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    Bihar Politics: लालू को फिर मिला 'सुपर सीएम' का साथ! विधानसभा चुनाव से पहले दी बड़ी जिम्मेदारी

    Updated: Tue, 29 Jul 2025 01:48 PM (IST)

    लालू यादव के शासनकाल में सुपर सीएम रहे डॉ. रंजन प्रसाद यादव की राजद में वापसी हुई है। लालू प्रसाद ने उन्हें राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य बनाया है। एक समय था जब रंजन यादव की महत्वपूर्ण भूमिका होती थी लेकिन कुछ समय बाद उनके और लालू के बीच मनमुटाव हो गया था। 2009 में उन्होंने लालू को हराया भी था। अब वे फिर से राजद में शामिल हो गए हैं।

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    लालू को फिर मिला 'सुपर सीएम' का साथ, विधानसभा चुनाव से पहले दी बड़ी जिम्मेदारी

    राज्य ब्यूरो, पटना। लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी के मुख्यमंत्रित्व काल में लंबे समय तक सुपर सीएम की भूमिका में रहे पूर्व सांसद डॉ. रंजन प्रसाद यादव एकबार फिर राजद की मुख्यधारा की राजनीति में लौट आए हैं। राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद ने मंगलवार को उन्हें पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य बनाया है। इसकी घोषणा मंगलवार को हुई।

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    यह पार्टी की सबसे बड़ी निर्णायक इकाई है। ऐसे तो लालू-राबड़ी का शासन 1990 से 2005 तक रहा। ये दोनों इस अवधि में मुख्यमंत्री रहे, लेकिन शासन के शुरुआती सात-आठ साल तक रंजन यादव ही सुपर सीएम की भूमिका में रहे। इस अवधि की महत्वपूर्ण नियुक्तियां इन्हीं की देखरेख में होती थीं। वे अघोषित रूप से शिक्षा विभाग के सर्वेसर्वा रहे।

    रंजन यादव, राजद। फाइल फोटो

    कुलपतियों की नियुक्तियों के लिए वे अकेले निर्णय लेते थे। 1997 में जनता दल का विभाजन हुआ। राजद बना। लालू प्रसाद अध्यक्ष बने। रंजन यादव कार्यकारी अध्यक्ष बने। राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बनीं। लालू प्रसाद के परिवार के लिए वह संकट का दौर था। पशुपालन घोटाला की सुनवाई हो रही थी। इस मामले में लालू प्रसाद अदालत और जेल की गतिविधियों में उलझे हुए थे।-दोस्ती में कैसे आई दरार

    उन्हीं दिनों राजद खेमें में यह चर्चा फैली कि रंजन यादव की महत्वाकांक्षा बढ़ गई है। संकटग्रस्त लालू परिवार को दरकिनार कर वे स्वयं सीएम बनना चाहते हैं। उन दिनों रंजन यादव के नाला रोड स्थित आवास पर राजद विधायकों का आना-जाना बढ़ गया था।

    वे अपने घर पर बुद्धिजीवियों की बैठक बुला रहे थे।राज्य सरकार के लिए ब्लू प्रिंट तैयार कर रहे थे। इन गतिविधियों से जुड़ी पुष्ट-अपुष्ट सूचनाएं लालू प्रसाद तक पहुंच रही थी। अविश्वास इस हद तक बढ़ा कि रंजन यादव राजद के कार्यकारी अध्यक्ष पद से हटा दिए गए।

    लालू को परास्त किया

    लालू और रंजन के बीच मनमुटाव इस स्तर तक पहुंचा कि दोनों एक दूसरे के प्रबल विरोधी बन गए। 2009 का वह समय भी आया, जब दोनों पाटलिपुत्र लोकसक्षा क्षेत्र में आमने सामने हुए। परिणाम निकला तो लालू प्रसाद अपने पुराने मित्र के हाथों पराजित हो गए थे।

    उन्होंने जदयू उम्मीदवार की हैसियत से लालू प्रसाद को पराजित किया। 2014 में इस लोकसभा सीट से रंजन यादव जदयू उम्मीदवार की हैसियत से चुनाव लड़े। उन्हें तीसरा स्थान मिला था। उसके बाद रंजन लंबे समय तक राजनीति के पर्दे से गायब रहे।

    राजद से साल भर पहले जुड़े

    पिछले साल मई में रंजन यादव एकबार फिर राजद से जुड़े। मंगलवार को उन्हें राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य बनाया गया। हालांकि, वे 80 साल के हैं। इसलिए चुनावी राजनीति में सक्रिय होने की संभावना नहीं के बराबर है। यह रंजन यादव के लिए महत्वपूर्ण है कि उन्हें एक बार फिर पुराने मित्र लालू प्रसाद का सहारा मिला।

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