैं। इसके संरक्षण के लिए न तो समाज के लोगों ने पहल की और न ही प्रशासन ने। 

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    चिकित्सा जगत के लिए वरदान
     कोचिला यानी नक्स वोमिका का वैज्ञानिक नाम 'स्ट्राइकनोज टॉक्सिफेरा' है। इस औषधीय वृक्ष के फल व बीज से दर्जनों दवाइयां तैयार होती हैं। जिसमें सेडेटिव ड्रग्स, नींद व पागलपन की दवाइयां, एलर्जी की दवाइयां, मांसपेशियों के दर्द निवारक, हृदय रोग, लकवा, तंत्रिका तंत्र से जुड़ी बीमारियों की दवाएं तैयार की जाती हैं।
    इसके अतिरिक्त होमियोपैथ के रामबाण नक्स वोमिका को भी इसके फल के बीज से तैयार किया जाता है। आयुर्वेदिक औषधियां भी तैयार की जाती हैं। कोचिला का पेड़ भारत के गिने चुने क्षेत्रों में ही पाए जाते हैंं। यह हिमालय के घाटी वाले क्षेत्रों में भी कम मात्रा में पाए जाते हैं।
    डेढ़ दशक से है कोचिलवन
     शाहपुर पटोरी के गोरगामा में कोचिलवन है।  गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि वाया नदी के तट पर साधु-संत रहते थे। वे कहीं से इस फल और बीज को साथ लेकर आए थे। वे इसका प्रयोग दवा के रूप में करते थे। बाद में उन्होंने इसके पौधे लगाए। अब कुछ दर्जन वृक्ष ही शेष बचे हैं। अगर इसे संरक्षित नहीं किया गया तो आने वाले कुछ वर्षों में कोचिलवन का नामो-निशान मिट जाएगा।
    यह बहुवार्षिक वृक्ष है जिसकी ऊंचाई 10 से 15 फीट के आसपास होती हैं। कोचिलवन 12 बीघे के भूखंड में फैला है। इसके वृक्ष नवम्बर-दिसम्बर में नारंगी रंग के फलों से लद जाते हैं। यदि इस वृक्ष के फलों को सरंक्षित किया जाए और दवा कंपनी को बेचा जाए तो लाखों की आय हो सकती है। 
     कहा- एसडीओ ने
    मुझे भी कोचिलवन के विषय में जानकारी मिली है। इसके संरक्षण के लिए विभाग को लिखा जा रहा है। 
    - राजेश कुमार, एसडीओ,  शाहपुर पटोरी