तेजस्वी यादव की चुप्पी की क्या है वजह? महागठबंधन में हार के कारणों के गुणा-भाग की Inside Story
बिहार की राजनीति में तेजस्वी यादव की चुप्पी चर्चा का विषय बनी हुई है। अटकलें हैं कि नाराजगी बड़ा कारण है। हालांकि केवल तेजस्वी ही नहीं, कांग्रेस से भी कोई सामने नहीं आया है।

तेजस्वी यादव की चुप्पी का क्या है कारण?
सुनील राज, पटना। बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Chunav 2025) में करारी हार के चार दिन बीत चुके हैं, लेकिन महागठबंधन के घटक दल अब भी गहरे सन्नाटे में हैं।
न राजद नेता तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) सार्वजनिक तौर पर सामने आए हैं, न कांग्रेस का कोई बड़ा चेहरा हार पर कुछ बोलने को तैयार है।
यह खामोशी सिर्फ परिणामों का सदमा नहीं, बल्कि गठबंधन के भीतर चल रहे असंतोष, आत्ममंथन और नेतृत्व संकट का संकेत भी माना जा रहा है।
गठबंधन के प्रमुख चेहरा थे तेजस्वी
राजद की तरफ से सबसे बड़ी चुप्पी तेजस्वी यादव की है। वे चुनाव प्रचार में गठबंधन का प्रमुख चेहरा थे, लेकिन भाजपा-जदयू (एनडीए) गठबंधन की भारी जीत ने उनके राजनीतिक अंदाज, रणनीति और सलाहकार मंडली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
पार्टी के भीतर भी असंतोष पनप रहा है। कहा जा रहा है कि टिकट चयन में भारी गड़बड़ी हुई और प्रचार रणनीति जमीनी सच्चाई से दूर थी।
ऐसे माहौल में तेजस्वी की चुप्पी यह दर्शाती है कि वे दबाव में हैं और बिना ठोस समीक्षा के मीडिया या जनता के सामने आने से बच रहे हैं। एक दिन पहले उन्होंने विधायक दल की बैठक जरूर की, परंतु मीडिया के सामने नहीं आए।
दूसरी ओर Congress की स्थिति और भी कमजोर दिखाई देती है। पार्टी के 30 से ज्यादा हाई-प्रोफाइल प्रचारकों के बावजूद परिणाम बेहद निराशाजनक रहे।
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कांग्रेस में अंदरूनी कलह आया सामने
कांग्रेस नेतृत्व नतीजों पर न तो कोई सामूहिक बैठक कर पाया है और न ही कोई आधिकारिक समीक्षा शुरू हुई है। अंदरूनी कलह, टिकट वितरण में विवाद और प्रदेश नेतृत्व की कमजोरी के मुद्दे फिर उभर आए हैं।
यह मौन कांग्रेस की रणनीतिक दिशा को लेकर और अधिक उलझन पैदा कर रहा है। जिसके बाद कांग्रेस खेमा दो फाड़ है। इन दो दलों के बीच वाम दल और विकासशील इंसान पार्टी ही है जिन्होंने सार्वजनिक मंच से हार स्वीकार की।
महागठबंधन नेताओं की चुप्पी को लेकर राजनीति के गलियारे में चर्चाएं हैं। बातें हो रही हैं कि महागठबंधन की चुप्पी का बड़ा कारण गठबंधन की संरचना का ढीला होना भी है।
हार के बाद आमतौर पर कोई संयुक्त बयान या साझी समीक्षा की प्रक्रिया शुरू होती है, ताकि आगे की राजनीतिक दिशा तय की जा सके, लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ।
न कोई बैठक, न कोई साझा रणनीति। यह संकेत देता है कि घटक दल परिणामों की जिम्मेदारी एक-दूसरे पर डालने से पहले अपने-अपने राजनीतिक हिसाब-किताब दुरुस्त करने में लगे हैं।

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