Banke Bihari: सिर्फ अक्षय तृतीया पर ही क्यों होते हैं बांकेबिहारी के चरण दर्शन, इसके पीछे का ये है रहस्य
Banke Bihari Mandir Charan Darshan News In Hindi अक्षय तृतीया पर इस बार 10 मई को ठा. बांकेबिहारी अपने भक्तों को चरण दर्शन देंगे। सुबह राजा के भेष में चरणचौकी पर विराजमान होकर ठाकुरजी अपने भक्तों को चरण दर्शन देंगे तो उनके चरणों के समीप सवा किलो वजन का चंदन लड्डू रखा जाएगा। शाम को ठाकुरजी चंदन लेपन कर सर्वांग दर्शन देंगे।
संवाद सहयोगी, जागरण, वृंदावन। ठाकुर बांकेबिहारी जी के चरणों के दर्शन साल में एक ही दिन अक्षय तृतीया पर होते हैं। जबकि सालभर आराध्य के चरण पोशाक में छिपे रहते हैं।
इसके पीछे रहस्य ये है कि शुरुआती दौर में जब स्वामी हरिदास अपने लाडले बांकेबिहारी से लाड़ लड़ाते और उनकी सेवा में ही दिन गुजारते थे। तब ठाकुरजी की सेवा, भोग के लिए धन अभाव रहता था। ठाकुरजी का ही चमत्कार था कि इस अभाव को दूर करने के लिए हर दिन आराध्य के चरणों मे एक स्वर्ण मुद्रा मिलने लगी। जिससे स्वामीजी अपने लाढ़ले की सेवा करते रहे।
मुद्रा निकलने का सिलसिला तो बाद में खत्म हो गया। लेकिन ठाकुरजी के चरण दर्शन न करवाने की परंपरा आज भी सेवायतों द्वारा निभाई जा रही है। यही कारण है साल में एक ही दिन अक्षय तृतीया पर आराध्य के चरणों के दर्शन कर भक्त अक्षय पुण्य प्राप्त करते हैं।
पांच सौ साल पहले की परंपरा
करीब पांच सौ साल पहले जब निधिवन राज मंदिर में संगीत सम्राट स्वामी हरिदास की संगीत साधना से प्रसन्न होकर ठा. बांकेबिहारी प्रकट हुए, तब स्वामीजी अपने लड़ैते बांकेबिहारी की भाव सेवा में डूबे रहते थे। हालात ये थे कि ठाकुरजी की दिनभर की सेवा करने के लिए आर्थिक संकट था।
शुरुआती दौर में जब स्वामीजी सुबह उठते थे, तो ठाकुरजी के चरणों में एक स्वर्ण मुद्रा निकलती थी, स्वामीजी इसी स्वर्ण मुद्रा से आराध्य बांकेबिहारी की सेवा और भोगराग की व्यवस्था संचालित करते थे। यही कारण है कि ठाकुरजी के चरणों के दर्शन किसी को नहीं करवाए जाते थे।
एक ही बार होते हैं भक्तों को दर्शन
ठा. बांकेबिहारीजी अक्षय तृतीया के दिन साल में एक ही बार भक्तों को चरण दर्शन देते हैं। ठाकुरजी के चरणों में अपार खजाना है, मान्यता है ठाकुरजी के चरण के विलक्षण दर्शन करने वाले की हर मनोकामना पूर्ण होती है। यही कारण है कि अक्षयतृतीया पर आराध्य के चरण दर्शन को देश दुनिया से लाखों भक्त वृंदावन में डेरा डालकर आराध्य के चरणों की एक झलक पाने को उतावले रहते हैं।
इस दिन ठाकुरजी सुबह तो राजा के भेष में चरण दर्शन देते हैं और उनके चरणों में चंदन का सवा किलो वजन का लड्डू भी रखा जाता है। मंदिर सेवायतों की मानें तो ये चंदन का लड्डू भी इसी मान्यता के तौर पर रखा जाता है, कि स्वर्ण मुद्रा के दर्शन भक्तों को करवाए जा सकें। सुबह राजा के भेष में चरण दर्शन देने के बाद शाम को ठा. बांकेबिहारी के पूरे श्रीविग्रह पर चंदन लेपन होता है और आराध्य अपने भक्तों को सर्वांग दर्शन देते हैं।
आज भी इसी परंपरा का निर्वहन कर रहे मंदिर सेवायत
स्वामी हरिदास ने ठाकुरजी के चरण दर्शन न करवाने की जो परंपरा पांच सौ साल पहले शुरू की थी। मंदिर के सेवायत भी उसी परंपरा का निर्वहन करते आ रहे हैं। आराध्य बांकेबिहारी की जितनी भी सेवाएं वर्तमान में संचालित की जा रही हैं, वे सभी सेवाएं स्वामी हरिदास ने ही शुरू की थीं। उसी मान्यता के अनुसार मंदिर में आज भी परंपरा का निर्वहन सेवायतों द्वारा किया जा रहा है।
पूर्वजों द्वारा बताया गया है कि जब स्वामी हरिदासजी मंदिर निधिवन राज मंदिर में ठाकुरजी से लाड़ लड़ाते थे, तो इतने व्यस्त रहते थे कि उन्हें अपने लढ़ैते बांकेबिहारी से लाड़ लड़ाने के अलावा कुछ भी पसंद न था। ऐसे में जब ठाकुरजी की सेवा में अर्थ का अभाव होना शुरू हुआ तो अचानक हर दिन सुबह जब स्वामीजी जागते तो ठाकुरजी के चरणों में एक स्वर्ण मुद्रा मिलती थी। इसी स्वर्ण मुद्रा का स्वामीजी दिनभर की ठाकुरजी की सेवा में व्यय करते थे। ये सिलसिला लंबे समय तक चलता रहा। -आचार्य गोपी गोस्वामी, मंदिर सेवायत।