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KNOW YOUR DISTRICT : बिहार का कश्‍मीर व सीता की है शरणस्थली, पश्चिम चंपारण जहां स्वाधीनता आंदोलन की मशाल जली

West Champaran ऐतिहासिक मंदिर बौद्ध स्तूप और प्रवासी पक्षियों का डेरा है पश्चिम चंपारण की भूमि झील। जैव विविधता से भरपूर इस जिले का है ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व। गांधी ने पं राजकुमार शुक्ल के साथ यहां से स्वाधीनता आंदोलन की मशाल जलाई।

By Dharmendra Kumar SinghEdited By: Published: Sun, 07 Aug 2022 03:45 PM (IST)Updated: Sun, 07 Aug 2022 03:45 PM (IST)
तिरहुत प्रमंडल अंतर्गत पश्चिम चंपारण अपनी भौगोलिक विशेषता व इतिहास के लिए प्रसिद्ध है।

पश्चिम चंपारण, {सु‍नील आनंद}। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की कर्मभूमि और गीतों के राजकुमार गोपाल सिंह नेपाली की जन्मस्थली। बिहार का इकलौता टाइगर रिजर्व, जहां बाघों की अटखेलियां, चितल, हिरण, सांभर और दुलर्भ प्रजाति के जानवरों का बसेरा। पग- पग पर ऐतिहासिक मंदिर, बौद्ध स्तूप और प्रवासी पक्षियों के कलरव के लिए नेपाल के नारायणी नदी, सरैयामन और अमवामन झील। जी हां, हम बात कर रहे हैं चंपारण सत्याग्रह की भूमि पश्चिम चंपारण की। उत्तर में नेपाल, दक्षिण में गोपालगंज, पश्चिम में उत्तरप्रदेश और पूरब में पूर्वी चंपारण की सीमा लगती है।

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अति पवित्र है सीता की शरणस्थली

अंग्रेजी हुकूमत में संयुक्त चंपारण एक जिला हुआ करता था। 1972 में पश्चिम चंपारण जिला अस्तित्‍व में आया, जिसका मुख्यालय बेतिया में है। तिरहुत प्रमंडल के अंतर्गत आने वाला यह जिला अपनी भौगोलिक विशेषता एवं इतिहास के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध है। महात्मा गांधी ने इसी जिले के भितिहरवा में आकर स्वाधीनता आंदोलन की मशाल जलाई थी। वहीं वाल्मीकिनगर में सीता माता की शरणस्थली होने से अति पवित्र है।

बेतिया राज की शानो-शौकत

मुगलकाल के बाद बेतिया राज का उदय हुआ। शाहजहां के समय उज्जैन सिंह और गज सिंह ने बेतिया राज की नींव डाली। जैसे- जैसे मुगल कमजोर होते गए, वैसे-वैसे बेतिया राज का वर्चस्व बढ़ता गया। काफी शानो-शौकत बेतिया राज की थी। 1763 ईस्वी में बेतिया राज भी अंग्रेजों के अधीन काम करने लगा। उस वक्त बेतिया राज के महाराजा ध्रुप सिंह हुआ करते थे। बेतिया राज के अंतिम राजा हरेंद्र किशोर सिंह को कोई संतान नहीं हुआ। संतान की चाह में उन्होंने दो शादियां की। 1893 में उनकी मृत्यु हो गई।

उसके बाद राज की पहली पत्नी महारानी शिवरतन कुंअर राज का बागडोर संभाल लीं। फिर 1897 में महाराजा की दूसरी पत्नी महारानी जानकी कुंअर ने बेतिया राज की कमान संभाली। जैसे- तैसे अंग्रेजों ने बेतिया पर भी कब्जा कर लिया। हालांकि आजादी के बाद बेतिया राज कोर्ट आफ वार्ड के अधीन चला गया। अभी बिहार सरकार के अधिकारी इसकी देख रेख करते हैं।

