Updated: Mon, 22 Sep 2025 03:21 PM (IST)
खगड़िया में शारदीय नवरात्र कलश स्थापना के साथ शुरू हो गया है। नौ दिनों तक चलने वाले इस पर्व में हर दिन देवी के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा का विधान है। पहले दिन शैलपुत्री दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी और इसी प्रकार अन्य देवियों की पूजा की जाती है। हर देवी की पूजा में विशेष सामग्री और नैवेद्य का महत्व है जिनसे अलग-अलग फल प्राप्त होते हैं।
जागरण संवाददाता, खगड़िया। शारदीय नवरात्र का काफी महत्व है। जो कलश स्थापन के साथ आज सोमवार से आरंभ हो रहा है। नवरात्र पूजन में सभी दिनों का अलग- अलग महत्व (Navaratri puja rules) है।
नौ दिनों में देवी के नौ रूप के पूजन के साथ पूजन सामग्री व फूल व नवैद्य का भी अलग-अलग महत्व है। कलश स्थापन के साथ जयंती बोने की परंपरा है। जिसमें जौ की विशेष महत्ता है।
वहीं पहले दिन देवी के प्रथम रूप शैलपुत्री की पूजा-अर्चना होती है। भोजुआ दुर्गा मंदिर के आचार्य पंडित दामोदर झा के अनुसार प्रथम रूप के पूजन में लाल व कावेरी पुष्प, लाल चंदन, सुगंध व नवैद्य में गाय के घी का विशेष महत्व होता है।
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इनके पूजन से नवरात्र साधना की यात्रा शुरु होती है। ये देवी सभी भौतिक इच्छाओं को पूर्ण करती हैं और इससे जिंदगी में पूर्णता का अनुभव कर सकते हैं।
वहीं दूसरे दिन मंगलवार को दूसरे रूप ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है। जिसमें पुष्प चंदन, धूप के अलावा नवैद्य में चीनी व गुड़ का विशेष महत्व है। इनके पूजन से सुख- शांति मिलती है।
तीसरे दिन बुधवार को तीसरे रूप चंद्रघंटा की पूजा में पूजन की अन्य सामग्री के साथ गाय के दूध का विशेष महत्व है। इनके पूजन से मानव के कष्टों का निवारण व पराक्रम में वृद्धि होती है।
चौथे दिन गुरुवार को देवी के चौथे रूप कुष्मांडा की पूजा होती है। जिसमें लाल पुष्प व अन्य सामग्री के साथ नवैद्य में मालपुआ का विशेष महत्व है। इनके पूजन व अराधना से पुत्र धन व यश में वृद्धि होती है। इसबार नवरात्र में तिथि वृद्धि है। चतुर्थी तिथि पूजन दो दिन है। इसलिए गुरुवार के साथ शुक्रवार को भी मां कुष्मांडा की पूजा- अर्चना होगी।
तिथि के आधार पर नवरात्र के पांचवें दिन शनिवार को देवी के पांचवें रूप स्कंद माता की पूजा होगी। जिसमें श्वेत व पीला पुष्प व अन्य सामग्री के साथ नवैद्य में केला का होना आवश्यक है। इनके पूजन से इच्छापूर्ति व मोक्ष की प्राप्ति होती है।
छठे दिन रविवार को देवी के छठे रूप मां कात्यायनी की पूजा होगी। इनके पूजन में शहद का विशेष महत्व है। इनके पूजन से मन वांक्षित फल की प्राप्ति व समृद्धि मिलती है।
सातवें दिन सोमवार को सातवें रूप कालरात्री की पूजा होगी। इनके पूजन में लाल पुष्प के साथ नवैद्य में गुड़ आवश्यक है। इनके पूजन से अग्नि, जल शत्रु सहित सभी भय का नाश होता है।
वहीं आठवें दिन मंगलवार को देवी के आठवें रूप महागौरी की पूजा होगी। इनके पूजन में कमल का फूल व गाय के घी का विशेष महत्व है। इनके पूजन से मन वांक्षित फल व आयु की प्राप्ति होती है।
वहीं नवमी के दिन बुधवार को देवी के नवम रूप सिद्धिदात्री की पूजा होती है। जिसमें द्रोण पुष्प यानी शुंभा के फूल के साथ धान के लावे का महत्व है। इनके पूजन से मानव के सभी कार्यों की सिद्धि होती है। दुर्गा सप्तशति का पाठ भी आवश्यक नवरात्र में देवी के सभी रूपों के पूजन के साथ दुर्गा सप्तशति का पाठ भी आवश्यक है।
इस पाठ से मां दुर्गा का आशीर्वाद रूपी कवच प्राप्त होता है और दुख, कष्ट व अमंगल से रक्षा होती है। पाठ करने के पूर्व दुर्गा सप्तशति पुस्तक का पंचोपचार पूजन भी आवश्यक है।
जिसमें अक्षत, जल, चंदन, पुष्प, धूप, नवैद्य अर्पित कर श्रद्धा भाव से दोनों हाथ से पुस्तक को उठा मस्तक में स्पर्श कर पाठ आरंभ करना चाहिए। पाठ उपरांत क्षमा प्रार्थना पाठ बाद आरती भी अनिवार्य है।
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