Kishanganj News: बिहार की इस विधानसभा सीट पर 'चाय' पर पड़ेगा वोट! जनता ने नेताओं को दी चेतावनी
किशनगंज जिले के ठाकुरगंज में चाय किसानों को सरकारी चाय प्रसंस्करण इकाई का इंतजार है। 15 हजार एकड़ में चाय की खेती होने के बावजूद सरकारी इकाई न होने से किसान निजी फैक्ट्रियों पर निर्भर हैं और कम दाम पर उपज बेचने को मजबूर हैं। किसानों में इस बार सरकार के प्रति नाराजगी है।

बीरबल महतो, ठाकुरगंज (किशनगंज)। प्राकृतिक संपदा और कृषि उत्पादन की दृष्टि से यह इलाका बिहार का महत्वपूर्ण इलाका माना जाता है। यहां के चाय बागान इस क्षेत्र की पहचान हैं। लगभग 15 हजार एकड़ भूमि पर चाय की खेती होने के बावजूद आज तक कोई भी सरकारी चाय प्रसंस्करण इकाई स्थापित नहीं हो पाई है।
जिस कारण चाय उत्पादक किसानों को अपने पत्तों की बिक्री के लिए निजी फैक्ट्रियों पर निर्भर रहना पड़ता है। अधिकतर किसान या तो प्रखंड के भीतर संचालित निजी चाय प्रसंस्करण इकाइयों में या फिर पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल की फैक्ट्रियों में अपनी उपज बेचने को विवश हैं।
वहां उन्हें औने-पौने दामों पर अपनी मेहनत से उगाई गई फसल बेचनी पड़ती है। किसान बताते हैं कि उत्पादन क्षमता और गुणवत्ता बेहतर होने के बावजूद उन्हें उनकी लागत और मेहनत का उचित लाभ नहीं मिल पाता।
चाय उत्पादक किसानों को मिले अधिकार
किसानों में इस बार सरकार से गहरी नाराज़गी दिख रही है। उनका कहना है कि स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने इस मुद्दे पर अब तक कोई ठोस पहल नहीं की। चाय प्रसंस्करण इकाई स्थापित न होने के कारण किसान आर्थिक रूप से पिछड़ रहे हैं और धीरे-धीरे हताश भी हो रहे हैं।
सरकार की ओर से बड़े-बड़े वादे किए गए कि चाय उत्पादक किसानों को कई तरह की सरकारी सुविधाएं दी जाएगी, परंतु न तो सरकार की ओर से कोई राशि चाय उत्पादक किसानों के लिए उपलब्ध कराई गई है और न टी बोर्ड इंडिया की ही ओर से।
जब भी कोई सरकार के प्रतिनिधि ठाकुरगंज प्रखंड क्षेत्र में लहलहाते चाय बागान को देखते हैं तो चाय उत्पादक किसानों की समस्या को सुन कर तो चले जाते हैं पर मिलता कुछ नहीं है।
चाय उत्पादक किसान अरुण सिंह, प्रमोद साह, शैलेंद्र सिंह, गोविंद अग्रवाल, अनिल सरावगी, संजय साह, पंचम साह, मनोज सिंह, सुबोध शंकर सिंह, नवल किशोर सिंह आदि का कहना है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में वे उसी उम्मीदवार को अपना समर्थन देंगे, जिसके घोषणा पत्र में चाय उत्पादन में आने वाले बाधाओं को दूर करने की बात होगी।
सरकारी चाय प्रसंस्करण इकाई की स्थापना का वादा होगा। किसानों का मानना है कि अगर यह इकाई स्थापित होती है तो उन्हें स्थानीय स्तर पर ही स्थायी और उचित बाजार उपलब्ध होगा और वे बिचौलियों के शोषण से बच पाएंगे।
इन लोगों का मानना है कि यदि ठाकुरगंज में सरकारी चाय प्रसंस्करण इकाई स्थापित होती है, तो किशनगंज जिले की चाय न केवल बिहार बल्कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी अलग पहचान बना सकती है।
अनुसंधान केंद्र की हुई पहल, कीटों का नहीं हो रहा प्रबंधन
चाय की उत्पादकता बढ़ाने के लिए डा. कलाम कृषि महाविद्यालय, अर्राबाड़ी में चाय रिसर्च सेंटर आफ एक्सीलेंस की स्थापना की पहल की गई है। इसका उद्देश्य किसानों को उन्नत नस्ल के पौधे उपलब्ध कराना और शोध के जरिए उत्पादकता व गुणवत्ता सुधारना है।
किसान कहते हैं कि केवल शोध केंद्र से उनकी आय में स्थायी सुधार संभव नहीं होगा, जब तक उन्हें बाजार में बेहतर दाम दिलाने के लिए सरकारी स्तर पर प्रसंस्करण और विपणन की व्यवस्था नहीं की जाती।
इसके अलावा वर्तमान समय में चाय बागानों में विभिन्न प्रकार के कीटों - ग्रीन फ्लाई, व्हाइट फ्लाई, हेलो लीव्स, लूपर, फंगल आदि के प्रभाव से चाय बागान को काफी नुकसान पहुंच रहा है, लेकिन सरकार की ओर से इसके समाधान के लिए कोई भी सुधार के कदम उठाए नहीं जा रहे हैं। किसान यह ठान चुके हैं कि चाय प्रसंस्करण इकाई की स्थापना ही उनका प्रमुख चुनावी मुद्दा होगा।
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