पश्चिम चंपारण की प्रसिद्ध विभूतियां

पंडित राजकुमार शुक्ल

चंपारण सत्याग्रह के प्रणेता पंडित राजकुमार शुक्ल का जन्म 23 अगस्त 1875 को पश्चिम चंपारण जिले के चनपटिया प्रखंड के सतवरिया गांव में हुआ था। पंडित शुक्ल की कर्मभूमि गौनाहा प्रखंड के मुरली भरहवा गांव रही। वर्ष 1916 में पंडित शुक्ल कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में बिहार के किसानों का प्रतिनिधित्व करने के लिए लखनऊ गए थे। किसानों की दुदर्शा बताकर गांधी जी से चंपारण चलने का अनुरोध किया था। उनके अनुरोध पर हीं गांधी जी 1917 में चंपारण आए थे और नीलहों के खिलाफ आंदोलन की शुरूआत की थी।

गोपाल सिंह नेपाली

गीतों के राजकुमार गोपाल सिंह नेपाली उर्फ गोपाल बहादुर सिंह का जन्म पश्चिम चंपारण के बेतिया में 11 अगस्त 1911 को हुआ था। उन्होंने कई पत्र- पत्रिकाओं में संपादकीय विभाग में काम किया था। मुंबई प्रवास के दिनों में नेपाली ने तकरीबन चार दर्जन फिल्मों के लिए गीत लिखी था। उसी दौरान इन्होंने हिमालय फिल्मस और नेपाली पिक्चर्स की स्थापना की थी। निर्माता-निर्देशक के तौर पर नेपाली ने तीन फीचर फिल्मों नजराना, सनसनी और खुशबू का निर्माण भी किया था।

केदार पांडेय

जिल के के रामनगर प्रखंड के तौलाहा गांव में जन्मे एवं पले बढ़े केदार पांडेय का राजनीति में बड़ा नाम है। 14 जून 1920 को मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे केदार पांडेय स्वतंत्रता के आंदोलन में भी काफी सक्रिय रहे। वे बतौर अधिवक्ता पटना न्यायालय में अभ्यास किए। ट्रेड यूनियन की राजनीति से लेकर बिहार के मुख्यमंत्री तक बने।

कमलनाथ तिवारी

बगहा के बनकटवा निवासी कमलनाथ तिवारी स्वाधीनता सेनानी रहे। भगत सिंह, सुखेदव और राजगुरू को सहयोग करने के आरोप में कालापानी की सजा भी काटे। देश की आजादी के बाद कांग्रेस की सक्रिय राजनीति में हिस्सा लिए। वे संयुक्त चंपारण के पहले सांसद भी थे। उनके प्रयास से बगहा में अनुमंडलीय अस्पताल की स्थापना की गई।

पश्चिम चंपारण के प्रमुख पर्यटन स्‍थल

वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना

नेपाल सीमा से सटे वाल्मीकि ब्याघ्र परियोजना के जंगल है। बिहार का इकलौता टाइगर रिजर्व और यहां ईको टूरिज्म की व्यवस्था है। इसे बिहार का कश्मीर कहा जाता है। नारायणी नदी के तट पर टाइगर रिजर्व के एक हिस्से को देखने के लिए देश और विदेश के पर्यटक आते हैं। प्रकृति की गोद में बसे वाल्मीकिनगर की फिजा पर्यटकों के लिए किसी जन्नत से कम नहीं है। वाल्मीकि टाइगर रिजर्व बिहार का इकलौता और भारत के प्रसिद्ध प्राणि उद्यानों में से एक है। 880 वर्ग किलोमीटर जंगल का 530 वर्ग किलोमीटर इलाका बाघों के लिए आरक्षित है।

रोमांचक अनुभव देने वाला जंगल सफारी

जंगल सफारी के दौरान पर्यटकों को बाघों का दीदार रोमांच पैदा करता है। नेपाल और यूपी की सीमा पर स्थित यह टाइगर रिजर्व प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है। सर्दियों के मौसम में यहां से हिमालय पर्वत श्रृंखला का दीदार कश्मीर की हसीन वादियों की याद ताजा करा देती है। यहां बाघ के अलावे काला हिरण, साँभर, चीतल, भालू, भेड़िया, तेंदुआ, नीलगाय, लकड़बग्घा, जंगली बिल्ली, अजगर जैसे वन्य जीव पाए जाते हैं। जंगल में साल, शीशम, सेमल, सागवान, जामुन, महुआ, तून, खैरा, बेंत आदि महत्वपूर्ण लकड़ियां पाई जाती है।

