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    थावे माता के धाम का रहस्यमयी वृक्ष की पहचान आज भी अनजान, आस्था में अमर

    Updated: Thu, 18 Dec 2025 03:47 PM (IST)

    थावे दुर्गा मंदिर परिसर में स्थित एक रहस्यमयी वृक्ष, जिसकी पहचान अज्ञात रही, श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र था। इस वृक्ष की शाखाएं क्रूस जैसी दिखती थी ...और पढ़ें

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    गर्भगृह के पास अनजान वृक्ष

    संवाद सूत्र, थावे (गोपालगंज)। थावे दुर्गा मंदिर परिसर देवी की शक्ति और आस्था का केंद्र ही नहीं, बल्कि रहस्यमयी मान्यताओं और लोककथाओं का भी साक्षी रहा है। इन्हीं रहस्यों में एक था मंदिर के गर्भगृह के समीप स्थित वह अनोखा वृक्ष, जिसे वर्षों तक लोग 'अनजान वृक्ष' के नाम से जानते रहे। इस वृक्ष की वानस्पतिक पहचान कभी स्पष्ट नहीं हो सकी, जिससे इसकी रहस्यमयता समय के साथ और गहरी होती चली गई।

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    स्थानीय श्रद्धालुओं के अनुसार यह वृक्ष सामान्य पेड़ों से बिल्कुल भिन्न था। इसकी शाखाओं और तने की बनावट ऐसी थी कि दूर से देखने पर यह क्रूस (क्रॉस) जैसी आकृति का आभास कराता था।

    यही विशेषता इसे अन्य पेड़ों से अलग बनाती थी। माता थावे भवानी के दर्शन के बाद श्रद्धालु इस रहस्यमयी वृक्ष के दर्शन को भी अपनी आस्था का अहम हिस्सा मानते थे। मंदिर आने वाला लगभग हर भक्त इस वृक्ष के सामने कुछ पल ठहरना नहीं भूलता था।

    इस अनोखे वृक्ष को लेकर कई किंवदंतियां प्रचलित थीं। लोकमान्यता थी कि यह वृक्ष माता की शक्ति का प्रतीक है और इसके साथ कोई दैवी रहस्य जुड़ा हुआ है।

    कुछ लोगों का मानना था कि यह वृक्ष वर्षों तक बिना किसी विशेष देखभाल के भी हरा-भरा रहता था, जो माता की कृपा का प्रमाण माना जाता था। विद्वानों और जिज्ञासुओं के बीच भी इसकी पहचान को लेकर चर्चाएं होती रहीं, लेकिन कोई ठोस निष्कर्ष सामने नहीं आ सका।

    हालांकि 1990 के दशक में यह रहस्यमयी वृक्ष धीरे-धीरे सूख गया। इसके बाद मंदिर प्रशासन ने उस स्थान को सुरक्षित रखने के लिए घेराबंदी कराई।

    बाद में उसी स्थान पर त्रिशूल की स्थापना की गई, ताकि श्रद्धालुओं की आस्था बनी रहे। आज भले ही उस वृक्ष का कोई प्रत्यक्ष अवशेष नहीं दिखता, लेकिन जिस स्थान पर वह मौजूद था, वहां आज भी भक्त श्रद्धा से शीश नवाते हैं।

    थावे माता धाम में यह स्थान आज भी रहस्य और आस्था का प्रतीक बना हुआ है। वृक्ष की पहचान भले ही इतिहास के गर्त में खो गई हो, लेकिन उससे जुड़ी मान्यताएं और श्रद्धा आज भी भक्तों के मन में जीवित हैं।

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