त्रिवेणी संगम पर वाल्मीकि आश्रम

एक ओर नेपाल का त्रिवेणी तथा बिहार के वाल्मीकिनगर से पांच किलोमीटर की दूरी पर त्रिवेणी संगम है। यहां गंडक के साथ पंचनद तथा सोनहा नदी का मिलन होता है। नारायणी नदी के तट पर महर्षि वाल्मीकि का वह आश्रम है। जहां भगवान श्रीराम राम के त्यागे जाने के बाद देवी सीता आश्रय ली थीं। सीता ने यहीं लव- कुश को जन्म दिया था।आश्रम में माता सीता की मौजूदगी के कई पुराने अवशेष भी है। वहीं जंगल में लव- कुश के बचपन के दिनों की यादें भी हैं, जिसे देखने के लिए पर्यटक पहुंचते हैं।

भितहरवा आश्रम और अशोक स्तंभ

गौनहा प्रखंड के भितिहरवा में गांधी जी ठहरे थे। यहीं चंपारण सत्याग्रह की शुरुआत की थी। उसे भितहरवा आश्रम कहा जाता है। वहीं आश्रम से कुछ ही दूरी पर रामपुरवा में सम्राट अशोक के बनाए दो स्तंभ है। लौरिया में नंदनगढ़ तथा नरकटियागंज के चानकी में चाणक्य गढ़ के अवशेष हैं, जो अब टीलेनुमा दिखाई देते हैं। नन्दनगढ के टीले को भगवान बुद्ध के अस्थि अवशेष के रूप में जाता है। लौरिया में भी अशोक स्तंभ है। विशाल स्तंभ की कलाकृति एवं बेहतरीन है।

सोमेश्वर धाम

रामनगर से उत्तरांचल में समुद्र तल से 2884 फीट की ऊचाई पर सोमेश्वर की पहाड़ी है। इसी पहाड़ की चोटी पर माता कालिका की मंदिर है। जहां चैत के महीने में हजारों की संख्या में श्रद्धालु पूजा करने के लिए जाते हैं। इसे बिहार का वैष्णो माता दरबार कहा जाता है। पहाड़ के ढलान सोमेश्वर महादेव का मंदिर है। यहां पत्थर का नाव भी देखा जा सकता है। पत्थर काट कर बनाया कुंड भी है। घाटी और पर्वत श्रेणियों का विहंगम दृश्य दिखता है। रास्ते में परेवाबह में कबुतरों का कलरव देख मन प्रफुल्लित हो जाता है।

सरैया मन झील

सरैया मन एक सुंदर झील है जो बेतिया शहर से छह किमी दूर बैरिया अंचल में अवस्थित है। यहां 887 एकड़ वन भूमि भी है। सरैयामन झील है जामुन के पेड़ों से घिरी हुई है। जामुन के फल झील में गिर जाते है और झील के पानी को औषधीय गुण देते है। डिपार्टमेंटऑफ़ जूलॉजी पटना यूनिवर्सिटी के सर्वेक्षण में सरैयामन झील की गहराई न्यूनतम 10.7 फीट से अधिकतम 29.01 फीट दर्ज की गई है। सर्दियों में लालसर, बत्तख, नीलसर, बत्तख समेत प्रवासी पक्षी भी यहां आते हैं। यहां 135 प्रजाति के विदेशी और 85 प्रजाति के देसी पक्षी आते थे।

अमवा मन झील

बेतिया- मोतिहारी एनएच 727 के सटे जिला मुख्यालय के प्रवेश द्वार पर अमवा मन झील है। 400 एकड़ में फैली एक खूबसूरत व मनोरम प्राकृतिक झील को हाल के दिनों में पर्यटन स्पॉट के रूप में विकसित किया जा रहा है। झील के चारों ओर वाकिग स्लॉट का भी निर्माण किया गया है। ताकि पर्यटक घूमते हुए यहां की सुंदरता का अवलोकन कर सकें। अंडमान व गोवा की तर्ज पर यहां वाटर स्पोर्टस की व्यवस्था की गई है। मोटर बोट, जेटेस्की बोट, पैरासेलिंग बोट, कयाक बोट एवं जॉर्बिंग बॉल बोट का संचालन होता है।

पश्चिम चंपारण की अर्थव्‍यवस्‍था

जिले की अर्थव्यवस्था मूल रूप से कृषि पर निर्भर है। यहां गन्ने की खेती मुख्य है। बिहार की सबसे बड़ी हरिनगर चीनी मिल रामनगर में अवस्थित है। धान, गेहूं, दलहन और तिलहन की खेती भी प्रमुखता से होती है। पश्चिम चंपारण का जर्दालू आम और मरचा का चूड़ा विदेशों में भी प्रसिद्ध है। इसके अलावा यहां सब्जियों की खेती भी होती है।

हाल के दिनों में टेक्सटाइल हब बनाने की तैयारी चल रही है। कोरोना के दौरान आपदा को अवसर में बदलकर चनपटिया स्टार्टअप जोन बना है, महज दो वर्ष में इसकी ख्याति देश के कोने- कोने में पहुंच गई है। इसके अतिरिक्त चावल और चूड़ा की मिलें भी हैं। जिला मुख्यालय बेतिया में कई ब्रांडेड कंपनियों का शो रूम है।

पटना और दिल्ली से जिले की कनेक्टिविटी

जिले की सड़क मार्ग से नेपाल और यूपी समेत बिहार के गोपालगंज और मोतिहारी का सीधा कनेक्शन है। हालांकि और दिल्ली से भी सड़क मार्ग से सीधा कनेक्शन जुड़ गया है। पटना से बेतिया तक नए हाईवे का निर्माण कार्य चल रहा है। गोरखपुर से सिलीगुड़ी तक 519 किलोमीटर एक्सप्रेस वे का निर्माण भी होना है, जो बेतिया से होकर गुजरेगी।

नारयणी नदी पर धनहा रतवल के समीप गौतम बुद्ध सेतु बन जाने से जिले का संपर्क सीधे तौर पर पश्चिमी उत्तरप्रदेश से हो गया है। रेल मार्ग से भी यह जिला जुड़ा हुआ है। दिल्ली, मुंबई, कटरा, पंजाब से कई ट्रेनें इस मार्ग से गुजरती है। नरकटियागंज बड़ा जंक्शन है। यहां देश के अलग- अलग हिस्से से ट्रेनें गुजरती हैं। वैसे जिले में कुल छोटे- बड़े 17 रेलवे स्टेशन हैं।

शिक्षा और कला संस्कृति

पश्चिम चंपारण जिले में कई कालेज हैं। गवर्नमेंट मेडिकल कालेज, इंजीनियरिंग कालेज, पालीटेक्निक कालेज, महारानी जानकी कुंअर कालेज, रामलखन सिंह यादव कालेज, तारकेशव प्रसाद वर्मा कालेज का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। फिल्म निदेशक प्रकाश झा, अभिनेता मनोज वाजपेयी इसी जिले के हैं। खेलकूद में भी जिले का बड़ा नाम है। महिला फुटबाल में यहां की कई खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय स्तर पर परचम लहराया है।

पश्चिम चंपारण की भौगोलिक संरचना

पश्चिमी चम्‍पारण के उत्तर में नेपाल तथा दक्षिण में गोपालगंज जिला स्थित है। इसके पूरब में पूर्वी चंपारण है जबकि पश्चिम में इसकी सीमा उत्तर प्रदेश के पडरौना तथा देवरिया जिला से लगती है। जिले का क्षेत्रफल 5228 वर्ग किलोमीटर है जो बिहार के जिलों में प्रथम है। जिले की अंतरराष्ट्रीय सीमा बगहा-एक, बगहा-दो, गौनहा, मैनाटांड, रामनगर तथा सिकटा प्रखंड के ३५ किलोमीटर तक उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व में नेपाल के साथ लगती है, जहां थारू- आदिवासियों की आबादी है।

सबसे उत्तरी हिस्सा सोमेश्वर पहाड़ है। नारायणी, सिकरहना समेत कई पहाड़ी नदियों का जाल है। जिले में तीन अनुमंडल बेतिया, बगहा और नरकटियागंज हैं। जबकि बेतिया नगर निगम समेत तीन नगर पंचायत और तीन नगर परिषद हैं। जिले के 17 प्रखंड में 302 पंचायत और 1483 गांव हैं।


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